भारत के अधिकतर घरों की थाली में परोसे जाने वाले व्यंजनों में हींग का अपना अहम स्थान है. तेज गंध और छोटे कंकड़ की तरह दिखने वाली हींग बहुत थोड़ी सी मात्रा में भी खाने पर स्वाद बढ़ा देती है. आज भारत के व्यंजनों में हींग एक जरूरी मसाला है. वहीं हींग को अफगानिस्तान और ईरान से आयात करना पड़ता है. ऐसे में पिछले कुछ वर्षों से कृषि वैज्ञानिक अथक प्रयास के बाद अब लाहौल स्पीति में भी हींग के पौधे तैयार होने लगे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हींग को बनाने के लिए पौधे के दूध का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अवाला स्टार्च और गोंद का भी इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं पूरा प्रोसेस.
हींग के पौधे को तैयार होने में लगभग पांच साल का समय लगता है. इसकी जड़ के ऊपर का भाग गाजर की तरह होता है. वहीं बात करें हींग बनाने की तो पौधे की जड़ से निकलने वाले दूध से हींग बनाई जाती है. साथ ही हींग तीन रूपों में उपलब्ध होती है. जैसे आंसू, मास और पेस्ट. आंसू ही की सबसे शुद्ध रूप है. इस तरीके से बनी हींग गोल या चपटा वहीं पीले, काले या भूरे रंग की होती है.
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मास हींग की बात करें तो ये साधारण होती है जो कि आकार में एक समान होती है. इसके अलावा पेस्ट हींग सबसे शुद्ध हींग मानी जाती है. इसकी तीखी गंध के कारण इसे लोग पसंद नहीं करते हैं. इसलिए इसे स्टार्च और गोंद के साथ मिश्रित किया जाता है. मिश्रित होने के बाद लोग सबसे अधिक इसी हींग का इस्तेमाल करते हैं.
शुद्ध कच्चे हींग की कीमत उसकी क्वालिटी पर निर्भर करती है. ऐसे में बात करें कीमत की तो एक किलो शुद्ध हींग की कीमत लगभग 5 हजार से लेकर 25 हजार रुपये तक होती है. वहीं किसानों को इसके एक पौधे से करीब 20 से 25 ग्राम हींग प्राप्त होती है. ऐसे में किसान अगर एक हेक्टेयर जमीन में हींग की खेती करते हैं तो पांच साल में लगभग 9 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं.
हींग की खेती के लिए ठंडा वातावरण काफी अनुकूल माना जाता है. इसके पौधे को पूरी धूप की जरूरत होती है. साथ ही इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है. हींग की खेती बीज के माध्यम से की जाती है. वहीं इसकी खेती पहाड़ो पर ढलाई नुमा जमीन पर करना चाहिए. साथ ही इसके पौधे या बीज की बुवाई का सही समय ठंड का मौसम होता है.
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