केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) खत्म करने के बाद बासमती धान की कीमतों में सुधार हुआ है, लेकिन किसान पिछले साल की दरों को लेकर अभी भी खुश नहीं हैं. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इरजायल- ईरान तनाव आने वाले महीनों में निर्यात कीमतों को प्रभावित कर सकता है. वहीं, किसानों ने कहा कि पूसा बासमती 1509 किस्म की कीमत हरियाणा की मंडियों में 2,800-2,900 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है, जबकि अधिक नमी वाली फसल एमईपी खत्म होने से पहले लगभग 2,300 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बिकती थी. किसानों की माने तो पिछले साल पीबी 1509 किस्म का मंडी रेट 3,500 रुपये प्रति क्विंटल था.
खास बात यह है कि प्रीमियम पूसा बासमती 1121 की मंडियों में आवक शुरू हो गई है. हरियाणा में इसकी कीमत 3,800-4,000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पिछले साल किसानों को 4,500-4,700 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहे थे. करनाल मंडी के कमीशन एजेंटों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि दिवाली के बाद बासमती की कीमतें बढ़ेंगी, जबकि निर्यातक इरजायल- ईरान के बीच जारी तनाव पर करीब से नज़र रख रहे हैं. उन्हें डर है कि अगर संघर्ष और बढ़ता है तो मांग में कमी आ सकती है.
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बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की इकाई एगमार्कनेट के अनुसार, जिस दिन एमईपी समाप्त किया गया था, उस दिन पीबी 1509 धान का भारित औसत मूल्य 2,512 रुपये प्रति क्विंटल था. उसके बाद से हरियाणा में 13 अक्टूबर को यह 2,756 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. पंजाब में, पीबी 1509 की वर्तमान दर 2,651 रुपये क्विंटल है, जो 13 सितंबर को औसत 2,670 रुपये क्विंटल (अमृतसर, गहरी और मजीठा मंडियों में) से कम है.
नरेश कुमार और सोम दत्त, जो हरियाणा के करनाल जिले से हैं और पारंपरिक बासमती किस्म पूसा 30 उगा रहे हैं, उन्हें पिछले साल की तुलना में बेहतर कीमतें मिलने की उम्मीद है. क्योंकि कीटों के हमले के कारण कई जगहों पर फसल खराब हो गई थी. कुमार ने कहा कि पिछले साल कीमत 7,000 रुपये क्विंटल थी. ऐसे में इस साल यह कम से कम 8,000 रुपये क्विंटल होनी चाहिए. वहीं, दत्त ने कहा कि औसत उपज पिछले साल 14-15 क्विंटल से घटकर 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ रह सकती है.
भारत के सबसे बड़े बासमती चावल उत्पादक राज्य हरियाणा के सोनीपत के बासमती किसान अशोक अंतिल ने कहा कि हम बाहरी मजदूरों के आने का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि दशहरा उत्सव अब समाप्त हो चुका है. फसल कटाई के लिए लगभग तैयार है. उन्होंने आगे कहा कि हाथ से कटाई करने की मजबूरी बनी रहेगी, क्योंकि कोई भी किसान अब पराली जलाना नहीं चाहता और अब चारे के रूप में इसकी मांग भी है. साल 2023-24 में बासमती चावल का निर्यात 5.24 मिलियन टन (एमटी) था जिसकी कीमत 5.8 बिलियन डॉलर (48,389.21 करोड़ रुपये) थी और इसकी औसत प्राप्ति 1113 डॉलर प्रति टन थी.
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चालू वित्त वर्ष (अप्रैल-अगस्त) में, बासमती चावल का शिपमेंट 2.32 मिलियन टन रहा जिसकी कीमत 2.5 बिलियन डॉलर (20,546 करोड़ रुपये) थी और इसकी औसत प्राप्ति 1,059 डॉलर प्रति टन थी. यूरोपीय संघ भारत के पारंपरिक बासमती चावल का प्रमुख खरीदार है. व्यापार नीति विशेषज्ञ एस चंद्रशेखरन ने कहा कि बासमती धान की मौजूदा कीमतें मांग-आपूर्ति से संबंधित नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ईरान को बासमती चावल का निर्यात 2018-19 में रिकॉर्ड 1.5 मिलियन टन तक पहुंच गया और 2021-22 और 2022-23 दोनों में लगभग 1 मिलियन टन पर जारी रहा. लेकिन पिछले वित्त वर्ष में यह घटकर लगभग 0.7 मिलियन टन रह गया, लेकिन 2024-25 के पहले पांच महीनों में यह 0.4 मिलियन टन के करीब पहुंच गया है.
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