इस सीजन में खरीफ फसलों की बुवाई में हल्की तेजी दर्ज की गई है. पिछले साल से तुलना करें तो अभी तक खरीफ फसलों की बोवनी में 1.9 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों ने अभी तक 1,108.57 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुवाई की है. पिछले साल इसी अवधि में 1,088.25 लाख हेक्टेयर में बोवनी हुई थी. इस तरह, एक साल में 1.9 फीसद की बढ़त दर्ज की गई है.
बुवाई के तहत सामान्य रकबे का आंकड़ा मिलाएं तो उसमें भी वृद्धि देखी जा रही है. साल 2018-19 से 2022-23 की अवधि में खरीफ फसलों की बुवाई का एवरेज एरिया 1,096 लाख हेक्टेयर रहा है. दूसरी ओर यह 1,108 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच गया है. इस तरह उत्पादन की दृष्टि से इस बार का खरीफ सीजन बेहतर माना जा रहा है. साथ ही, इस बार मॉनसून की बारिश भी सामान्य से अधिक है. लिहाजा उपज में बढ़ोतरी की संभावना बरकरार है.
कमॉडिटी यानी कि जींसों के हिसाब से देखें तो इस खरीफ सीजन में धान, दलहन, तिलहन, मिलेट्स और गन्ने के रकबे में भी पिछले साल के मुकाबले वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि मामूली चिंता की बात ये है कि इस साल अभी तक कपास, जूट या मेस्टा की बुवाई में धीमापन है.
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चूंकि धान के किसानों ने इस बार कवरेज के तहत 2.5 प्रतिशत अधिक बुवाई की है, इसलिए सरकार ने चावल के निर्यात पर कुछ पाबंदियों को कम कर दिया है. सरकार ने बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) हटा दिया और गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात की अनुमति दी है. लेकिन न्यूनतम निर्यात मूल्य 490 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के नियम को बनाए रखा है.
आंकड़ों से पता चला है कि दलहन की खेती में उड़द की फलियों के अलावा, अरहर, मूंग, कुलथी और मोठ जैसी फसलों में अच्छी-खासी वृद्धि देखी गई है. भारत दालों का एक प्रमुख उपभोक्ता और उत्पादक है, जो आयात के साथ अपने घरेलू खपत को पूरा करता है. भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले दलहन की बात करें तो इसमें चना, मसूर, उड़द, काबुली चना और तुर प्रमुख हैं. सरकार दलहन फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके.
2023 के खरीफ सीजन में देश भर में खेती का कुल रकबा 1,107.15 लाख हेक्टेयर था. 2018-19 और 2022-23 के बीच सामान्य खरीफ क्षेत्र 1,096 लाख हेक्टेयर रहा.
भारत में तीन फसल मौसम हैं, ग्रीष्मकालीन, खरीफ और रबी. जून-जुलाई के दौरान बोई जाने वाली और मॉनसून की बारिश पर निर्भर खरीफ फसलें अक्टूबर-नवंबर में काटी जाती हैं. अक्टूबर-नवंबर में बोई जाने वाली रबी फसलों की कटाई उनके पकने के आधार पर जनवरी से की जाती है. ग्रीष्मकालीन फसलें रबी और खरीफ मौसम के बीच पैदा होती हैं.
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खरीफ सीजन की बात करें तो यह मॉनसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर है. 2024 के दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीजन (जून-सितंबर) के दौरान पूरे भारत में बारिश की मात्रा 108 प्रतिशत रही है. यह बारिश सामान्य से अधिक है. अधिक बारिश की वजह से किसानों ने खरीफ में अधिक फसलें बोई हैं जो कि किसान और कृषि दोनों के लिए अच्छा संकेत है. इससे कृषि क्षेत्र के ग्रॉस वैल्यू ऐडेड यानी कि GVA में बढ़ोतरी की उम्मीद है.(ANI)
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