जलवायु परिवर्तन की वजह से फरवरी महीने में ही मार्च जैसी तेज गर्मी पड़ने लगी है. इस वजह से गेहूं की फसल को होने वाले नुकसान को लेकर केंद्र सरकार अलर्ट मोड पर आ गई है. लेकिन, फरवरी महीने का चढ़ता ये पारा सरसों की तैयार फसल को भी प्रभावित कर रहा है. फरवरी महीने में बढ़ते इस तापमान ने किसानों की परेशानियां बढ़ा दी हैं. असल में नवंबर में बारिश और जनवरी में हल्की ठंड से सरसों के बंपर उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा था. लेकिन, फरवरी में चढ़े पारे ने इस उम्मीद पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है. फरवरी में अधिक गर्मी से सरसों के दाने सूखने की संभावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है. आंशका है कि गर्मी से सरसों के दाने में तेल कम हो सकता है.
देश में सरसों की सबसे बड़ी बेल्ट यानी पूर्वी राजस्थान के धौलपुर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, झालावाड़, प्रतापगढ़, मुरैना और ग्वालियर क्षेत्र में दिन का तापमान अभी 33 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है, जबकि सरसों के लिए इन दिनों तापमान 25-27 डिग्री ही चाहिए. ऐसे में ज्यादा तापमान से फसल जल्दी पकने लगी है. बता दें कि सीजन 2022-23 रबी में राजस्थान में 3798 हजार हैक्टेयर भूमि पर सरसों की बुवाई हुई है. कृषि विभाग ने 3830 हजार हैक्टेयर बुवाई का लक्ष्य रखा था.
तेज गर्मी सरसों की फसल की पछैती बुवाई के लिए नुकसानदेह है. क्योंकि नवंबर के पहले हफ्ते में बारिश के कारण कई इलाकों में सरसों की वापस वुवाई हुई थी. इसीलिए अधिकांश सरसों पछैती है. इस साल फरवरी में औसत तापमान 26.1 डिग्री रहा है. जो पिछले पांच साल में सबसे अधिक है.
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पछैती फसल को पकने के लिए अभी कम से कम 25-30 दिन और चाहिए. लेकिन, इस साल मौसम में बसंत ऋतु ही नहीं आई. सर्दी से सीधे गर्मी का मौसम किसानों के साथ-साथ बाजार की भी चिंता का सबब बना हुआ है. पिछले एक सप्ताह में तापमान 9 डिग्री चढ़ा है.
कृषि विज्ञान केन्द्र, पाली में वैज्ञानिक डॉ. धीरज सिंह से किसान तक ने इस संबंध में बात की. वे कहते हैं कि तेज गर्मी से सरसों में पकाव जल्दी आया है. खासकर पछैती बुवाई वाली फसलों में, इसीलिए इसका नुकसान तो होगा. जहां तक कृषि वैज्ञानिकों का मानना है इस गर्मी से सरसों के कुल उत्पादन में 15-20 प्रतिशत तक की कमी होगी. साथ ही दाने में तेल की मात्रा में 8-10 प्रतिशत तक कमी आएगी. गर्मी से सरसों में फोर्स मैच्योरिटी होगी. यह ठीक वैसा ही जैसे आटे को सीधे आग में डाल दिया जाए. जबकि रोटी बनने की एक प्रक्रिया होती है. इसका सीधा नुकसान किसानों को होगा. क्योंकि उन्हें मंडी में भाव कम मिलेगा.
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फोर्स मैच्योरिटी से सरसों की क्वालिटी घटेगी. चूंकि पूर्वी राजस्थान और मध्यप्रदेश का मुरैना, ग्वालियर क्षेत्र सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है. इसीलिए यहां फसल होली के बाद बाजार में आएगी. फिलहाल राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र से सरसों बाजार में आने लगी है.
हालांकि राजस्थान के भरतपुर स्थित आईसीएआर- सरसों अनुसंधान केन्द्र के डायरेक्टर डॉ. प्रमोद कुमार राय का मानना कुछ अलग है. वे कहते हैं कि सबसे ज्यादा सरसों उत्पादक क्षेत्र पूर्वी राजस्थान और एमपी के कुछ हिस्सों में सरसों की पछैती बुवाई नहीं होती है. इसीलिए खतरे की कोई बात नहीं है.
किसान तक ने भरतपुर स्थित भूपेन्द्र गोयल से बात की. गोयल मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सदस्य हैं. वे बताते हैं कि ऐसी गर्मी से सरसों में पकाव जल्दी आएगा. गर्मी से सरसों का दाना छोटा होगा और उसमें तेल की मात्रा कम होगी. दाने में तेल की तीन प्रतिशत तक कमी हो सकती है. इससे नुकसान किसानों को ही होगा. हमारे अनुमान के मुताबिक ये नुकसान 300 रुपए प्रति क्विंटल तक हो सकता है.”
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गोयल जोड़ते हैं कि दो साल पहले तक किसानों को सरसों का भाव 7300 रुपये प्रति क्विंटल तक मिला था. सोमवार को भरतपुर सरसों मंडी में भाव 5602 रुपये प्रति क्विंटल रहा. पिछले एक सप्ताह में 125 रुपये की गिरावट है. ये पुरानी सरसों का भाव है. वहीं, अब कोटा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ से सरसों की आवक शुरू हुई है. लेकिन भाव 5600-5700 रुपये है.
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