क‍िसान या कस्टमर...'कांदा' पर क‍िसके आंसू भारी, प्याज का दाम बढ़ते ही क्यों डरते हैं सत्ताधारी? 

क‍िसान या कस्टमर...'कांदा' पर क‍िसके आंसू भारी, प्याज का दाम बढ़ते ही क्यों डरते हैं सत्ताधारी? 

उपभोक्ताओं को सस्ता प्याज उपलब्ध करवाने के नाम पर केंद्र सरकार ने जब 17 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने का फैसला ल‍िया था तब देश में इसका औसत दाम स‍िर्फ 30.29 रुपये प्रत‍ि क‍िलो था. ताजे मामले के बहाने पढ़‍िए प्याज ने क‍िन सरकारों को बनाया-ब‍िगाडा. 

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क‍िसान या कस्टमर...'कांदा' पर क‍िसके आंसू भारी, प्याज का दाम बढ़ते ही क्यों डरते हैं सत्ताधारी? सरकारों को बनाती-ब‍िगाड़ती रही है प्याज (Photo-Kisan Tak).

सत्ता में पार्टी कोई भी हो, क‍िसानों को लेकर उसकी नीत‍ि-रणनीत‍ि में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं म‍िलता. सत्ताधारी नेताओं को कस्टमर के आंसू तो द‍िखाई देते हैं पर क‍िसानों के नहीं. वो बात क‍िसानों की खुशहाली की करते हैं लेक‍िन कस्टमर को नाराज नहीं होने देना चाहते. दाम बढ़ते ही इंपोर्ट ड्यूटी और एक्सपोर्ट ड्यूटी का खेल शुरू करवा देते हैं. ज‍िसकी चक्की में क‍िसान प‍िसते रहते हैं. दाम बढ़ते ही प्याज पर लगा दी गई 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी इसका बड़ा उदाहरण है. महंगाई कम करने की ज‍िम्मेदारी का बोझ बेचारे क‍िसानों के कंधों पर लाद द‍िया गया है. चाहे उनकी इनकम घट ही क्यों न जाए. इसी कड़ी में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की र‍िपोर्ट पर भी गौर करने की जरूरत है. जो बताती है क‍ि भारत के क‍िसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने के कारण साल 2000 से 2017 के बीच करीब 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. क‍िसानों की जेब पर डाली गई इस डकैती का ज‍िम्मेदार कौन है? 

बहरहाल, अब हम आते हैं प्याज (कांदा) के दाम पर. ज‍िसे कम करने की कोश‍िश में पहली बार इस पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी गई है. केंद्र ने जब 17 अगस्त को यह फैसला ल‍िया था तब देश में प्याज का औसत दाम स‍िर्फ 30.29 रुपये क‍िलो था. इतने कम दाम पर ही केंद्र द्वारा इतना बड़ा कदम उठाने के ख‍िलाफ चार द‍िन से महाराष्ट्र की कई मंड‍ियों में प्याज की नीलामी बंद है. क्योंक‍ि इस फैसले से एक्सपोर्ट बहुत कम हो जाएगा और घरेलू बाजार में क‍िसानों को म‍िलने वाला दाम और कम हो जाएगा. हालांक‍ि, राज्य के बड़े नेताओं द्वारा केंद्र पर दबाव बनाने के बावजूद इस फैसले को वापस नहीं ल‍िया गया. सवाल ये है क‍ि क्या आने वाले व‍िधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में प्याज की महंगाई की मार से खुद को बचाने के ल‍िए सरकार ने यह फैसला ल‍िया है? 

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सरकार बनाती-ब‍िगाड़ती है प्याज

दरअसल, प्याज के ऊंचे भाव से सत्ता में बैठे नेता बहुत डरते हैं. क्योंक‍ि प्याज की बढ़ती कीमतों से कई बार सरकारें बनी-बिगड़ी हैं. भारत में गेहूं और चावल के दाम र‍िकॉर्ड ऊंचाई पर हैं और इसल‍िए दोनों के एक्सपोर्ट पर पहले से बैन लगा हुआ है. अब दो साल बाद प्याज का दाम जैसे ही बढ़ना शुरू हुआ था वैसे ही सरकार ने इस पर भारी भरकम एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी. ज‍िससे क‍िसान गुस्से में हैं.

