बीज, खाद और कीटनाशक बेचने वाले हो रहे मालामाल, फ‍िर क‍िसान क्यों हैं बेहाल...आयोग में उठा बड़ा सवाल

बीज, खाद और कीटनाशक बेचने वाले हो रहे मालामाल, फ‍िर क‍िसान क्यों हैं बेहाल...आयोग में उठा बड़ा सवाल

Procurement Policy: पिछले 10 वर्षों में सरकार ने बाजरे की एमएसपी लगातार बढ़ाई है, लेक‍िन राज्य से एक दाना भी एमएसपी पर नहीं खरीदा गया है, जबक‍ि देश के कुल बाजरा उत्पादन में राजस्थान का योगदान 45 फीसदी है. एमएसपी की सार्थकता तो तब है जब उस दाम पर खरीद हो, वरना वह बेकार है.  

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बीज, खाद और कीटनाशक बेचने वाले हो रहे मालामाल, फ‍िर क‍िसान क्यों हैं बेहाल...आयोग में उठा बड़ा सवालरबी फसलों की एमएसपी को लेकर सीएसीपी की बैठक में उठे सवाल.

रबी फसलों के सरकारी दाम तय करने को लेकर द‍िल्ली में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा बुलाई गई एक बैठक में क‍िसान संगठनों ने उन नीत‍ियों के बहाने सरकार को आड़े हाथों ल‍िया, ज‍िनकी वजह से क‍िसानों की आर्थ‍िक स्थ‍ित‍ि खराब होती जा रही है. क‍िसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा क‍ि आज खेती के ल‍िए बीज का व्यापार करने वालों की पांचों उंगल‍ियां घी में हैं, कीटनाशकों का व्यापार करने वालों की पांच उंगलियां घी में हैं और खाद का कारोबार करने वाले भी मालामाल हैं तो क‍िसान बेहाल क्यों? खेती करने वाला क्यों मर रहा है. दरअसल, हमारी नीत‍ियों ने उसे बेचारा बना द‍िया है. वो कुछ खरीदने जाए तो भी बेचारा है, बेचने जाए तो भी बेचारा. हम चाहते हैं क‍ि खेती का उपयोग क‍िसानों को फायदा पहुंचाने के ल‍िए हो न क‍ि कंपन‍ियों को. 

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर क‍िताब ल‍िखने वाले जाट ने कहा क‍ि वर्तमान में एमएसपी पर खरीद की नीति भेदभावपूर्ण है. जहां गेहूं एवं धान की खरीद में किसी भी प्रकार का मात्रात्मक प्रतिबंध नहीं है वहीं तिलहन एवं कुछ दलहन फसलों के कुल उत्पादन में से 75 फीसदी उपजों को एमएसपी के दायरे से ही बाहर न‍िकाल द‍िया गया है. वो भी क‍िसानों के आय संरक्षण के नाम पर. दलहन में मसूर, उड़द एवं अरहर की तो मार्च 2024 में दाने-दाने की खरीद का रास्ता साफ हो गया है, लेक‍िन मूंग, चना एवं तिलहन फसलों की कुल उत्पादन में से 25 फीसदी से अधिक खरीद नहीं करने का प्रावधान है. एमएसपी की सार्थकता तो तब है जब उस दाम पर खरीद हो, वरना वह बेकार है. 

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राज्यों से भी न‍िराशा 

यह अवश्य है कि राज्यों द्वारा 25 फीसदी के अतिरिक्त 15 फीसदी यानि कुल उत्पादन में से 40 फीसदी तक की खरीद स्वयं के संसाधनों से किए जाने का उल्लेख है, लेक‍िन किसी भी राज्य ने इसकी पहल नहीं की है. अध‍िकांश राज्य त‍िलहन की 25 फीसदी खरीद भी नहीं करते वो 15 फीसदी अपने संसाधनों से भला क्या खरीदेंगे. इसल‍िए राज्यों द्वारा 15 फीसदी की खरीद का प्रावधान अर्थहीन है. 

इसी प्रकार बाजरा, ज्वार, मक्का एवं रागी जैसे मोटे अनाजों की खरीद की नीति भी भेदभावपूर्ण है. इसी का परिणाम है कि मोटे अनाजों की खरीद नगण्य सी है. इसके ल‍िए राजस्थान के उदाहरण से ही समझ सकते हैं. राजस्थान में बाजरे का उत्पादन देश का 45 फीसदी होता है. पिछले 10 वर्षों में सरकार ने बाजरे की एमएसपी लगातार बढ़ाई है लेक‍िन राज्य से एक दाना भी एमएसपी पर नहीं खरीदा गया है. 

