राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि चावल हमारी खाद्य सुरक्षा का आधार है, इसलिए इसके पोषण संबंधी पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए. कम आय वाले समूहों का बड़ा वर्ग चावल पर निर्भर करता है, जो अक्सर उनके लिए दैनिक पोषण का एकमात्र स्रोत होता है, इसलिए चावल के जरिए प्रोटीन, विटामिन व आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने से कुपोषण से निपटने में मदद मिल सकती है. भारत आज चावल का अग्रणी उपभोक्ता व निर्यातक है. जब देश आजाद हुआ था तब स्थिति अलग थी, उन दिनों हम अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर थे. वो कटक ओडिशा स्थित राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (एनआरआरआई) में आयोजित भारतीय चावल कांग्रेस-2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रही थीं.
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछली शताब्दी में जैसे-जैसे सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हुआ, चावल नए स्थानों पर उगाए जाने लगा और नए उपभोक्ता मिलने लगे. धान की फसल के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन दुनिया के कई हिस्से जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं. सूखा, बाढ़, चक्रवात अब अधिक बार आते हैं, जिससे चावल की खेती अधिक कमजोर हो जाती है.
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मुर्मू ने कहा कि पारंपरिक किस्मों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. आज हमें बीच का रास्ता खोजना है, एक ओर पारंपरिक किस्मों का संरक्षण करना है और दूसरी तरफ पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है. मिट्टी को रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से बचाने की चुनौती भी है, हमें मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए ऐसे उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की जरूरत है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वैज्ञानिक पर्यावरण के अनुकूल चावल उत्पादन प्रणाली विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं. एनआरआरआई द्वारा देश का पहला उच्च प्रोटीन चावल विकसित करने पर उन्होंने कहा कि इस तरह की जैव-फोर्टिफाइड किस्मों का विकास आदर्श है.
इस मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि खाद्यान्न की दृष्टि से हम सिर्फ आत्मनिर्भर ही नहीं, दुनिया को भी मदद करने वाले देशों में से एक हैं, जो हमारे लिए गौरव का विषय है. कुपोषण की समस्या हल करने के लिए बायोफोर्टिफाइड चावल की किस्में पैदा करना चाहिए. एनआरआरआई ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए सीआर 310, 311 व 315 नामक किस्में विकसित की हैं. संस्थान ने चावल की 160 किस्में विकसित की हैं. तोमर ने कहा कि बायोफोर्टिफाइड चावल पीडीएस में दिए जाएं, इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू करते हुए बजट में प्रावधान कर दिया गया है.
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तोमर ने कहा कि 2010 में देश में चावल उत्पादन 89 मिलियन टन ही था, जो 2022 में 46 प्रतिशत बढ़कर 130 मिलियन टन हो गया है, जिसमें किसानों एवं वैज्ञानिकों का अहम योगदान है. भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और निर्यात में हम पहले नंबर पर हैं. उन्होंने कहा कि कृषि की लागत कम करने, उत्पादन बढ़ाने व पानी की कमी जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग अत्यंत आवश्यक है. कृषि क्षेत्र में टेक्नोलॉजी आए व निजी निवेश हो, इसके लिए भी बजट का प्रावधान किया गया है.
भारत सरकार, राज्यों के साथ मिलकर डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन पर काम कर रही है, जिसके लिए बजट में 450 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान हैं, जो साहूकारी कर्ज में नहीं दबें, इसलिए अल्पकालिक ऋण के रूप में जहां 2014 तक 6-7 लाख करोड़ रु. हुआ करता था, अब सरकार ने इसे बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये कर दिया है. कोशिश है कि कृषि क्षेत्र में निजी निवेश आए, जिसके लिए 1 लाख करोड़ रुपये का एग्री इंफ्रा फंड बनाया गया है. इसके तहत अब तक 16 हजार करोड़ रुपये का लोन मंजूर किया गया है.
इस मौके पर ओडिशा के राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल और ओडिशा के कृषि एवं पशु संसाधन विकास मंत्री रणेंद्र प्रताप स्वाईं, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक, एसोसिएशन आफ राइस रिसर्च वर्कर्स के अध्यक्ष डॉ. पीके अग्रवाल, संस्थान के निदेशक डॉ. एके नायक और आयोजन सचिव डा. एस. साहा मौजूद सहित कई लोग मौजूद रहे.
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