भारत के प्रमुख कृषि फसलों में से एक है गन्ना, जिसे कमर्शियल फसल के रूप में जाना जाता है. यह किसानों की आर्थिकी की रीढ़ है. आज के समय में, गन्ना केवल चीनी उत्पादन तक सीमित नहीं रह गया है. इथेनॉल उत्पादन में भी इसका महत्त्व बढ़ गया है, जिससे यह ऊर्जा के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा, गन्ने से कई सह-उत्पाद भी तैयार होते हैं, जिससे यह फसल किसानों के लिए एक एटीएम जैसी साबित हो रही है. गन्ने की बुवाई और उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए नई तकनीकों का विकास हुआ है. पहले गन्ने के बड़े टुकड़ों का उपयोग बीज के रूप में किया जाता था, लेकिन अब बीज की बचत और स्वस्थ पौध वाली तकनीकें उपलब्ध हैं. इन तकनीकों में सीधे गन्ने की बुवाई नहीं की जाती बल्कि अब गन्ने की नर्सरी पौध तैयार कर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है.
पौधों के बीच उचित दूरी तय करके इंटर-क्रॉपिंग फसलें भी लगाई जा सकती हैं, जो अतिरिक्त आय का जरिया बनती हैं. गन्ने की नर्सरी तैयार करके रोपाई करने की ये विधियां पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक लाभकारी साबित हो रही हैं. पारंपरिक विधि में जहां 25 से 30 क्विंटल बीज प्रति एकड़ की जरूरत पड़ती थी, वहीं नई तकनीकों में मात्र एक चौथाई बीज की जरूरत होती है.
आज के समय में किसान आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके कम समय और लागत में बेहतर उत्पादन कर सकते हैं. गन्ने की बुवाई में नई-नई तकनीकें विकसित हो रही हैं, जिससे पारंपरिक तरीकों की तुलना में खेती अधिक लाभकारी हो रही है. पारंपरिक विधियों में गन्ने की बुवाई में अधिक समय और लागत लगती थी और बीज की जमावट को लेकर किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था. जहां पहले 25 से 30 क्विंटल बीज प्रति एकड़ की जरूरत होती थी, अब 1 से 2 क्विंटल बीज से गन्ने की बुवाई की जा सकती है. इन नई तकनीकों में गन्ने के जमाव की पूरी गारंटी रहती है. गन्ने की आधुनिक बुवाई विधियों को अपनाकर किसान कम समय और लागत में अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं, जिससे गन्ने की खेती अधिक लाभकारी हो सकती है.
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इस विधि में गन्ने के सिंगल आई सेट (एक आंख वाले टुकड़े) का उपयोग किया जाता है. नर्सरी में 50-55 दिनों तक गन्ने के पौधे उगाए जाते हैं, फिर उनकी रोपाई की जाती है. STP विधि में प्रति एकड़ बीज की खपत 7 से 10 क्विंटल होती है, जो पारंपरिक विधि की तुलना में 60-70 फीसदी तक बीज लागत कम लगती है. अगर पौध को पॉलीबैग में उगाया जाए तो 1:1:1 के अनुपात में खाद, मिट्टी और रेत का उपयोग होता है. इस विधि की सफलता दर 95-99 फीसदी होती है, क्योंकि जड़ों को कोई नुकसान नहीं होता है. इस विधि से गन्ने को मुख्य खेत में रोपाई लाईन से लाईन के बीच दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है.
बड-चिप तकनीक में गन्ने की नर्सरी तैयार कर पौधों की रोपाई की जाती है. इस विधि में गन्ने के बीज की खपत पारंपरिक विधि की तुलना में काफी कम होती है. बड को फफूंदनाशक से उपचारित कर प्लास्टिक ट्रे में वर्मी कम्पोस्ट या कोकोपिट से भरी हुई खानों में बोया जाता है. जब पौधे 4-5 सप्ताह के हो जाते हैं, तो उनकी रोपाई मुख्य खेत में की जाती है. इस विधि में 80-100 किलो बीज की जरूरत होती है, जबकि पारंपरिक विधि में 25-30 क्विंटल बीज की जरूरत होती है. बड-चिप तकनीक से बीज लागत में 90 फीसदी तक की बचत होती है. गन्ने की पंक्तियों के बीच दलहनी, तिलहनी और नकदी फसलें उगाकर अतिरिक्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है. रबी और खरीफ की फसल की कटाई के बाद, नर्सरी में इस तकनीक से गन्ना पौध तैयार करके समय से गन्ने की मुख्य खेत में रोपित करके गन्ने की देर से बुवाई के नुकसान से बचा जा सकता है.
अधिकतर किसान बुवाई के लिए गन्ना बीज के 2 आंख के टुकड़ों का ही प्रयोग कर करते हैं. गन्ना विशेषज्ञों का कहना है कि इससे किसानों को गन्ने का जमाव अच्छा मिलता है. सभी किसान खेत की तैयारी करने के बाद खेत में नाली बना देते हैं और फिर सूखे में गन्ने की बुवाई कर तुरंत नाली में पानी भर देते हैं. कुछ किसान नाली बना कर पहले नाली में पानी भर देते हैं और फिर उसमें पैर या हाथों से गन्ने के टुकड़ों को दबा देते हैं. इस प्रकार गन्ना बुवाई करने से किसानों को 80 से 90 प्रतिशत जमाव मिलता है. गन्ने की नई तकनीकें पारंपरिक विधियों की तुलना में अधिक उत्पादकता और कम लागत में बेहतर समाधान प्रदान करती हैं. इन तकनीकों से किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं और गन्ने की खेती को और भी सफल बना सकते हैं.
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