सिगाटोका लीफ स्पॉट एक फंगल रोग है जो केले के पौधों को प्रभावित करता है. यह दो अलग-अलग फफूंदों के कारण होता है: माइकोस्फेरेला म्यूसिकोला, जो पीले सिगाटोका का कारण बनता है, और माइकोस्फेरेला फिजीन्सिस, जो काले सिगाटोका का कारण बनता है. दोनों रोग केले के उत्पादन के लिए गंभीर रोग है जो केले की उपज को कम करने का कारण बन सकता है.
पीला सिगाटोका इन दोनों बीमारियों में से ज़्यादा आम है. यह दुनिया के ज़्यादातर केले उगाने वाले क्षेत्रों में पाया जाता है. पीले सिगाटोका के लक्षणों में पत्तियों पर छोटे, पीले धब्बे शामिल हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं और भूरे या काले हो जाते हैं. पत्तियां सूखी और भंगुर भी हो सकती हैं और बाद में मर सकती हैं. आमतौर पर केले की फसल में पीला सिगाटोका रोग का प्रभाव देखा जाता है, जो एक फफूंद जनित रोग है.
इस रोग के कारण केले के नए पत्तों के ऊपरी भाग पर हल्के पीले रंग के धब्बे या धारीदार रेखाएं दिखाई देती हैं और बाद में ये धब्बे बड़े होकर भूरे रंग के हो जाते हैं, जिनका मध्य भाग हल्के भूरे रंग का होता है.
पीला सिगाटोका के प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगाएं ताकि रोग का खतरा कम से कम हो सके. खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें. खेत से अतिरिक्त पानी निकाल दें और मिट्टी को 1 किलो ट्राइकोडर्मा विरिडे और 25 किलो गोबर की खाद प्रति एकड़ से उपचारित करें.
इसके अलावा रोपण अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में किया जाना चाहिए और उचित जल निकासी बनाए रखना चाहिए. जलभराव से बचें क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं और पौधे कमजोर हो सकते हैं जिससे फंगल संक्रमण को बढ़ावा मिलता है. पौधों को एक दूसरे से बहुत कम दूरी पर लगाने से बचें. खेत में अधिक भीड़ से बचने के लिए समय-समय पर पौधों की छंटाई करें तथा केवल एक या दो स्वस्थ पौधे ही रखें. कवक को और अधिक फैलने से रोकने के लिए समय-समय पर प्रभावित पत्तियों को हटा दें और नष्ट कर दें. संक्रमित पौधों को कीटाणुरहित किए बिना उन पर छंटाई उपकरणों का उपयोग न करें उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें. खेतों को खरपतवारों और अन्य फसल अवशेषों से बचाए रखें. पत्तियों को गीला होने से बचाने और उच्च आर्द्रता उत्पन्न होने से बचाने के लिए पौधे की छतरी के नीचे सिंचाई करने की सलाह दी जाती है.
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