बीटी कॉटन में फैले गुलाबी सुंडी के प्रकोप के कृषि विभाग ने गिनाए ये कारण, जानिए डिटेल्स

बीटी कॉटन में फैले गुलाबी सुंडी के प्रकोप के कृषि विभाग ने गिनाए ये कारण, जानिए डिटेल्स

खरीफ-2023 में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिलों में बीटी कॉटन में गुलाबी सुण्डी के प्रकोप से हुए नुकसान के कारणों एवं विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई. साथ ही गुलाबी सुण्डी के जीवन चक्र, उसके द्वारा किये गए आर्थिक नुकसान के स्तर पर भी चर्चा की गई.

Advertisement
बीटी कॉटन में फैले गुलाबी सुंडी के प्रकोप के कृषि विभाग ने गिनाए ये कारण, जानिए डिटेल्सबीटी कॉटन में फैले गुलाबी सुंडी का प्रकोप को लेकर कृषि विभाग ने गिनाए ये कारण

राजस्थान में बीटी कॉटन में इस साल भी गुलाबी सुंडी का प्रकोप देखने को मिला है. कई इलाकों में किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं. इसीलिए बीटी कपास फसल में गुलाबी सुण्ड़ी के प्रकोप के प्रबंधन के लिए कृषि आयुक्तालय जयपुर में कृषि एवं उद्यानिकी शासन सचिव डॉ. पृथ्वी की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय कार्यशाला भी रखी गई. इस कार्यशाला में खरीफ-2023 में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिलों में बीटी कॉटन में गुलाबी सुण्डी के प्रकोप से हुए नुकसान के कारणों एवं विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई. साथ ही गुलाबी सुण्डी के जीवन चक्र, उसके द्वारा किये गए आर्थिक नुकसान के स्तर पर भी चर्चा की गई.डॉ. पृथ्वी ने बताया कि बीटी कपास में खरीफ-2023 के दौरान गुलाबी सुण्डी का प्रकोप श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिले में होने का प्रमुख कारण पिछले साल की छट्टियों (बन सठियों) के टुकड़े खेत में पड़े रहना था.

इन छट्टियों में मौजूद गुलाबी सुण्डी कीट के प्यूपा से पहला संक्रमण शुरू हुआ और बाद में पूरी फसल में फैल गया. 

मौसम ने भी कीट को पनपने में मदद की

वर्कशॉप में मौजूद कृषि अधिकारियों के अनुसार बीटी कपास की बुवाई अप्रैल माह के पहले सप्ताह से लेकर 10 जून तक की जाती है. बुवाई लंबे समय में किए जाने के कारण गुलाबी सुण्डी के जीवन चक्र के लिए अनुकूल फसल उपलब्ध रहने से टिण्डों में प्रकोप हुआ है. मई, जून व जुलाई में सामान्य से अधिक वर्षा व कम तापमान के कारण अनुकूल वातावरण मिलने से कीट का प्रकोप बहुत ज्यादा हुआ. सितम्बर माह में हुई वर्षा के बाद टिण्डा गलन भी नुकसान का मुख्य कारण रहा.

ये भी पढ़ें- रागी की खेती से बदल रही झारखंड के इस जिले के किसानों की तकदीर, जानें क्या हैं इसके फायदे

किसान ऐसे करें बचाव

कृषि अधिकारियों और वैज्ञानिकों के अनुसार कार्यशाला में कीट प्रकोप से बचाव के लिए कई उपाय भी सुझाए गए. इनमें विभागीय सिफारिश अनुसार ही उपयुक्त समय पर फसल की बुवाई करना, कीट की मॉनिटरिंग करने  के लिए फैरोमेन ट्रेप लगाने, कम उंचाई वाली व कम अवधि में पकने वाली किस्मों को प्राथमिकता देने, केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, सिरसा, हरियाणा की ओर से जारी किए गए समय-सारणी अनुसार फसल 45-60 दिन की होने पर नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव करने की सलाह किसानों को दी गई है.

ये भी पढ़ें- बारिश और ओलावृष्टि से प्रभावित किसानों को कितना मिलेगा मुआवजा, रेट लिस्ट जारी

इसके साथ ही फसल 60-120 दिन की होने पर सिंथेटिक पॉयरेथ्राट्रड्स का छिड़काव नहीं करने, फसल बुवाई से पहले ही अभियान चलाकर किसानों को सलाह दी जाए कि खेत पर रखी हुई छट्टियों को झाड़कर अधपके टिण्ड़ों को जमा कर नष्ट कर दें. इसके अलावा जिनिंग मिलों में कॉटन की जिनिंग के बाद अवशेष सामग्री को नष्ट किया जाए और कपास के बिनोला को ढककर रखा जाए ताकि उसमें उपस्थित प्यूपा से पैदा होने वाले कीट का प्रसार नहीं हो सके. 

इस कार्यशाला में एडीजी सीडस् डॉ डी.के. यादव, आईसीएआर निदेशक नई दिल्ली, निदेशक अनुसंधान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना, निदेशक अनुसंधान चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार, निदेशक अनुसंधान एसकेआरऐयू बीकानेर, कीट वैज्ञानिक, केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय ईकाई सिरसा, हरियाणा, कृषि आयुक्तालय के अधिकारी, संभाग स्तरीय अधिकारी, कृषि वैज्ञानिकों व फैडरेशन ऑफ सीड इंण्डस्ट्रीज ऑफ इंडिया के बीज उत्पादक कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

POST A COMMENT