बहरहाल, प्याज पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने के बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है. महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत द‍िघोले का कहना है क‍ि वर्तमान सरकार भी प्याज की कीमतों से डर गई है क‍ि कहीं इससे व‍िधानसभा और लोकसभा चुनावों में नुकसान न हो जाए. सरकार क‍िसानों की जेब काटकर अपनी स‍ियासी रोटी पकाना चाहती है. उपभोक्ताओं को खुश करने के ल‍िए उत्पादकों को मारने की नीत‍ि खेती को खत्म करके भारत को एक आयातक देश बना देगी. 

भारत में प्याज का उत्पादन.

नेताओं को रुलाता प्याज

  • प्याज से सत्ताधारी नेताओं के डरने की कहानी कोई नहीं नहीं है. इसकी एक द‍िलचस्प ल‍िस्ट है. बताते हैं क‍ि 1977 से 1980 तक जनता पार्टी की सरकार के दौरान देश में प्याज के दाम काफी बढ़ गए थे. साल 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने इसे बड़ा मुद्दा बना द‍िया. वो अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्याज की माला पहनकर घूम रही थीं. नतीजतन, आम चुनावों में जनता पार्टी की हार हो गई. 
  • प्याज के दाम द‍िल्ली में भी चुनौती बने. जहां 1998 में प्याज के बढ़ते भाव के चलते बीजेपी को अपने 3 सीएम बदलने पड़े थे. तब बीजेपी नेता मदन लाल खुराना यहां मुख्यमंत्री थे. प्याज की बेतहाशा बढ़ती कीमतों ने विपक्षी दलों के हाथ सरकार को घेरने का मौका दे द‍िया. दबाव इतना बढ़ गया कि खुराना को हटा द‍िया गया. साहिब सिंह वर्मा सीएम बनाए गए, लेक‍िन प्याज के दाम नहीं घटे. पार्टी ने एक बार फिर मुख्यमंत्री बदला. इस कार सुषमा स्वराज को कमान दी गई. उन्होंने इसके दाम को काबू करने के ल‍िए कई कदम उठाए, लेकिन वे असफल रहीं. प्याज की महंगाई एक ऐसा चुनावी मुद्दा बना कि पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ गया. 
  • इसी साल यानी 1998 में महाराष्ट्र में भी प्याज की महंगाई को लेकर एक द‍िलचस्प वाकया हुआ था. दिवाली त्यौहार के दौरान राज्य में प्याज की भारी कमी हो गई, ज‍िससे दाम काफी बढ़ गए थे. तब कांग्रेस नेता के तौर पर छगन भुजबल ने इस पर तंज कसने के लिए राज्य के तत्कालीन सीएम मनोहर जोशी को मिठाई के डिब्बे में प्याज रखकर भेज द‍िया. इसके बाद जोशी ने राशन कार्ड धारकों को 45 रुपये क‍िलो वाला प्याज 15 रुपये के भाव में उपलब्ध करवाया. 
  • इस साल राजस्थान में भी सत्ताधारी नेताओं को प्याज रुला रहा था. विधानसभा चुनाव में प्याज मुद्दा था. बीजेपी नेता और तत्कालीन सीएम भैरोसिंह शेखावत ने चुनाव हारने के बाद कहा था, "प्याज हमारे पीछे पड़ा था". इसी साल बीजेपी की अगुवाई वाले राजग गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी गिरी थी. तब वाजपेयी ने कहा था, "जब-जब कांग्रेस सत्ता में नहीं होती प्याज की कीमतें बढ़ जाती हैं". 
  • प्याज के दाम बढ़ने को मुद्दा बनाकर दिल्ली की सत्ता में काब‍िज हुई कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार भी प्याज की वजह से ही चली गई थी. साल 2013 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्याज का दाम आसमान पर पहुंचने लगा था. तब शीला दीक्षित ने इमोशनल होकर कहा था, "हफ्तों बाद मैंने भिंडी के साथ प्याज खाई है". तब प्याज की कीमतें 100 रुपये क‍िलो तक पहुंच गई थीं. 
भारत से प्याज का एक्सपोर्ट.

