Groundnut Farming: मूंगफली की पैदावार और क्‍वालिटी दोनों बढ़ा देगा यह प्रयोग, इन बातों का रखें ध्‍यान

Groundnut Farming: मूंगफली की पैदावार और क्‍वालिटी दोनों बढ़ा देगा यह प्रयोग, इन बातों का रखें ध्‍यान

Peanut Farming Tips: भारत में मूंगफली की खेती रबी और खरीफ दोनों सीजन में होती है. गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं. मूंगफली की बेहतर पैदावार और रोगों से बचाव के लिए नीम की खली का उपयोग एक प्रभावी देसी उपाय है.

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मूंगफली की पैदावार और क्‍वालिटी दोनों बढ़ा देगा यह प्रयोग, इन बातों का रखें ध्‍यानमूंगफली की खेती

भारत में तिलहन फसल मूंगफली की खेती रबी और खरीफ सीजन में होती है. किसान मॉनसून की शुरुआत के साथ ही खरीफ मूंगफली की बुवाई करना शुरू कर देते हैं. कुछ राज्‍यों में मॉनसून की एंट्री हो चुकी है तो वहीं, अब यह धीरे-धीरे अन्‍य राज्‍यों को कवर कर रहा है. ऐसे में कई जगहों पर किसान मूंगफली की बुवाई कर चुके हैं और कई जगहों पर किसान बुवाई के लिए खेत तैयार कर रहे है. ऐसे में आज हम आपाको मूंगफली की बुवाई और इसकी देखभाल के साथ ही पैदावार बढ़ाने के तरीके की जानकारी देने जा रहे है.

इन राज्‍यों में होती है मूंगफली की खेती

मूंगफली की खेती मुख्‍य रूप से गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में होती है. वहीं, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में भी किसान इसकी खेती करते हैं. वर्तमान में मूंगफली की कई उन्‍नत किस्‍में बाजार में मौजूद हैं, जिनमें रोग प्रतिरोधी क्षमता और कीटों से लड़ने की अच्‍छी क्षमता होती है. लेकिन, फिर भी कई किस्‍मों में इनके हमले की संभावना बनी रहती है. ऐसे में जान‍िए एक देसी प्रयोग, जो कीट और रोगों से मूंगफली की फसल को बचाता है और साथ ही पैदावार बढ़ाने में मदद करता है.

नीम की खली बढ़ाती है क्‍वालिटी-पैदावार 

यह देसी प्रयोग कुछ और नहीं, बल्कि नीम की खली का है, जो रोग-कीट से बचाव के साथ ही मूंगफली की पैदावार और क्‍वालिटी बढ़ाने में मदद करता है. जब मूंगफली की अंतिम जुताई चल रही हो, तब प्रति हेक्टेयर 400 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग करना चाहि‍ए. ऐसा करने से दीमक की समस्‍या को नियंत्रिण किया जा सकता है और इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भी सही बनी रहती है. खेती के जानकारों का कहना है कि इस प्रयोग से पैदावार में 16 से 18 प्रत‍िशत तक इजाफा संभव है. साथ ही क्‍वालिटी में भी सुधार होता है. इससे मूंगफली का दाना मोटा होता है और इसके तेल प्रतिशत में बढ़ोतरी होती है.

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खरीफ मूंंगफली में लगती है कम सिंचाई

कृषि एक्‍सपर्ट के मुताबिक, खरीफ मूंगफली फसल को आमतौर पर सिंचाई की जरूरत कम होती है, क्‍योंकि बारिश से इसकी पूर्ति हो जाती है. हालांकि, बारिश कम होने पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा, बारिश से पहले बुवाई करने पर भी सिंचाई करने की जरूरत होती है. जिस समय पौधों में फूल आ रहे हों और तब लंबे समय से बारिश न हुई हो तो सिंचाई करके मिट्टी को नम करना जरूरी है. अन्‍य फसलों की तरह मूंगफली की खेती में भी अच्‍छा उत्‍पादन लेने के लिए निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करना बेहद जरूरी है.

मूंगफली का खरपतवार से करें बचाव

मूंगफली के पौधों की ऊंचाई कम होती है. इसलिए खासकर खरपतवारों से इन्‍हें बचाना अहम काम है, क्‍योंकि खरपतावार इनका जरूरी पोषण ले सकते हैं और पैदावार और उपज की क्‍वालिटी पर बुरा असर पड़ सकता है. इसलिए मूंगफली की फसल की कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहि‍ए.

पहली बार फूल आने के समय और दूसरी बार 2-3 हफ्ते बाद जब खूंटे जमीन में जाने लगें. वहीं, अगर खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या हो जाए तो वहां पेंडीमेथालिन नामक 3 लीटर खरपतवारनाशक का 500 लीटर पानी में घोलकर बनाकर बुवाई के 2 दिन के भीतर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से समस्‍या से राहत मिलती है.

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