देश में एक तरफ जहां सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. दिल्ली में टमाटर की कीमतों ने संचुरी पार ली है, वहीं दूसरी तरह मध्य प्रदेश के बड़वानी में किसान बैंगन को मवेशियों को खिला रहे हैं. किसानों का कहना है कि बड़ी उम्मीद से उन्होंने बैंगन की खेती की थी, अच्छी पैदावार भी हासिल हुई. पर अब परेशानी यह है कि उन्हें बैंगन का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. पिछले 25 दिनों से थोक बाजार में बैंगन खरीदने में कोई भी व्यापारी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है. खरीदार नहीं मिलने के कारण किसान अपनी फसल को बेचने के लिए मजबूर हैं या फिर अपनी फसल को वे मवेशियों को खिला रहे हैं.
बाजार में बैंगन की इस स्थिति के कारण किसानों को लाखों रुपये के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई किसानों की पूंजी डूब गई है. बैंगन की खेती में नुकसान से निराश किसान अब इसकी खेती छोड़ने का मन बना रहे हैं. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कारी गांव के किसान दीपक गहलोत ने अपनी आय बढ़ाने की उम्मीद में बैंगन की खेती की थी. पर जब खेत में बैंगन तैयार हुआ तो इसके दाम घट गए. आज बाजार में बैंगन 12-15 रुपये प्रति किलोग्राम से घटकर 1-2 रुपये किलो पर आ गया है. जबकि पिछले साल किसानों को इसके अच्छे दाम मिले थे. इस साल तो हजारों क्विंटल बैंगन सड़ रहे हैं.
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दीपक गहलोत ने बताया कि उन्होंने बैंगन की खेती करने के लिए प्रति एकड़ 25,000 से 30,000 रुपये तक की राशि खर्च की थी. इस तरह से उन्होंने बैंगन की खेती करने के लिए लगभग डेढ़ लाख रुपये खर्च किए थे. पर उन्हें लाभ नहीं हो रहा है. बैंगन की अच्छी कीमत नहीं मिल पाने के कारण अब उन्हें अपनी लागत भी निकालने में भी मुश्किल हो रही है. उन्होंने कहा कि बाजार में बैंगन के जिस तरह से दाम मिल रहे हैं उससे यह लगता है कि बाजार में बैंगन बेचने के बजाय उसे मवेशियों को खिला दिया जाए, ताकि कम से कम मवेशियों का पेट अच्छे से भर जाएगा.
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किसान इसलिए भी अधिक हताश हो गए हैं क्योंकि कम कीमत मिलने और किसानों को नुकसान होने के बाद भी नेता और जिला प्रशासन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. किसी ने भी किसानों को आश्वासन नहीं दिया है. खुदरा बाजार में बैंगन 20-25 रुपये किलोग्राम की दर से बिक रहा है पर थोक बाजार में बैंगन को खरीदने वाला कोई व्यापारी नहीं मिल रहा है. इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है. बता दें कि पिछले साल नवंबर से जनवरी तक बैंगन की अच्छी कीमतें मिली थीं. इससे उत्साहित होकर इस बार किसानों ने अधिक क्षेत्र में इसकी खेती की थी. हालांकि किसानों को इसका फायदा नहीं हुआ.
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