प्याज और महाराष्ट्र की स‍ियासत 

महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है. यहां देश के कुल उत्पादन का करीब 43 फीसदी प्याज पैदा होता है. यहां क‍िसानों की लॉबी इतनी मजबूत है क‍ि उन्हें स‍ियासत इग्नोर नहीं कर सकती. इसील‍िए जब पहली बार प्याज पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगी वो भी 40 फीसदी तो राज्य में हंगामा खड़ा हो गया. पक्ष-व‍िपक्ष सबके नेता इस मुद्दे पर बात करने लगे. व‍िपक्ष क‍िसानों को सरकार के ख‍िलाफ आंदोलन करने के ल‍िए हवा दे रहा था तो राज्य की सत्ता में काब‍िज नेता केंद्र के सुर में सुर म‍िलाकर लीपापोती करने में जुटे रहे. 

राज्य के ड‍िप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस अपने जापान दौरे से ही वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से संपर्क कर इस मामले का रास्ता निकालने का अनुरोध क‍िया. लेक‍िन हुआ कुछ नहीं. एक फीसदी भी एक्सपोर्ट ड्यूटी कम नहीं की गई. जबक‍ि दूसरे ड‍िप्टी सीएम अजित पवार ने सूबे के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे को गोयल से मिलने के ल‍िए तुरंत दिल्ली रवाना कर द‍िया. मुंडे द‍िल्ली आए गोयल से म‍िले लेक‍िन उनके कहने पर भी एक्सपोर्ट ड्यूटी न घटाई गई और न खत्म की गई. सीएम एकनाथ शिंदे के कहने से भी कुछ नहीं हुआ. 

महाराष्ट्र के नेता नफेड द्वारा 2 लाख टन अत‍िर‍िक्त प्याज खरीदने के एलान को अपनी उपलब्ध‍ि बताकर खुद पीठ थपथपाने की कोश‍िश कर रहे हैं. लेक‍िन पीयूष गोयल ने इन नेताओं के बयानों की यह कहकर हवा न‍िकाल दी क‍ि दो लाख टन और प्याज खरीदने का फैसला भी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने के द‍िन 17 अगस्त को ही हो गया था. हालांक‍ि, क‍िसान 2410 रुपये क्व‍िंटल पर स‍िर्फ दो लाख टन प्याज खरीद को ऊंट के मुंह में जीरा बता रहे हैं. क्योंक‍ि देश में 310 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ है. साथ ही क‍िसानों का यह भी आरोप है क‍ि नफेड की खरीद पारदर्शी नहीं है. एनसीपी नेता शरद पवार ने इसे असंतोषजनक फैसला करार द‍िया.  

एक साल में ही 32 फीसदी बढ़ा है एक्सपोर्ट

पॉल‍िट‍िक्स से अलग हटकर अब हम इसके एक्सपोर्ट पर भी थोड़ी बात कर लेते हैं. भारत में प्याज उत्पादन और एक्सपोर्ट दोनों ने र‍िकॉर्ड बनाया है. प‍िछले कुछ वर्षों से उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. जबक‍ि एक्सपोर्ट की बात करें तो वह प‍िछले एक साल में ही 31.71 फीसदी बढ़ गया है. साल 2022-23 में ही प्याज एक्सपोर्ट से भारत को 4,518.54 करोड़ रुपये हास‍िल हुए हैं.

क‍िसान एक्सपोर्ट और बढ़ाने की मांग कर रहे थे, लेक‍िन सरकार ने एक ऐसा कदम उठा ल‍िया ज‍िससे उपभोक्ताओं को तो राहत म‍िलेगी लेक‍िन क‍िसानों को बड़ी चोट पहुंचेगी. बहरहाल, देखना यह है क‍ि क‍िसानों को एक्सपोर्ट ड्यूटी से कब राहत म‍िलेगी. खाद्य और कृष‍ि संगठन (FAO) ने साल 2020 के र‍िकॉर्ड के आधार पर भारत को दुन‍िया का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश बताया है. दुन‍िया के प्याज उत्पादन में भारत की ह‍िस्सेदारी 24.95 फीसदी है.

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