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60-65 दिनों में तैयार हो जाती है हरी छीमी, एक हेक्टेयर में देती है 90 क्विंटल पैदावार

60-65 दिनों में तैयार हो जाती है हरी छीमी, एक हेक्टेयर में देती है 90 क्विंटल पैदावार

मटर की चार उन्नत किस्में हैं जिनमें एक आर्केल (arkel variety) भी है. जिन लोगों को हरी छीमी चाहिए, उन्हें आर्केल किस्म ही बोना चाहिए. हरी छीमी के लिए आर्केल को सबसे उपयुक्त माना जाता है. यह मटर (green peas) की अगेती और बौनी किस्म है जो 60-65 दिनों में तैयार हो जाती है. सब्जी में इसका उपयोग सबसे अधिक होता है.

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हरी छीमी के लिए अर्केल किस्म के मटर की खेती की जाती है हरी छीमी के लिए अर्केल किस्म के मटर की खेती की जाती है

मटर की अगली उपज आने वाली है. यह मटर (green peas) सब्जी के रूप में अधिक इस्तेमाल होती है. जब वही मटर पक जाए तो उसका उपयोग दाल के रूप में किया जाता है. सब्जी के रूप में या कच्चा खाने में जिस मटर का इस्तेमाल होता है, उसे हरी छीमी कहते हैं. इस मटर के छिलके और दाने दोनों हरे होते हैं. खाने में एक अलग सी मिठास होती है. मटर प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है जिसमें हर 100 ग्राम सूखे मटर में 22.5 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है. इसके अलावा मटर में कार्बोहाइड्रेट, बिटामिन ए और सी, कैल्शियम, आयरन और फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. मटर दलहन फसल है, इसलिए यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाता है.

मटर की चार उन्नत किस्में हैं जिनमें एक आर्केल भी है. जिन लोगों को हरी छीमी (green peas) चाहिए, उन्हें आर्केल किस्म ही बोना चाहिए. हरी छीमी के लिए आर्केल को सबसे उपयुक्त माना जाता है. यह मटर की अगेती और बौनी किस्म है जो 60-65 दिनों में तैयार हो जाती है. सब्जी में इसका उपयोग सबसे अधिक होता है. आर्केल या हरी छीमी की औसत उपज क्षमता 80-90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसकी खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

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बाकी की किस्मों की बात करें तो उनमें रचना, स्वर्णरेखा, बीआर 12 आदि के नाम हैं. रचना किस्म 140-145 दिनों में तैयार होती है और 20-21 क्विंटल की उपज देती है. रचना किस्म के दाने गोल, चिकने और सफेद रंग के होते हैं. खास बात ये कि रचना किस्म के मटर पर बुकनी रोग का असर नहीं होता.

इसके बाद स्वर्णरेखा वेरायटी का नाम है. स्वर्णरेखा वेरायटी 120 दिनों में पककर तैयार होती है और 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत उपज देती है. स्पर्णरेखा किस्म का उपयोग हरे और सूखे मटर दोनों के लिए किया जाता है. इसके दाने गोल, चिकने और हल्के पीले-सफेद रंग के होते हैं. वहीं बीआर 12 किस्म का मटर 130-140 दिनों में तैयार होता है और प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल उपज देता है. इस मटर का उपयोग भी हरे और सूखे दोनों रूप में किया जाता है. इसके पौधे बड़े और फैले हुए होते हैं.

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इस सभी किस्मों में आर्केल वेरायटी (green pea arkel variety) किसानों के लिए सबसे फायदेमंद है. यह वेरायटी हरी छीमी के लिए सबसे उपयुक्त है जिसे किसान बाजार में बेचकर अच्छा दाम कमा सकते हैं. यह मटर की अगेती और बौनी किस्म है. अगेती उपज मिलने से बाजार में अधिक दाम मिलने की गुंजाइश रहती है. सभी किस्मों में आर्केल (arkel variety) किस्म सबसे कम 60-65 दिनों में तैयार हो जाती है. यानी लगभग दो महीने में मटर बिकने के लिए तैयार हो जाता है जिससे किसानों की कमाई बढ़ती है. बाकी किस्में जहां 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं, वहीं आर्केल या हरी छीमी की वेरायटी एक हेक्टेयर में 80-90 क्विंटल तक उपज देती है.