फालसा एक शरबती बेरीदार फल है, जोकि कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इस फल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और आयरन के अलावा विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यही वजह है कि इस फल को 'सेहत का खजाना' भी कहा जाता है. वहीं गर्मियों के मौसम में इस फल की मांग काफी अधिक रहती है. इसके फल से ताजा और पेय पदार्थ बनाया जाता है. विश्व में इस फल की खेती ज्यादातर भारत, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, लाओस और कम्बोडिया में होती है. मई और जून के महीने में यह फल पककर पूरी तरह से काला हो जाता है, जो स्वाद में खट्टा-मीठा होता है. वहीं फालसा के फल को अधिक समय तक भंडारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह बहुत जल्द ख़राब होने लगते हैं.
फालसा की खेती में कम लागत लगाकर अच्छी पैदावार मिल जाती है. जिस वजह से किसानों की रुचि भी फालसा फल की खेती की और बढ़ रही है. ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं फालसा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु कैसा होना चाहिए? इसके अलावा, फालसा के उन्नत किस्म कौन-कौन से हैं-
देश में फालसा की खेती फिलहाल काफी लोकप्रिय नहीं है जिस वजह से इसकी खेती सीमित क्षेत्रों में की जाती है. विशेषरूप से बड़े शहरों के आसपास ही फालसा की खेती होती है. वहीं भारत में फालसा की खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, पंजाब और हरियाणा राज्य में की जा रही है.
सहिष्णु तथा सूखारोधी होने के कारण फालसा अनुपजाऊ एवं लवणीय मृदा में भी आसानी से उगाया जा सकता है. किन्तु अच्छी वृद्धि और उपज पाने के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी को अच्छा माना गया है. इसका पौधा न्यूनतम तीन डिग्री और अधिकतम 45 डिग्री तापमान पर भी बढ़ सकता है. फालसा के फलो को पकने तथा अच्छी गुणवत्ता और रंग पाने के लिए पर्याप्त धूप व गर्म तापमान की जरूरत होती है.
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सामान्य तौर पर फालसा की कोई मान्यता प्राप्त किस्म नहीं है लेकिन फालसा की शर्बती किस्म काफी प्रसिद्ध है और व्यावसायिक रूप से उगाई जाती है। इसके अलावा, थार प्रगति और सी.आई.ए. एच.-1 किस्म भी खेती के लिए उपयुक्त हैं.
नोट: खेती से पहले कृषि विशेषज्ञ से जरूर सलाह लें.
फालसा के खेतों को ज़्यादा देख-रेख की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन पेड़ की गुणवत्ता के लिए उसकी सालाना कटाई-छटाई ज़रूर करनी चाहिए. पौधों की रोपाई के क़रीब सवा साल बाद, यानी अगले साल मई-जून के बाद से सालाना उपज मिलने लगती है. फालसा में फरवरी-मार्च में नई शाखाओं पर फूल आते हैं, जोकि मधुमक्खियों द्वारा परपरागित होकर फल बनाते हैं. फल अप्रैल-मई में पकते हैं. फलों का रंग पकने के समय लाल-गुलाबी, आकार 2.0-2.5 सें.मी. और स्वाद खट्टा-मीठा होता है.
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एक एकड़ में इसके 1200-1500 पौधे लगाए जा सकते हैं. इससे 50-60 क्विंटल फालसा की पैदावार होती है. फालसा को सीधे बाज़ार में बेचना भी लाभदायक है, लेकिन यदि फालसा से जुड़े उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों के साथ तालमेल बिठाकर इसकी खेती की जाए किसान बंपर मुनाफा हासिल कर सकते हैं.
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