पंजाब सरकार ने हाल ही में हाइब्रिड और Pusa 44 किस्म की धान के बीजों की बिक्री पर रोक लगा दी है. इसके पीछे वजह थी कम राइस रिकवरी और मिलिंग रिकवरी. इन किस्मों का प्रयोग पहले सिर्फ कुछ इलाकों तक सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे ये पूरे पंजाब में फैल गया. अब जब इन किस्मों पर बैन लग गया है, तो बासमती चावल एक अच्छा और टिकाऊ विकल्प बनकर उभर रहा है.
बासमती चावल की खासियत है कि इसमें पानी की खपत कम होती है, और इसकी मांग देश और विदेश दोनों जगह बनी रहती है. बासमती की प्रमुख किस्में जैसे 1121, 1885, 1509, 1718 और 1401 अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत पॉपुलर हैं. इससे किसानों को उनकी मेहनत का अच्छा दाम मिलता है.
साल 2023-24 में पंजाब में बासमती का उत्पादन 26 लाख टन था, जो 2024-25 में बढ़कर 32 लाख टन हो गया. खास बात यह है कि 1121 किस्म का धान आज कुछ क्षेत्रों में ₹5,000 प्रति क्विंटल के रेट पर बिक रहा है. यह आंकड़ा बताता है कि बासमती की मांग लगातार बढ़ रही है और किसान इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं.
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पंजाब सरकार ने पिछले साल बासमती की खेती में 40% की वृद्धि का लक्ष्य रखा था. इस साल सरकार का लक्ष्य इससे भी ज़्यादा बड़ा है. 2023 में जहां 5.96 लाख हेक्टेयर में बासमती की खेती हुई थी, इस बार लक्ष्य कई गुना अधिक रखा गया है. साथ ही, एक लाख हेक्टेयर भूमि पर ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ (DSR) को भी अपनाने की योजना है, जिससे पानी की बचत होगी और खेती सरल बनेगी.
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बासमती की ओर बढ़ते कदम को सफल बनाने के लिए जरूरी है कि किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज, समय पर मार्गदर्शन और निर्यात में सहायता मिले. बासमती चावल का मजबूत मार्केटिंग स्ट्रक्चर पहले से पंजाब में मौजूद है, जिसे और सशक्त बनाने की ज़रूरत है.
जहां एक ओर हाइब्रिड किस्मों पर रोक से थोड़ी असमंजस की स्थिति बनी है, वहीं बासमती किसानों के लिए एक स्थायी और लाभदायक विकल्प बनकर सामने आया है. सरकार और किसान मिलकर अगर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं, तो पंजाब बासमती उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य बन सकता है.
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