सम्मान नहीं अपमान है 

बैठक में जाट ने कहा क‍ि खेत को पानी मिल जाए और फसल को दाम. ये दो चीजें सरकार उपलब्ध करवा दे तो हमें उससे एक भी रुपये का अनुदान नहीं चाहिए. हम तो अनुदान दे सकते हैं. ये दोनों चीजें म‍िल जाएं तो फिर हमें सम्मान निधि की भी जरूरत नहीं है. सरकार अपनी नीत‍ियों से क‍िसान का 50000 रुपये नुकसान कर देती है और उसको साल भर में 6000 देकर सम्मान देने की बात करती है. अगर आप क‍िसानों को दाम नहीं दे सकते तो यह सम्मान नहीं बल्क‍ि अपमान है. क‍िसानों को दाम द‍िला दो और 6000 अपने पास रखो.  

सीएसीपी की बैठक में मौजूद क‍िसान नेता.
सीएसीपी की बैठक में मौजूद क‍िसान नेता.

सौ फीसदी आयात शुल्क लगे 

खाद्य तेलों के मामले में दूसरे देशों पर बढ़ती भारत की न‍िर्भरता के मुद्दे पर भी क‍िसान नेता ने सरकारी नीत‍ियों की जमकर धुलाई की. उन्होंने कहा क‍ि पहले खाद्य तेलों के आयात पर 80 फीसदी तक शुल्क था. अब हमने उसे घटाकर 5 फीसदी से लेकर जीरो परसेंट तक कर द‍िया है. इससे अपने देश के त‍िलहन पैदा करने वाले क‍िसानों को सरसों और सोयाबीन जैसी फसल औने-पौने दाम पर बेचने के ल‍िए मजबूर होना पड़ रहा है. क्योंक‍ि व्यापारी दूसरे देशों से तेल मंगा रहे हैं. 

हमारी मांग है क‍ि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम से कम 100 फीसदी रखा जाए ताक‍ि अपने देश के क‍िसानों को त‍िलहन फसलों का सही दाम म‍िले. वर्ष 1984 से पहले तो खाद्य तेल बहुत कम आयात होता था. लेकिन 1991 के बाद तेलों का आयात लगातार बढ़ता गया. क्योंकि हमारी नीति किसान विरोधी होती चली गई. 

कंज्यूमर का बोझ क‍िसानों पर क्यों? 

जाट ने कहा क‍ि सीएसीपी हमारी मांगों को सरकार तक भेजे. उसे मानना या न मानना सरकार का काम है. सीएसीपी ने तो एसपी की गारंटी देने की भी अनुशंसा की थी. मनरेगा को कृषि से भी जोड़ने की स‍िफार‍िश की थी, लेकिन सरकार ने नहीं मानी. आयोग की ओर से सरकार को र‍िक्मेंडेशन जाएगा तो हमें संतोष रहेगा कि सीएसपी ने हमारी बात को सरकार के सामने रखा. एक बात और है क‍ि उपभोक्ताओं पर महंगाई का भार कम करने के ल‍िए सरकार बार-बार किसानों के कंधों पर बोझ न डाले. सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पहले ही 80 करोड़ लोगों को फ्री में अनाज दे रही है तो फ‍िर और क‍िसको सस्ती कृष‍ि उपज देना चाहती है. 

क्यों बुलाई गई थी बैठक? 

बुवाई शुरू होने के साथ ही केंद्र सरकार ने खरीफ मार्केट‍िंग सीजन 2024-25 के ल‍िए खरीफ फसलों की एमएसपी घोष‍ित कर दी है. साथ ही अब रबी मार्केट‍िंग सीजन 2025-26 के ल‍िए रबी फसलों, जैसे गेहूं, जौ, चना, मसूर, तोरिया और सरसों की एमएसपी तय करने को लेकर भी कसरत शुरू हो गई है. इसी स‍िलस‍िले में बुधवार को सीएसीपी ने कुछ क‍िसान संगठनों की एक बैठक बुलाई थी. ताक‍ि क‍िसानों के पक्ष को दाम तय करते वक्त ध्यान में रखा जाए. 

फसलों की एमएसपी सीएसीपी तय करता है. वो सरकार को अपनी स‍िफार‍िशें भेजता है, ज‍िसके बाद सरकार उसे कैब‍िनेट में पास करके लागू करने की घोषणा कर देती है. हालांक‍ि सीएसीपी को संवैधान‍िक दर्जा नहीं म‍िला है, ज‍िसकी वजह से उसकी स‍िफार‍िशें मानने के ल‍िए सरकार बाध्य नहीं है.  

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