पंजाब और हरियाणा में बासमती धान की आवक शुरू हो गई है. लेकिन इस बार किसानों को पिछले साल के मुकाबले दाम 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक कम मिल रहा है. वजह बताई गई है बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर लगाए गए 1200 डॉलर प्रति टन के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (एमईपी) को. दरअसल, भारत अपने कुल बासमती उत्पादन का करीब 80 फीसदी एक्सपोर्ट करता है. ऐसे में इसका दाम कम-अधिक एक्सपोर्ट से चढ़ता-उतरता है. निर्यातकों का कहना है कि एमईपी की वजह से 70 फीसदी पुराना स्टॉक ब्लॉक है. वो एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा है और ऊपर से नई फसल आने लगी है. ऐसे में अब किसानों को इसका सीधा नुकसान हो रहा है. सरकार के इस फैसले की वजह से पाकिस्तान को फायदा मिल रहा है. क्योंकि वो इंटरनेशनल मार्केट में हमसे सस्ता बासमती बेच रहा है.
पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर अशोक सेठी का कहना है कि 1200 डॉलर की एमईपी की वजह से देश को काफी नुकसान हो रहा है. एक्सपोर्ट के लिए यह शर्त 25 अगस्त को लगाई गई थी. इसी महीने टर्की के इस्तांबुल में लगे इंटरनेशनल फूड फेयर से इंडिया के लिए कोई आर्डर नहीं मिला. जबकि पहले यहां अच्छा ऑर्डर मिलता था. जब किसी को कम दाम में बासमती चावल मिलेगा तो फिर वो महंगा क्यों खरीदेगा. सेठी का कहना है कि भारत ने पिछले साल 4.5 मिलियन टन बासमती निर्यात किया था, जिसकी वैल्यू 38500 करोड़ रुपये से थी. उनका कहना है कि सरकार की इस पॉलिसी के चलते इसका फायदा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को मिलने लगा है.
इसे भी पढ़ें: अमेरिकी सेब, अखरोट और बादाम को लेकर भारत का बड़ा फैसला, जानिए फायदा होगा या नुकसान?
उधर, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद पद्मश्री विक्रमजीत सिंह साहनी ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य की तय की गई रकम पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा कि महंगाई को कंट्रोल करने के लिए उठाए गए कदमों की मैं सराहना करता हूं. लेकिन बासमती चावल पर लगाए गए 1200 अमेरिकी डॉलर के एमईपी की वजह से बासमती किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. किसानों की आय पर बुरा असर पड़ेगा. क्योंकि एमईपी के इस निर्णय के कारण कीमतें गिरने वाली हैं. बासमती चावल की खरीद पीडीएस के तहत नहीं की जाती है. चूंकि भारत में 2-3 फीसदी आबादी ही इस हाई वैल्यू वाले चावल का उपयोग करती है, इसलिए इस फैसले से महंगाई कम करने में कदद नहीं मिलेगी.
साहनी ने कहा कि वर्ष 2022-23 में बासमती चावल का कुल उत्पादन 60 लाख टन हुआ है. जबकि गैर-बासमती चावल का कुल उत्पादन 135.54 मिलियन टन है. गैर-बासमती उबले हुए चावल (सेला) के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है. जिसका अर्थ है कि प्रति मीट्रिक टन 300 डॉलर की किस्म को 20 फीसदी ड्यूटी के साथ निर्यात करने की अनुमति है. जबकि 1509 बासमती उबले चावल, जो चावल की अधिक कीमत वाली किस्म है, को 1200 डॉलर प्रति टन से कम दाम पर एक्सपोर्ट करने की अनुमति नहीं है. यदि चावल की कम कीमत वाली किस्म भारत से बाहर चली जाएगी और ऊंची कीमत पर रोक लग जाएगी, तो कीमतें नियंत्रित करने का एजेंडा विफल हो जाएगा.
मंडियों में इस समय बासमती की आवक शुरू हो गई है. सबसे पहले पूसा बासमती-1509 वैराइटी का धान आ रहा है. साहनी ने कहा कि एमईपी लगाने के इस फैसले से 1509 धान जो पहले से ही बाजार में आ रहा है, उसका दाम खराब हो जाएगा. एमईपी की शर्त से पहले 1509 बासमती धान 3700 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचा जा रहा था. लेकिन अब बाजार में 3200 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचा जा रहा है. निर्यात में 1509 का बिक्री मूल्य 850-900 डॉलर प्रति टन है. जबकि सरकार ने 1200 डॉलर से कम पर एक्सपोर्ट न करने की शर्त लगाई है. ऐसे में 1509 केवल भारत में बेचा जाएगा. इसलिए, भारत में धान की कीमत और गिर जाएगी. जिससे किसानों को नुकसान होगा.
पद्मश्री साहनी ने कहा कि 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन एमईपी लगाने का निर्णय निर्यात की औसत कीमत से लगभग 350 अमेरिकी डॉलर अधिक है. इसलिए इस फैसले से हमारे 70 फीसदी बासमती चावल निर्यात पर असर पड़ेगा. भारतीय निर्यातक पाकिस्तान के हाथों अपनी मेहनत की कमाई का खरीदार आधार खो देंगे. कम कीमतों के कारण पाकिस्तान द्वारा अपना बाजार स्थापित करने के बाद खोई हुई हिस्सेदारी वापस पाना आसान नहीं होगा. बासमती व्यवसाय के लिए एक प्रमुख स्थान तुर्किये में हाल ही में संपन्न इस्तांबुल खाद्य मेले में, इस एमईपी के कारण एक भी भारतीय कंपनी किसी भी किस्म की नई बासमती फसल के लिए ऑर्डर हासिल नहीं कर सकी.
इसे भी पढ़ें: किसान या कस्टमर...'कांदा' पर किसके आंसू भारी, प्याज का दाम बढ़ते ही क्यों डरते हैं सत्ताधारी?
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today