Advisory for Farmers: धान की नर्सरी में पत्त‍ियां पीली पड़ जाएं तो क्या करें क‍िसान, वैज्ञान‍िकों ने जारी की एडवाइजरी 

Advisory for Farmers: धान की नर्सरी में पत्त‍ियां पीली पड़ जाएं तो क्या करें क‍िसान, वैज्ञान‍िकों ने जारी की एडवाइजरी 

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के अनुसार अगर धान की नर्सरी 20-25 दिन की हो गई हो तो तैयार खेतों में रोपाई कर दें. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें. उर्वरकों में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रत‍ि हेक्टेयर की दर से डालें. 

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Advisory for Farmers: धान की नर्सरी में पत्त‍ियां पीली पड़ जाएं तो क्या करें क‍िसान, वैज्ञान‍िकों ने जारी की एडवाइजरी धान की खेती के ल‍िए ट‍िप्स.

पूसा के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने कहा है क‍ि अगर धान की नर्सरी में पौधों का रंग पीला पड़ रहा हो तो इसके पीछे लौह तत्व की कमी भी हो सकती है. पौधों की ऊपरी पत्तियां यदि पीली और नीचे की हरी हों तो यह लौह तत्व की कमी दर्शाता है. इसके लिए 0.5 % फेरस सल्फेट +0.25 % चूने के घोल का छिड़काव करें तो यह द‍िक्कत खत्म हो सकती है. क‍िसान आमतौर पर धान की पत्त‍ियों को पीली देखने पर यूर‍िया डाल देते हैं, जबक‍ि यूर‍िया का इस्तेमाल तभी करना चाह‍िए जब जमीन में नाइट्रोजन की कमी हो. क‍िसानों के ल‍िए यह एडवाइजरी बहुत काम की साब‍ित हो सकती है, क्योंक‍ि इस समस्या का सामना क‍िसानों को अक्सर करना पड़ता है. 

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के अनुसार अगर धान की नर्सरी 20-25 दिन की हो गई हो तो तैयार खेतों में रोपाई कर दें. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें. उर्वरकों में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रत‍ि हेक्टेयर की दर से डालें. नील हरित शैवाल नाइट्रोजन का आंश‍िक व‍िकल्प है. इसके एक पेकेट प्रत‍ि एकड़ का प्रयोग उन्ही खेतो में करें ज‍िनमें पानी खड़ा रहता हो. ताकि म‍िट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जा सके. 

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फसलों में छ‍िड़कांव न करें 

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान (पूसा) ने अपनी एडवाइजरी में कहा है क‍ि पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को सलाह है की सब्जी नर्सरी, दलहन एवं तिलहन फसलों में पानी न‍िकासी का उचित मैनेजमेंट रखें तथा खड़ी फसलों व सब्जियों में किसी प्रकार का छिड़काव न करें. जिन किसानों की मिर्च, बैंगन व फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को ध्यान में रखते हुए रोपाई की तैयारी करें. कद्दूवर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसल की बुवाई करें. लौकी, करेला, सीताफल, तुरई और खीरा की बुवाई कर सकते हैं, लेक‍िन पानी न‍िकासी का इंतजाम जरूर कर लें.   

विषाणु रोग से ग्रसित पौधों का क्या करें

मिर्च के खेतों में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में दबा दें. उसके बाद इमिडाक्लोप्रिड @ 0.3 मिली प्रत‍ि लीटर की दर से छिड़काव करें. फलों के नए बाग लगाने वाले गड्डों में गोबर की खाद मिलाकर 5.0 मिली क्लोरपाईरिफॉस एक लीटर पानी में मिलाकर गड्डों में ड़ालकर गड्डों को पानी से भर दें, ताकि दीमक तथा सफेद लट से बचाव हो सके. देसी खाद (सड़ी-गली गोबर की खाद, कम्पोस्ट) का अधिक से अधिक प्रयोग करें, ताकि जमीन की जल धारण क्षमता और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ सके.

पोटाश की मात्रा बढ़ाएं क‍िसान 

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने कहा क‍ि म‍िट्टी जांच के बाद उवर्रकों की संतुलित मात्रा का उपयोग करें. खासतौर पर पोटाश की मात्रा बढ़ाएं, ताकि पानी की कमी के दौरान फसल की सूखे से लड़ने की क्षमता बढ़ सके. वर्षा आधारित एवं बारानी क्षेत्रों में खेती में नमी बनाए रखने के लिए पलवार (मलचिंग) का प्रयोग करना लाभदायक होगा. बार‍िश को ध्यान में रखते हुए किसानों को सलाह है कि वे अपने खेतों के किसी एक भाग में बार‍िश के पानी को इकट्ठा करने की व्यवस्था करें, जिसका उपयोग वे बार‍िश न आने के दौरान फसलों की उचित समय पर सिंचाई के लिए कर सकते हैं. 

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