
सोमवार 10 अप्रैल, दोपहर लगभग 12 बजे मैं हरियाणा-यूपी बॉर्डर स्थित होडल कस्बे में पहुंचा. यह उत्तर प्रदेश के मथुरा से सटा हुआ हरियाणा का क्षेत्र है. देश के कुल गेहूं उत्पादन में 10.8 फीसदी का योगदान देने वाले हरियाणा में अनाज की खरीद कैसी चल रही है इसकी जानकारी लेने मुझे यहां की पुरानी अनाज मंडी में पहुंचना था. लेकिन हमने होडल में एंट्री करते ही दिल्ली-आगरा हाइवे पर स्थित नई अनाज मंडी में हर तरफ खुले में रखे गए गेहूं को देखा तो पहले यहां के हालात को समझने की कोशिश की. पता चला कि गेहूं की सरकारी खरीद ही नहीं हो रही है, जिसकी वजह से इतना अनाज खुले में पड़ा हुआ है. पल-पल बदलते मौसम के समय ऐसी स्थिति किसानों के लिए बहुत चिंताजनक है. क्योंकि, पहले से भीगे गेहूं पर अगर फिर बारिश पड़ी हो नुकसान का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा.
राज्य सरकार ने एक अप्रैल से एमएसपी पर खरीद शुरू करने का एलान किया था. लेकिन, दस दिन बीतने के बाद भी ग्राउंड पर खरीद नहीं शुरू हो सकी है. बहरहाल, हमने कुछ जगहों पर नमी की वजह से गेहूं खरीद न होने की खबर सुनी थी. इसलिए नई अनाज मंडी में एक शख्स से मॉइश्चर मीटर लेकर सबसे पहले नमी चेक की. नमी जांचने वाली मशीन 10.2 फीसदी नमी दिखा रही थी. एमएसपी पर गेहूं खरीद के लिए 12 फीसदी तक नमी मान्य होती है.
ऐसे में यह बात तो खारिज हो जाती है कि सहां नमी ज्यादा होने की वजह से खरीद बंद है. यहां पर एमएसपी पर बेचने के लिए ट्रॉलियों से लगातार गेहूं लाया जा रहा था. मंडी में हर तरफ खुले में अनाज रखा हुआ था. लेकिन, जब खरीद होती है तो एक तरफ गेहूं आता है और दूसरी ओर सरकार उसे गोदाम तक पहुंचवाती रहती है. ऐसे में जगह खाली होती रहती है.
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करीब एक घंटे बाद दोपहर एक बजे मैं होडल की पुरानी अनाज मंडी पहुंच चुका था. यहां सबसे पहले हमने मार्केट कमेटी के अधिकारियों से मिलने का फैसला किया. यहां सचिव लता से बात की तो उन्होंने इस बात की पुष्टि कर दी कि अभी गेहूं की सरकारी खरीद नहीं हो रही है. यहां पर हरियाणा वेयरहाउस कारपोरेशन और हैफेड को खरीद का जिम्मा मिला हुआ है.
जब हमने खरीद न होने की वजह पूछी तो लता ने बताया कि बारिश के बाद गेहूं की फसल पर असर पड़ा था. ऐसे में किसानों के हित को देखते हुए गुणवत्ता नियमों में ढील देने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखा था. नए नॉर्म्स नहीं आए हैं इसलिए खरीद बंद है. लता ने बताया कि नए नॉर्म्स आते ही हैफेड सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को जबकि हरियाणा वेयरहाउस कारपोरेशन मंगलवार, बृहस्पतिवार और शनिवार को खरीद करेगा.
गेहूं की सरकारी न होने की वजह से सीधे तौर पर किसानों और आढतियों को नुकसान है. जबकि व्यापारियों को फायदा है. कुछ हद तक सरकार को भी. पहले व्यापारियों को क्या फायदा है इसे समझते हैं. जब एमएसपी पर खरीद नहीं शुरू हुई है तो मजबूरी में किसान व्यापारियों को गेहूं बेच रहे हैं. व्यापारी भी बदले हालात का फायदा उठा रहे हैं और किसानों को एमएसपी से सौ रुपये प्रति क्विंटल कम दाम देकर गेहूं ले रहे हैं. वो 2020 रुपये पर खरीद कर रहे हैं. जबकि उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के मुताबिक 10 अप्रैल को देश में गेहूं का औसत होलसेल दाम 2580.33 रुपये प्रति क्विंटल था.
इसका मतलब यह है कि जहां पर खरीद का विकल्प नहीं है वहां पर किसानों को एमएसपी से ऊपर दाम मिलने की बात छोड़िए एमएसपी भी नहीं मिल रहा है. केंद्र सरकार ने नई फसल आने से ठीक पहले ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत रियायती भाव पर गेहूं बेचकर उनका नुकसान किया, फिर बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि और अब गुणवत्ता को लेकर खरीद के नॉर्म्स बदलने के नाम पर उनका नुकसान हो रहा है.
