आलू सब्जियों में मुख्य फसल है. इसकी खेती भारत में प्रमुख फसल के रूप में की जाती है. लेकिन, मौसम में होने वाले बदलाव, शीतलहर और ठंड के बढ़ने के साथ ही आलू की फसल में कई तरह के रोग और कीट लगने लगते हैं. उसमें झुलसा रोग के साथ ही लाही जैसे रोग का बढ़ना शुरु हो जाता है. इससे कई किसानों को काफी नुकसान भी झेलना पड़ता है. इस तरह के नुकसान से बचने के लिए किसानों को उचित प्रबंधन की जानकारी होनी बहुत जरूरी है. आलू को नुकसान पहुंचाने वाले रोगों में अगात झुलसा, पिछात झुलसा और लाही महत्वपूर्ण है. आइये जानते हैं इन रोगों के लक्षण और इससे बचने का तरीका.
तापमान में ज्यादा गिरावट और अधिक ठंड के कारण एस रोग का फसल में तेजी से फैलाव होता है. इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग का रिंगनुमा गोल धब्बा जैसा बनता है और धब्बों के बढ़ने से पत्तियां धीरे-धीरे करके झुलस जाती है. यह रोग बिहार में जनवरी के दूसरे और तीसरे सप्ताह में दिखाई देने लगता है.
किसान आलू की खेती के लिए स्वस्थ और स्वच्छ बीज का प्रयोग करें. फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही जिनेब 75 प्रतिशत में 2 किलों ग्राम प्रति हेक्टेयर या मैंकोजेब 75 प्रतिशत में 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत में 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और कौप्टान 75 प्रतिशत में 1.66 किलों ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए.
तापमान के 10 डिग्री से 19 डिग्री सेल्सियस रहने पर आलू में पिछात झुलसा रोग के लगने का खतरा बढ़ जाता है. इस तापमान को किसान आफत भी कहते हैं. फसल में संक्रमण रहने और बारिश हो जाने पर बहुत ही कम समय में यह रोग फसल को बर्बाद कर देता है. इस रोग से आलू की पत्तियां किनारे से सूखताी है. सुखे हुए भाग को दो उंगलियों के बीच रख कर रगडने से खर-खर की आवाज आती है.
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किसान आलू की खेती के लिए स्वस्थ और स्वच्छ बीज का प्रयोग करें. फसल की सुरक्षा के लिए किसान 10-15 दिन के अंतराल पर मैंकोजेब 75 प्रतिशत में 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या जिनेब 75 प्रतिशत में 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. वहीं संक्रमित फसल में मेटालेक्सिल 8 प्रतिशत, मैंकोजेब 64 प्रतिशत, डब्लू. पी. संयुक्त उत्पाद का 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत का पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें.
आलू में लाही कीट का आक्रमण हमेशा से देखा जा रहा है. लाही गुलाबी या हरे रंग का होता है. यह पौधे की पत्तियों से रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देता है. जिसके कारण से पत्ते और तन्ने खराब हो जाते हैं. यह आलू के अलावा सरसों और अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है.
किसानों द्वारा किट से संरक्षण करना चाहिए. आलू के फसल पर ऑक्सी डेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत में 1 लीटर प्रति हेक्टेयर, थियाथोमैक्स 25 प्रतिशत में 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर के दर से पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करें.
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