महाराष्ट्र के विदर्भ को संतरे की खेती के लिए जाना जाता है. यहां से अब जो जानकारी आ रही है, वह दूसरे किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है. एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो यहां की एक मशहूर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में इंडो-इजरायल टेक्नोलॉजी की मदद से संतरे का उत्पादन बढ़ाने में खासी सफलता मिली है. किसानों को बताया गया कि कैसे वो वैज्ञानिक तरीके का प्रयोग करके उत्पादन बढ़ा सकते हैं. माना जा रहा है कि इससे बाकी किसानों को भी फायदा हो सकता है.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अकोला स्थित डॉक्टर पंजाबराव देशमुख एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने विदर्भ में इंडो-इजरायल टेक्नोलॉजी का प्रयोग संतरे की खेती पर किया. इस प्रयोग के तहत नागपुर स्थित एग्रीकल्चर कॉलेज में पहले एक मॉडल खेत डेवलप किया गया था. जो नतीजे मिले उसमें उत्पादन 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर पर पहुंच गया. अब इस टेक्नोलॉजी को बाकी किसानों के खेतों पर लागू किया जा रहा है.
इस टेक्नोलॉजी के तहत सात किसानों के हर एक हेक्टेयर खेत में एक मॉडल फार्म तैयार किया गया था. इसमें 12*8 इंच के प्लास्टिक बैग्स में बीजों को तैयार किया गया. इसकी वजह से बीज अच्छे से अंकुरित हो सके. दोबारा प्लांट करने पर पौधों का सर्ववाइवल रेट भी 90 से 100 फीसदी तक रहा. इस प्रोजेक्ट में मिट्टी में कई तरह की मिट्टी का मिक्सचर, रेत और गोबर मिलाया जाता है और उसे सूरज की रोशनी में छोड़ दिया जाता है.
ट्रे में बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया अक्टूबर में शुरू हो गई थी. इसके बाद बीजों को तैयार करके उन्हें प्लास्टिक बैग में रख दिया गया. नवंबर दिसंबर में ग्राफ्टिंग की गई. इसके बाद जून-जुलाई में ये अंकुरित पौधे बिक्री के लिए तैयार हो गए. खरीफ की फसलों की कटाई के बाद इन अंकुरित बीजों को प्लांट किया जा सकेगा.
इस टेक्नोलॉजी पर आधारित नर्सरी को नागपुर, अकोला और अचलपुर में डेवलप किया गया है. इन नर्सरियों की मदद से करीब पांच लाख अंकुरित बीजों को बेचा जाएगा. महाराष्ट्र के बागवानी विभाग की तरफ से किसानों को इसके लिए आर्थिक सहयोग भी मुहैया कराया जाएगा. पारंपरिक तरीको में बीजों को मिट्टी में ही अंकुरित किया जाता है. ऐसे में जड़ों के टूटने का खतरा हता है.
नागपुर के संतरे अपने स्वाद और जूस के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं. उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत ने इजरायल के साथ टेक्नोलॉजी एक्सचेंज पर एक एग्रीमेंट साइन किया था. इस एग्रीमेंट के चलते ऑरेंज इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट को नागपुर के कृषि कॉलेज में अकोला की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम के तहत लागू किया जा रहा है. पिछले 15 सालों में विदर्भ में 40 से 45 हजार हेक्टेयर पर संतरों की खेती इसी टेक्नोलॉजी से की गई है.
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