लीची बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा फल है. देश के कई राज्यों में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है. इनमें बिहार और उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. लेकिन इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए अब इसकी खेती झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में की जाने लगी है. गर्मियों के शुरुआती दौर में लीची के पेड़ पर फल आने लगते हैं. लीची और आम का सीजन लगभग एक साथ ही आता है. लेकिन फलों की आवक के साथ ही लीची के पेड़ों में कीट व रोगों का प्रकोप शुरू हो जाता है. ऐसे में लीची उत्पादक किसानों को समय रहते कीट व रोगों से बचाव के उपाय कर फसल को बचाना चाहिए ताकि आर्थिक नुकसान से बचा जा सके.
लीची के पेड़ों में झुलसा रोग का प्रकोप गर्मियों में उच्च तापमान कि वजह से होता है. जिस वजह से ना सिर्फ पेड़ बल्कि लीची की फसल को काफी नुकसान होता है. इस रोग के कारण लीची के पत्ते और फल अधिक तापमान से झुलसने लगते हैं. इससे पत्तियों के सिरों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धीरे-धीरे यह पूरी फसल को बर्बाद कर देता है.
ये भी पढ़ें: Exclusive: गोमूत्र फायदेमंद है या हानिकारक? पढ़िए, 'किसान तक' की पूरी छानबीन
यह रोग लीची में अनेक प्रकार के कवकों के कारण हो सकता है. इस रोग के कारण पौधों की नई पत्तियां एवं अंकुर झुलस जाते हैं. लीची में झुलसा रोग ऊतक मृत्यु के कारण पत्तियों की नोक पर भूरे धब्बे के रूप में शुरू होता है. जिसका फैलाव धीरे-धीरे पूरे पत्ते पर हो जाता है. जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, टहनियों का ऊपरी भाग झुलसा हुआ दिखाई देता है.
लीची की फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए किसानों को मैंकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड घोल (0.2 प्रतिशत) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए. रोग के अधिक प्रकोप की स्थिति में कार्बेन्डाजिम 50% डब्लू.पी. या क्लोरोथालोनिल 75% डब्लू.पी. 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today