Fact Check: शुगर फ्री आलू के चक्कर में कहीं आप भी तो नहीं खा रहे हैं धोखा!

Fact Check: शुगर फ्री आलू के चक्कर में कहीं आप भी तो नहीं खा रहे हैं धोखा!

हाल ही में काले गेहूं और अब 'काले आलू' को लेकर बाजार में चर्चाएं तेज हैं. इसकी उच्च पोषण क्षमता और औषधीय गुणों का दावा किया जा रहा है, जिससे किसान और उपभोक्ता दोनों भ्रमित हो सकते हैं. इसलिए काला आलू खरीदने या इसकी खेती शुरू करने से पहले इसकी सत्यता जरूर जांच लें, ताकि ठगी से बचा जा सके.

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Fact Check: शुगर फ्री आलू के चक्कर में कहीं आप भी तो नहीं खा रहे हैं धोखा!काले आलू से जुड़े दावे का सच

उत्तर भारत में काले गेहूं के बाद अब 'काले आलू' ने बाजार में दस्तक दी है. हालांकि काले गेहूं की खोज, गुणवत्ता और लाभ को लेकर अभी कृषि वैज्ञानिकों में बहस जारी है. वहीं इसी बीच कई किसानों ने काला आलू अपनाते हुए इसकी खेती शुरू कर दी है. बाराबंकी जिले के देवा शरीफ के पास एक गांव मोहम्मदपुर बिशुनपुर हैं. यहां के प्रगतिशील किसान गया प्रसाद मौर्य ने इस साल आधा एकड़ खेत में काले आलू की खेती की और इससे उन्हें करीब 60 कुंतल काले आलू का उत्पादन मिला. किसान का दावा है कि ये काला आलू 'शुगर फ्री' है. इस दावे में कितना दम है, ये हम आपको बताते हैं. 

क्या है किसान का दावा?

इस काले आलू की खेती करने वाले किसान गया प्रसाद मौर्य बताते हैं कि इस काले आलू का बीज उन्होंने सीतापुर के एक किसान से 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदा था और इसे अक्टूबर माह में लगाया था जिससे इसका बाजार में अच्छा दाम मिल रहा है. गया प्रसाद ने बताया कि इस समय उनका काला आलू 35 रुपये प्रति किलो के दाम से बिक रहा है. उनका दावा है कि ये दाम इसलिए मिल रहा है क्योंकि ये काला आलू 'शुगर फ्री' है. मौर्य के अनुसार, इस आलू का बाहरी छिलका गहरे बैंगनी रंग का है, जबकि इसका गूदा क्रीम रंग का होता है. इसमें हल्की नीली धारियां पाई जाती हैं. 

'शुगर फ्री' दावा कितना सही?

इस दावे की सच्चाई की पुष्टि के लिए किसान तक ने आईसीएआर-आलू अनुसंधान केंद्र, मेरठ के प्रमुख डॉ. आर.के. सिंह से संपर्क किया. डॉ. सिंह ने स्पष्ट किया कि यह आलू ‘कुफरी नीलकंठ’ नामक किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने विकसित किया है. लेकिन डॉ. आर.के. सिंह ने यह स्पष्ट किया कि आलू को 'शुगर फ्री' कहना वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है. आलू में प्राकृतिक रूप से कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) होता है. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि ‘कुफरी नीलकंठ’ में पोषक तत्वों की अधिकता इसे कुछ सामान्य आलू की तुलना में पोषक तत्व स्तर, भंडारण क्षमता और स्वाद की गुणवत्ता के मामले में यह एक बेहतर किस्म है. मगर काले आलू की कुफरी नीलकंठ किस्म 'शुगर फ्री' होने का दावा भ्रामक है.

तो फिर 'कुफरी नीलकंठ' क्यों है खास?

डॉ आर.के. सिंह ने बताया कि इसमें एंटीऑक्सीडेंट यानि एंथोसायनिन अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं. इसकी औसत उपज 15 से 16 टन प्रति एकड़ है. उन्होंने कहा कि ये कंद गहरे बैंगनी-काले रंग के होते हैं, जिनकी आंखें मध्यम गहराई वाली होती हैं. कंद अंडाकार और गूदा क्रीम रंग का होता है. इसमें मध्यम शुष्क पदार्थ 18 फीसदी होने और मध्यम निष्क्रियता के कारण इसकी भंडारण क्षमता बेहतर होती है. पकाने के बाद इसका रंग नहीं बदलता और इसकी बनावट मुलायम और स्वादिष्ट होती है.

किसानों के लिए बेहतर लाभ की संभावनाएं  

कुफरी नीलकंठ किस्म की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही है. सफेद और पीले छिलके वाले आलू की तुलना में इसका बैंगनी रंग इसे खास बना रहा है. इससे किसानों को बेहतर दाम मिल सकता है और किसानों के लिए एक आकर्षक फसल बन सकती है. इस आलू की उच्च उत्पादन क्षमता और पोषण मूल्य के कारण घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात में भी इसकी मांग बढ़ने की संभावना है. डॉ सिंह ने बताया कि भारत सरकार द्वारा दिसंबर 2018 में जारी अधिसूचना के अनुसार, 'कुफरी नीलकंठ' को विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और समान कृषि-पारिस्थितिकी वाले क्षेत्रों में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है.

काला आलू, जिसे 'कुफरी नीलकंठ' के नाम से भी जाना जाता है, हाल ही में अपनी विशिष्ट विशेषताओं के कारण लोकप्रियता हासिल कर रहा है. लेकिन, इससे जुड़े कुछ दावों की सच्चाई जानना जरूरी है ताकि आप ठगी से बच सकें. काला आलू एक पौष्टिक और स्वादिष्ट विकल्प है, लेकिन इसके बारे में किए गए सभी दावे सही नहीं हैं.

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