इस साल धान की फसल का रकबा पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, चालू खरीफ सीजन में धान की बुवाई का क्षेत्रफल 245.1 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष के 216.2 लाख हेक्टेयर की तुलना में 13.4 प्रतिशत अधिक है. हालांकि, रकबे में यह बढ़ोतरी एक अच्छी खबर है, लेकिन इसके साथ ही फसल को कीटों के प्रकोप से बचाने की चुनौती भी बढ़ जाती है. फसल की शुरुआती अवस्था में तना छेदक, फुदका (हॉपर) और पत्ती लपेटक जैसे प्रमुख कीटों का आक्रमण होता है, जो पौधे की बढ़वार और उपज दोनों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए, एक अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने के लिए इन कीटों की समय पर पहचान कर उनके नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम उठाना बेहद जरूरी है, ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके.
फुदका कीट धान की फसल के लिए बहुत हानिकारक है. यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है: हरा फुदका और भूरा फुदका. हरा फुदका (Green Leafhopper) कीट हरे रंग का होता है और पत्तियों से रस चूसता है, जिससे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है. दूसरा है भूरा फुदका (Brown Plant Hopper) यानी बीपीएच. यह फसल के लिए बेहद हानिकरक हानिकारक है. यह कीट पौधे के तने के निचले हिस्से यानी पानी की सतह के पास में समूह में पाया जाता है और तने से रस चूसता है. इसके प्रकोप से पौधे पूरी तरह सूख जाते हैं, जिसे 'हॉपरबर्न' (Hopper burn) कहा जाता है.
खेत में पौधों के निचले हिस्सों की नियमित निगरानी करें. भूरे फुदके के नियंत्रण के लिए, कीटनाशक का छिड़काव पौधे के तने और जड़ों की ओर करें. इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 1 मिलीलीटर दवा को 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
पत्ती लपेटक कीट पत्तियों को नुकसान पहुंचाकर पौधे की भोजन बनाने की प्रक्रिया को बाधित कर देता है. इसकी सुंडी (लार्वा) पत्ती के दोनों किनारों को रेशम जैसे धागे से सिलकर उसे लपेट देती है. यह लिपटी हुई पत्ती के अंदर रहकर उसके हरे पदार्थ (क्लोरोफिल) को खुरचकर खाती है. प्रभावित पत्तियां ऊपर से सफेद और जालीदार दिखाई देती हैं और बाद में सूख जाती हैं. फसल में प्रकोप दिखने पर, खेत के दोनों छोर से एक लंबी रस्सी पकड़कर फसल के ऊपर से फिराएं. ऐसा करने से सुंडियां पानी में गिरकर नष्ट हो जाती हैं. अधिक प्रकोप होने पर डाइमेथोएट 30% EC 1 मिलीलीटर दवा को 1 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करें और फसल पर छिड़काव करें.
तना छेदक कीट धान के सबसे हानिकारक कीटों में से एक है, जो फसल को किसी भी अवस्था में नुकसान पहुंचा सकता है. इस कीट की सुंडी तने के अंदर घुसकर उसके भीतरी भाग (गाभ) को खा जाती है. प्रारंभिक अवस्था में प्रकोप होने पर पौधे का मुख्य गाभा सूख जाता है, जिसे 'डेड हार्ट' कहते हैं. बालियां आने की अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूखकर सफेद हो जाती हैं और उनमें दाने नहीं भरते, जिसे 'सफेद बाली' (White Ear) कहते हैं. इसका प्रकोप जुलाई से नवंबर के बीच सबसे अधिक होता है.
रोकथाम के लिए प्रकोप दिखने पर, पत्तियों के ऊपरी सिरे को काटकर हटा दें. इससे तना छेदक के अंडे खेत तक नहीं पहुंच पाते हैं. अगर प्रकोप अधिक हो, तो इन कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करें-कार्बोफ्यूरॉन 3G: 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में 3-5 सेमी पानी होने पर डालें या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4G: 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.
समय पर कीटों की पहचान और एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकों का उपयोग करके किसान अपनी मेहनत को बर्बाद होने से बचा सकते हैं और धान की भरपूर उपज प्राप्त कर सकते हैं.
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