बनारसी लंगड़ा आम और पान के बाद अब कुंबम अंगूर को मिला जीआई टैग, जानें क्या है इसकी खासियत

बनारसी लंगड़ा आम और पान के बाद अब कुंबम अंगूर को मिला जीआई टैग, जानें क्या है इसकी खासियत

वर्ष 1832 में पहली बार तमिलनाडु में अंगूर की खेती शुरू की गई थी. अंगूर की इस किस्म की खेती की शुरुआत एक फ्रांसीसी पादरी ने की थी. इस अंगूर में कई पोषक तत्व जैसे विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और टार्टरिक एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

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बनारसी लंगड़ा आम और पान के बाद अब कुंबम अंगूर को मिला जीआई टैग, जानें क्या है इसकी खासियततमिलनाडु के कुंबम अंगूर को मिला जीआई टैग

बनारसी पान और लंगड़ा आम के बाद अब कुंबम अंगूर को जीआई टैग मिल गया है. इस अंगूर की खेती तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां कुंबम अंगूर को कुंबम पनीर थराचाई के नाम से भी जाना जाता है. इस अंगूर की खासियत यह है कि यह अन्य अंगूर के मुकाबले बेहद स्वादिष्ट होता है. जिस वजह से ना सिर्फ तमिलनाडु बल्कि बाहर भी इसकी डिमांड काफी है. खास बात यह है कि तमिलनाडु के 85% अंगूर उत्पादक किसान कुंबम अंगूर की ही खेती करते हैं.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु में स्थित कुंबुम घाटी अंगूर की खेती के लिए मशहूर है. यहां कुंबम पनीर थरचाई के कई बाग हैं. इसके अलावा किसान थेनी जिले में कुंबम अंगूर की भी खेती करते हैं. लेकिन, कुंबुम घाटी के अंगूर कुछ ज्यादा ही फेमस है. कुंबुम घाटी के लगभग 10 गांवों में बड़ी संख्या में अंगूर के बाग हैं. किसान लगभग 2,000 एकड़ में कुंबम पनीर थराचाई (कुंबम अंगूर) की खेती करते हैं. जिस वजह से उन्हें अच्छी खासी कमाई होती है.

क्या है कुंबम अंगूर का इतिहास

कंबम घाटी की जलवायु और मिट्टी कुंबम अंगूर की खेती के लिए अनुकूल माना जाता है. यहां उगाए जाने वाले अंगूरों से शराब, जूस, किशमिश, स्पिरिट और जैम बनाए जाते हैं. वर्ष 1832 में पहली बार तमिलनाडु में अंगूर की खेती शुरू की गई थी. अंगूर की इस किस्म की खेती की शुरुआत एक फ्रांसीसी पादरी ने की थी. इस अंगूर में कई पोषक तत्व जैसे विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और टार्टरिक एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है. यह बैंगनी और हल्के भूरे रंग का दिखाई देता है. यह खाने में बहुत ही स्वादिष्ट और पोष्टिक होता है. कुछ लोग इसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने में भी करते हैं.

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क्या होता है GI Tag?

जीआई टैग (GI Tag) किसी भी क्षेत्र के विशेष उत्पाद को दिया जाता है. यह टैग दुनिया भर में उस जगह को विशेष पहचान देता है. जब किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली किसी वस्तु या उत्पाद को विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त हो जाती है, तो उसे उस स्थान के होने के प्रमाण की आवश्यकता होती है, ऐसे में उस क्षेत्र की वस्तु को प्रमाणित करने के लिए एक स्थायी टैग दिया जाता है. इसे ही हम Gi Tag यानी भौगोलिक संकेत टैग कहते हैं.

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