किसानों ने CCI से कपास खरीद की शर्तों में छूट देने की मांग की हैमहाराष्ट्र के कॉटन बेल्ट विदर्भ में शेतकरी संगठन के किसानों और नेताओं ने कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) से कपास खरीद की शर्तों में ढील देने की मांग की है. किसानों और नेताओं ने भारी बारिश के कारण खराब हुई खड़ी कपास की फसल और उसमें बढ़े हुए नमी के स्तर को देखते हुए खरीद के नियमों में ढील देने का आग्रह किया है.
केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार, CCI अभी सिर्फ तभी कपास खरीदता है जब उसमें नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से कम हो. हालांकि, लगातार बारिश के कारण कई जिलों में नमी का स्तर 12 से 20 प्रतिशत के बीच पहुंच गया है, जिससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के तहत अपनी उपज बेचने में मुश्किल हो रही है.
भारत सरकार ने 2025-26 कपास सीजन के लिए MSP मीडियम स्टेपल कपास (24.5-25.5 mm स्टेपल लंबाई) के लिए 7,710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे स्टेपल कपास (29.5-30.5 mm स्टेपल लंबाई) के लिए 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन खुले बाजार में कीमतें 3 रुपये से 5.60 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच हैं - जो MSP से बहुत कम है - जिससे किसानों को कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
'बिजनेसलाइन' की एक रिपोर्ट के अनुसार, कपास सीजन 2024-25 के दौरान CCI ने महाराष्ट्र में MSP खरीद अभियान के तहत किसानों से 6.27 लाख ट्रांजैक्शन के जरिए लगभग 10,714 करोड़ रुपये की 144.55 लाख क्विंटल कपास (29.41 लाख लिंट कॉटन गांठों के बराबर) खरीदी है.
शेतकरी संगठन के नेताओं ने मांग की है कि CCI नमी की तय यानी निर्धारित सीमा बढ़ाए और क्वालिटी की शर्तों में ढील दे ताकि बारिश से प्रभावित किसानों को खरीद से बाहर न किया जाए. उन्होंने CCI के माध्यम से प्रत्येक किसान से प्रति एकड़ केवल पांच क्विंटल कपास खरीदने की पाबंदी पर भी आपत्ति जताई और इस सीमा को हटाने की मांग की.
शेतकरी संगठन के अकोला जिला प्रमुख अविनाश पाटिल ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, "बारिश ने पहले ही फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया है और कटाई में देरी हुई है. CCI की खरीद में देरी से और सीमित खरीद के कारण कई किसान परेशान हैं."
किसानों ने चिंता जताई है कि कई खरीद केंद्र अभी तक शुरू नहीं हुए हैं, जिससे वे अपनी फसल के भविष्य को लेकर परेशान हैं. जब तक CCI जल्द ही बड़े पैमाने पर खरीद शुरू नहीं करता और क्वालिटी के नियमों में ढील नहीं देता, तब तक कपास उगाने वाले किसानों ने चेतावनी दी है कि उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है. इतना ही नहीं, उन्हें प्राइवेट ट्रेडर्स को मजबूरी में कम कीमत पर कपास बेचना पड़ सकता है.
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