होडल की अनाज मंडी में लेखन सौरोत नाम के एक किसान ने कहा कि पैसे की मजबूरी में काफी किसानों ने 2020 रुपये प्रति क्विंटल पर अपना गेहूं व्यापारियों को बेचा है. किसानों को अगली फसल के लिए पैसे चाहिए, दस दिन हो गए सरकारी खरीद नहीं हुई, इसलिए व्यापारियों को गेहूं बेचने वाले किसानों को सीधे तौर पर प्रति क्विंटल पर 100 रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है. सरकारी रेट यानी एमएसपी 2125 रुपये प्रति क्विंटल है.
जो लोग व्यापारियों को गेहूं नहीं बेच रहे हैं उनका अनाज खुले में पड़ा हुआ है. यहां की दोनों मंडियां भरी हुई हैं. पुरानी मंडी में एक शेड है उसमें कितना अनाज रखा जाएगा. बारिश आ गई तो खुले में पड़े गेहूं का कौन माई-बाप होगा. अब तो गेहूं में नमी भी ज्यादा नहीं है, फिर खरीद क्यों नहीं शुरू हो रही है यह बड़ा सवाल है. अनाज को सुरक्षित रखना किसानों के लिए बड़ी चुनौती है.
किसानों और सरकार के बीच आढ़ती पुल का काम करते हैं. आढ़ती मंडी व्यवस्था का अहम हिस्सा हैं. वो गेहूं खरीद, उसकी सफाई, बोरी में भराई और सिलाई से लेकर उठान तक काम करते हैं. इसके एवज में उन्हें सरकार कमीशन देती है. हमने आढती एसोसिएशन के प्रधान लखविंदर से बातचीत की. उन्होंने कहा कि क्वालिटी के नए नॉर्म्स के चक्कर में खरीद बंद है. इसे जल्द से जल्द खोजना चाहिए. अब फसल मंडी में आ चुकी है, लेकिन खरीद नहीं हो रही है ऐसे में मौसम को लेकर किसानों का रिस्क बढ़ा हुआ है. अगर मौसम खराब होता है या बारिश होती है तो किसानों के नुकसान के लिए सरकार जिम्मेदार होगी. इसलिए जल्द से जल्द खरीद शुरू करनी चाहिए.
एक और आढ़ती नवीन कात्याल ने कहा कि बारिश के बाद जिस तरह से फसलों को नुकसान हुआ है उसे देखते हुए तो गुणवत्ता मानकों में छूट देना तो लाजमी है. लेकिन, इस काम में कितनी देर लगती है. अधिकारियों की वजह से देर हो रही है. उन्हें न किसानों से मतलब है और न आढ़तियों से...उन्हें तो सिर्फ अपनी सैलरी से मतलब है.
खरीद में देरी करने से किसानों की उपज भी मौसम के रिस्क पर है और किसानों को पैसा भी नहीं मिल रहा है. अगर चार दिन पहले भी राज्य सरकार ने नए नियम जारी कर दिए होते तो हम सब अब तक आधा अनाज साफ करवाकर बोरियों में भरकर गोदामों में पहुंचा चुके होते. अब तो स्थिति ऐसी है कि किसान मंडियों में फसल लाकर उसकी रखवाली करवा रहा है.
मार्च में कई बार हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने अनाज की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. न सिर्फ गेहूं की चमक कम हुई है बल्कि दानों में कालापन भी आया है. ऐसे में क्षतिग्रस्त, थोड़ा क्षतिग्रस्त, सिकुड़ा हुआ, टूटा हुआ, चमक तथा नमी के संबंध में गेहूं के निर्धारित मानदंडों में ढील देने के लिए मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सरकार ने केंद्र को पत्र लिखा था. ताकि कम गुणवत्ता वाले गेहूं की भी एमएसपी पर खरीद हो सके. केंद्र ने मध्य प्रदेश को अनुमति दे दी है. वहां नए नॉर्म्स पर खरीद हो रही है.
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सात अप्रैल को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव सुबोध कुमार सिंह से हमने इस बारे में बातचीत की थी. तब उन्होंने कहा था कि हरियाणा और पंजाब में गेहूं की सैंपलिंग के लिए टीम भेजी गई है. टीम की रिपोर्ट और सैंपल के आधार पर नियमों में छूट दी जाएगी.
तय तारीख के दस दिन बात तक गेहूं की खरीद न करने से सिर्फ किसानों में ही राज्य सरकार के खिलाफ गुस्सा नहीं है. बल्कि इससे आढ़ती भी खासे परेशान हैं. हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष बजरंग गर्ग खरीद में देरी को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार की गलत नीतियों के कारण किसान व आढ़ती दोनों बर्बाद हो रहे हैं. सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से गेहूं की सरकारी खरीद शुरू करने की बात कही थी लेकिन अधिकारी मंडियों में गेहूं की खरीद नहीं कर रहे हैं. भारी बारिश होने के कारण थोड़ा बहुत गेहूं का रंग हल्का पड़ गया है और कुछ जगहों पर थोड़ी बहुत नमी रह गई है. ऐसे में गेहूं में 12 फीसदी तक नमी होने की शर्त को बढ़ाकर 17 प्रतिशत तक करके जल्दी खरीद शुरू करनी चाहिए.
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