देश में चीकू एक लोकप्रिय फल है. हालांकि, कीमत ज्यादा होने की वजह से यह अभी भी बहुत लोगों की पहुंच से दूर है. इसकी खेती से किसान बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं इसका जन्म स्थान मेक्सिको और मध्य अमेरिका माना जाता है. इसका फल स्वादिष्ट होने के साथ-साथ कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसमें विटामिन-बी, सी, ई और कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, मैंगनीज, फाइबर, मिनरल और एंटी-ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. भारत में इसकी प्रमुख रूप से खेती कर्नाटक, तामिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में की जाती है. वहीं, देश में चीकू का सालाना लगभग 5.4 लाख मीट्रिक टन उत्पादन होता है.
चीकू के उचित विकास के लिए मिट्टी का पीएच 6-8 अच्छा माना जाता है. वहीं फल के बेहतर विकास के लिए 11 से 38 डिग्री तापमान और 70 प्रतिशत आरएच आदर्ता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं चीकू के उन्नत किस्में और खेती की आधुनिक तकनीक-
चीकू को मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है, लेकिन अच्छे निकास वाली गहरी जलोढ़, रेतली दोमट और काली मिट्टी चीकू की खेती के लिए उपयुक्त रहती है. वही मिट्टी की पीएच मान 6-8 होना बेहतर है. ध्यान रखें कि चिकनी मिट्टी और कैल्शियम की उच्च मात्रा युक्त मिट्टी में इसकी खेती ना करें. इसके अलावा, फल के बेहतर विकास के लिए 11 से 38 डिग्री तापमान और 70 प्रतिशत आरएच आदर्ता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है.
चीकू के पौधों को कलम और बीज के माध्यम से नर्सरी में तैयार करते हैं. कलम के जरिये पौध तैयार करने के लिए कलम रोपण और ग्राफ्टिंग तरीके का इस्तेमाल करते हैं. बीज के द्वारा पौधों को तैयार करने के लिए नर्सरी में उपयुक्त कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित फर्टिलाइजर डालकर उपचारित बीजों को क्यारियों में लगाते हैं. इन क्यारियों में एक फीट की दूरी पर पंक्ति में बीजों को लगाते हैं. गौरतलब है कि बीज द्वारा तैयार पौधे बड़े होने में अधिक समय लेते हैं इसलिए ग्राफ्टिंग विधि और कलम रोपण को पौध तैयार करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है.
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चीकू के पौधों की रोपाई जून से जुलाई के महीने में होती है. वहीं पौधों से पौधों की दूरी 8 मीटर एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 8 मीटर रखनी चाहिए. पौधों की रोपाई से एक माह पहले से गड्ढा तैयार कर लिया जाता है. इन गड्ढों के बीच में एक छोटा सा गड्डा बनाकर उसमें पौधों को लगाते हैं. वहीं, पौधों को लगाने से पूर्व गोमूत्र या बाविस्टिन से गड्ढों को शोधित कर देते हैं, ताकि पौधों का विकास अच्छी तरह से हो सके. गड्ढों में पौधों को लगाने के बाद पौधों के तने को मिट्टी डालकर ढक दिया जाता है. गौरतलब है कि सिंचाई की उचित व्यवस्था वाले इलाकों में पौधों को मार्च महीने के बाद भी लगा सकते हैं.
पौधा रोपाई के तुरंत बाद और तीसरे दिन पौधों की सिंचाई करनी चाहिए और इसके बाद पौधे के स्थापित होने तक 10 - 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए. फिर सर्दियों के मौसम में 30 दिन के अंतराल पर और गर्म के मौसम में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.
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देश में चीकू की 41 किस्में हैं जिनमें भूरी पत्ती, पीली पत्ती यह चीकू की एक पछेती किस्म है, जिसमे फलो को पककर तैयार होने में देर लगती है), पीकेएम 2 हाइब्रिड (यह एक संकर किस्म है, जो अधिक उत्पादन के लिए उगाई जाती है), काली पत्ती, क्रिकेट बाल, बारहमासी और पोट सपोटा आदि शामिल हैं.
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