पिछले 10 दिनों में देश में पराली जलाने की घटनाओं में पांच गुना वृद्धि देखी गई है, जिससे सरकार और संबंधित एजेंसियों की चिंताएं बढ़ गई हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा के कृषि भौतिकी विभाग द्वारा संचालित अंतरिक्ष से कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी प्रणाली के अनुसार, 3 अक्टूबर से 13 अक्टूबर 2024 के बीच छह राज्यों में 1542 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं. इसके विपरीत, 15 सितंबर से 3 अक्टूबर 2024 तक केवल 333 घटनाएं सामने आई थीं, जिससे यह साफ हो गया है कि पराली जलाने की घटनाओं में पिछले 10 दिनों में लगभग पांच गुना वृद्धि हुई है. हालांकि, पिछले साल की तुलना में उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में 15 सितंबर से 4 अक्टूबर 2023 तक 259 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि इस साल इसी अवधि में यह संख्या 398 तक पहुंच गई है. दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने गंभीर कदम उठाए हैं.
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने सक्रियता दिखाई है. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के जिलाधीशों को पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए और अधिक अधिकार दिए हैं. आयोग ने स्पष्ट किया है कि अगर पराली जलाने की घटनाओं को नहीं रोका गया, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी. सीएक्यूएम ने धान की पराली प्रबंधन में असफल रहने वाले नोडल और पर्यवेक्षण अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई का निर्देश दिया है. इसके साथ ही, पंजाब और हरियाणा के हॉटस्पॉट जिलों में 26 केंद्रीय टीमों को तैनात किया गया है, ताकि पराली जलाने के बजाय उसके प्रबंधन के बेहतर विकल्पों को अपनाया जा सके. चंडीगढ़ में एक धान पराली प्रबंधन प्रकोष्ठ का गठन भी किया गया है ताकि पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी और समन्वय किया जा सके.
इन राज्यों के जिला अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि कंबाइन हार्वेस्टर का इस्तेमाल बिना सुपर पुआल प्रबंधन प्रणाली (सुपर एसएमएस) के न हो. सुपर एसएमएस प्रणाली फसल की कटाई के दौरान पराली को छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में बिखेर देती है, जिससे पराली जलाने की आवश्यकता नहीं होती. बिना सुपर एसएमएस प्रणाली के हार्वेस्टरों को अनुमति नहीं दी जाएगी और ऐसे हार्वेस्टरों को जब्त करने के निर्देश दिए गए हैं.
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स्ट्रॉ रीपर : यह यंत्र कटाई के बाद खेत में पड़ी पराली को एकत्र करके छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है, जिसे बाद में चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या खेत में ही मिलाया जा सकता है.
स्ट्रॉ रेक और रेसर: यह यंत्र पराली को खेत में बिखेरने के बजाय एक जगह इकट्ठा करता है, जिससे उसकी ढुलाई और प्रबंधन आसान हो जाता है. इसका उपयोग पराली को खाद या चारे के लिए भी किया जा सकता है.
मल्चरः मल्चर यंत्र पराली और अन्य फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिलाता है, जिससे खेत में उर्वरक की मात्रा बढ़ती है और मिट्टी की संरचना में सुधार होता है. यह पराली जलाने के बजाय उसे उपयोगी बनाने का बेहतर विकल्प है.
पैड़ी स्ट्रॉ चॉपर: यह मशीन विशेष रूप से धान की पराली के लिए डिज़ाइन की गई है, जो पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में बिखेर देती है, ताकि किसान उसे जला न सकें और वह खेत में जैविक खाद के रूप में उपयोग हो सके.
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के अधिकांश किसान धान की कटाई के तुरंत बाद गेहूं की बुवाई करते हैं. धान की कटाई 15 अक्टूबर से नवंबर के पहले सप्ताह तक चलती है, जबकि गेहूं और अन्य रबी फसलों की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में होती है. किसानों के पास केवल 40-45 दिन का समय होता है, जिसमें उन्हें धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच खेत को खाली करना होता है. किसानों के पास समय की कमी और पराली को हटाने के आसान विकल्प न होने के कारण वे इसे जलाने का सहारा लेते हैं.
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पहले किसान डेयरी पशुओं के लिए पराली का उपयोग चारे के रूप में करते थे, लेकिन अब डेयरी पशु कम हो गए हैं, जिससे पराली जलाना एकमात्र विकल्प बन गया है. केंद्र सरकार पराली न जलाने के विकल्पों को बढ़ावा दे रही है, जैसे सुपर एसएमएस तकनीक और पराली प्रबंधन के अन्य टिकाऊ उपाय. इन उपायों से न केवल वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को भी बढ़ावा देगा. जिला अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि इस नियम का पालन सुनिश्चित करें, ताकि पराली जलाने की घटनाओं पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके.
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