हिमाचल प्रदेश में आम का सीजन लगभग समाप्त होने वाला है, लेकिन बागवानी विभाग अभी भी गहरी नींद से नहीं जागा है. अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा नहीं की गई है. ऐसे में हो रही देरी से पता चलता है कि अधिकारी किसानों की वास्तविक परेशानियों के प्रति कितना उदासीन हैं. सूत्रों से पता चला है कि विभाग ने एमएसपी का प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेजा था, लेकिन सरकार में संबंधित अधिकारी चुनाव में व्यस्त थे. ऐसे में आम उत्पादक किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं.
हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों में आम की खेती की जाती है. खासकर कांगड़ा जिले में करीब 21,600 हेक्टेयर में आम की खेती होती है. उन्नत किस्मों के अलावा जिले के लगभग हर गांव में स्थानीय किस्म के आम के बाग हैं. कहा जाता है कि जिले में किसानों के लिए आम आय का स्रोत बनता जा रहा है. लेकिन फलों की समय पर खरीद, भंडारण या संरक्षण के अभाव में उत्पादकों को उपज का अधिकतम लाभ नहीं मिल पा रहा है.
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दौलतपुर गांव के निवासी पवन हाईवे पर आम बेचकर आजीविका चलाने वाले कई विक्रेताओं में से एक हैं. आम की कीमत 40 से 100 रुपये प्रति किलो के बीच है. कांगड़ा शहर में रहने वाले आम उत्पादक रोहित सैमुअल ने कहा कि इस साल आम की फसल असाधारण रूप से अच्छी रही है. पिछले साल के विपरीत, वसंत में समय पर बारिश होने के कारण फूलों की कलियों में कोई फंगल संक्रमण नहीं हुआ. हालांकि, असाधारण रूप से गर्म और शुष्क गर्मी और पानी की कमी के कारण फल का आकार तुलनात्मक रूप से छोटा था.
उन्होंने कहा कि मेरे परदादा द्वारा लगाए गए 150 साल पुराने लंगड़ा किस्म के पेड़ से 500 किलो आम का उत्पादन हुआ है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. उनके अनुसार, पेड़ के नीचे बक्सों में रखी गई मधुमक्खियों के परागण ने उनके लिए अद्भुत काम किया. अधिकारी इस वृद्धि का श्रेय फूल आने की अवधि के दौरान अनुकूल तापमान और मौसम की स्थिति को देते हैं, जबकि पिछले साल बारिश ने इस पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था. आम की कटाई का मौसम जुलाई तक रहता है, कुछ देर से आने वाली किस्मों की कटाई अगस्त में भी की जाती है.
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