क्या आपको पता है कि मैदानी और गर्म क्षेत्रों में भी अब सेब की खेती कैसे हो रही है. सेब आमतौर पर जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी और ठंडे क्षेत्रों में ही होता रहा है. लेकिन अब आप सुनते होंगे कि बिहार और हरियाणा जैसे सूबों में भी किसान इसे उगाकर पैसे कमा रहे हैं. दरअसल यह संभव हुआ है हरिमन-99 (HRMN-99) नाम की सेब की किस्म से. जिसे किसी वैज्ञानिक ने नहीं बल्कि दसवीं से भी कम पढ़े-लिखे एक किसान ने विकसित किया है. इस गुणी किसान का नाम है हरिमन शर्मा. जिनकी उम्र अब 66 साल हो चुकी है, लेकिन पूरे भारत में सेब की खेती करवाने के लिए किए जा रहे काम के प्रति उनका जज्बा गजब का है. वो अब तक अलग-अलग राज्यों में इसकी खेती करवाने के लिए इस वैराइटी के 17 लाख पौधे पहुंचा चुके हैं.
हरिमन-99 किस्म प्रोटक्शन ऑफ प्लांट वैराइटीज एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी (PPV&FR) में रजिस्टर्ड है. ऐसे में इस किस्म के पौधे तैयार करने का एकमात्र अधिकार शर्मा को ही है. हरिमन-99 इनके द्वारा विकसित किया गया एक लो चिलिंग सेब है, जो समुद्र तल से महज 700 मीटर ऊंचाई व 40 डिग्री से 46 डिग्री सेल्सियस में भी सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है. यानी इस किसान के जरिए यह संभव हुआ है कि सर्द हवाओं वाले स्थान ही नहीं अब तपती धरती वाले जगहों पर भी इसे उगाया जा सकता है. शर्मा बिलासपुर जिले की घुमरावी तहसील के पनियाला कोठी गांव के रहने वाले हैं. दूसरे देशों के किसान भी इस वैराइटी के पौधे मंगवा रहे हैं.
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वर्ष 2005 तक किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि बर्फीली पहाड़ियों पर तैयार होने वाला फल सेब गर्म स्थानों पर भी उगकर फल दे सकता है. करीब एक दशक की मेहनत के बाद इस किसान ने वो कर दिखाया जिस काम को वैज्ञानिक समुदाय भी नहीं कर पाया था. शर्मा की शिक्षा भले ही अंडर मैट्रिक है लेकिन उनका काम बहुत बड़ा है. वो लगातार ग्राफ्टिंग के काम में जुटे रहे और 1999 में उन्हें सफलता लगी. इसीलिए इस वैरायटी का नाम हरिमन-99 रखा गया. उनकी इस वैराइटी की वजह से अब सेब ठंडे क्षेत्रों की बपौती नहीं रहा. दावा है कि सेब की गुणवत्ता और रंग पहाड़ी क्षेत्रों की तरह ही है.
'किसान तक' से बातचीत में शर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा निचले हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती के लिए 1965 में जिला सिरमौर में नाहन के पास बागथान नामक स्थान पर एक रिसर्च सेंटर खोला गया था. इस स्थान की ऊंचाई मात्र 800 मीटर है. करोड़ों रुपये खर्च करने के दस वर्ष बाद वैज्ञानिकों को कोई सफलता न मिलने पर 1975 में यह प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया. फिलहाल, शर्मा ने यह काम पूरा कर दिया. इसलिए केंद्र सरकार और वैज्ञानिक समुदाय ने उनकी सफलता को स्वीकार कर लिया. शर्मा ने कहा कि हरिमन-99 का पौधा 15-15 फुट की दूरी पर लगाया जाता है. इन पोधों के बीच में सब्जियां, गेहूं, मक्का और दलहन फसलें लगा कर आय में वृद्धि की जा सकती है. आठ साल का पौधा सालाना एक क्विंटल तक की पैदावार दे सकता है.
दिल्ली में हमसे हुई एक मुलाकात में शर्मा ने कहा कि अब उनकी बनाई सेब की किस्म देश के लगभग हर राज्य तक पहुंच चुकी है. फिर भी काफी लोग नहीं जानते कि ऐसा हो सकता है. किसान कभी ऐसा सोचते भी सेब की खेती यूपी, बिहार, बंगाल, एमपी और महाराष्ट्र में भी हो सकती है. परंपरागत क्षेत्र का सेब जुलाई से सितंबर तक तैयार होता है. लेकिन गर्म इलाके के लिए बनी इस वैराइटी का सेब जून में तैयार हो जाता है. उस समय बाजार में सेब का फल बहुत कम मिलता है. इस वजह से हरिमन-99 की खेती करने वाले किसानों को बहुत अच्छा दाम मिलता है. क्राप डायवर्सिफिकेशन और इनकम बढ़ाने के लिए यह अच्छा विकल्प है.
नेपाल, बांग्लादेश, जर्मनी और दक्षिणी अफ्रीका में भी इस वैराइटी के पौधे भेजे गए हैं. इसके अलावा बेंगलुरु,, चिकमंगलूर, बेलगाम (कर्नाटक), सिरसा, करनाल, हिसार, गुरुगाम (हरियाणा), होशियारपुर (पंजाब), पीलीभीत (उत्तर प्रदेश), हल्द्वानी व कोटबाग (उत्तराखण्ड), सिहोर, नरसिंहपुर, बालाघाट (मध्य प्रदेश), इंफाल (मणिपुर), अम्बिकापुर (छतीसगढ़), सीकर (राजस्थान), नासिक, सोलापुर अमरावती (महाराष्ट्र), सिलवासा (दादरा नगर हवेली), रांची (झारखंड), नवादा (बिहार), गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध प्रदेश, तेलंगाना, केरल, सिक्किम, त्रिपुरा और ओडिशा आदि में भी इसकी खेती हो रही है. तो फिर आप क्यों देर कर रहे हैं. आप भी सेब की खेती करिए.
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