महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक किसानों की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. हर सप्ताह यहां की किसी न किसी मंडी में इसका भाव एक से दो रुपये किलो के निचले स्तर पर पहुंच जा रहा है. अब सोचिए, एक-दो रुपये प्रति किलो के रेट पर प्याज बेचकर किसान क्या ही कर पाएंगे. सोलापुर जिले की सोलापुर और मंगलवेधा मंडी में इसका न्यूनतम भाव 100 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है. जबकि मंगलवेधा में तो सिर्फ 235 क्विंटल की आवक हुई थी. दोनों मंडियों में औसत भाव 1500 रुपये क्विंटल है. किसानों का कहना है कि न्यूनतम और औसत दोनों दाम लागत से कम है. ऐसा पिछले छह महीने से चल रहा है. लेकिन, राज्य और केंद्र की सरकार को कोई परवाह नहीं है.
महाराष्ट्र राज्य एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के मुताबिक 26 दिसंबर को औरंगाबाद में प्याज का न्यूनतम दाम 300 और औसत भाव 800 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि धुले मंडी में न्यूनतम 200 और औसत भाव 1450 रुपये प्रति क्विंटल रहा. महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के संस्थापक अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि जब प्याज का रेट बढ़ने लगता है तो सरकार तुरंत उसे कम करने की कोशिश में जुट जाती है. लेकिन, जब पिछले छह महीने से काफी किसान 1 से 8 रुपये प्रति किलो तक के औसत भाव पर इसकी बिक्री कर रहे हैं तब सरकार क्यों मौन है.
दिघोले सवाल करते हुए कहते हैं कि क्या प्याज उत्पादक किसानों के प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है? दिघोले का कहना है कि एक तरफ तो सरकार कहती है कि किसानों की आय डबल करनी है. लेकिन जब दाम बढ़ने लगता है तब उसे किसी न किसी तरह से घटा देती है और जब दाम घटने लगता है तब मौन हो जाती है. ऐसी नीतियों से किसानों की इनकम तो डबल होने से रही.
उनका कहना है कि जब तक प्याज को एमएसपी के दायरे में लाकर इसका न्यूनतम दाम फिक्स नहीं किया जाएगा तब तक ट्रेडर किसानों की मेहनत का फल खाते रहेंगे. सरकार उन लोगों पर कार्रवाई करे जो 8 रुपये किलो किसानों से खरीदकर उसे बड़े शहरों में 40 रुपये पर बेच रहे हैं.
महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है. इसके उत्पादन में अकेले इसी की हिस्सेदारी 42 फीसदी है. दिघोले का कहना है कि अगर यहां के 15 लाख प्याज उत्पादक किसानों ने कम दाम से परेशान होकर प्याज की खेती बंद कर दी तो सरकार को इंपोर्ट का सहारा लेना पड़ेगा. इससे उपभोक्ताओं को नुकसान होगा. इसलिए अच्छा है कि महाराष्ट्र के किसानों को दाम दिलवाईए. उन व्यापारियों पर एक्शन कीजिए जो किसानों से सस्ता प्याज लेकर उपभोक्ताओं को महंगा बेचते हैं.
हैरानी यह है कि प्याज की खेती की लागत हर साल बढ़ रही है. सिंचाई, मजदूरी, ढुलाई और कीटनाशकों पर खर्च बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्याज का दाम घटता जा रहा है. दिघोले का कहना है कि सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव में 28 दिसंबर को पुराना प्याज 1200 और नया 1600 रुपये प्रति क्विंटल पर बिका है. यह दाम भी लागत से कम ही है. लागत 1800 से 2000 रुपये क्विंटल तक आ रही है. साल 2022 प्याज किसानों को बहुत चोट देकर गया है. इसमें खर्च दोगुना हुआ है और आय कम.
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