गन्ने की नई किस्म सीओ 0238पिछले कई सालों से उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए 'Co 0238' सबसे भरोसेमंद किस्म रही है. लेकिन, पिछले कुछ समय से इस किस्म में 'लाल सड़न रोग' (Red Rot) का प्रकोप इतना बढ़ गया कि किसानों की खड़ी फसलें खेतों में ही बर्बाद होने लगीं. किसान इस बीमारी से बुरी तरह परेशान थे. इसी संकट से उबारने के लिए वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद एक नई किस्म 'कोलख 16202' विकसित की है. यह किस्म न सिर्फ लाल सड़न से लड़ने में सक्षम है, बल्कि पैदावार में भी पुरानी किस्म से आगे है, इसे 'एलजी 95053' और 'कोलख 94184' के मेल क्रॉस से तैयार किया गया है. अब यह किस्म Co 0238 की जगह लेने के लिए पूरी तरह तैयार है और किसानों के लिए मुनाफे का नया सौदा साबित हो रही है.
किसी भी बीज को सीधे किसानों तक नहीं पहुंचाया जाता. कोलख 16202' को भी खेतों में उतारने से पहले बहुत सख्त परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है. साल 2016 से लेकर लगातार कई सालों तक वैज्ञानिकों ने अलग-अलग इलाकों, जमीनों और यहां तक कि चीनी मिलों के खेतों पर इसका ट्रायल किया. जब यह किस्म हर कसौटी पर खरी उतरी, तभी इसे पास किया गया. इन सफल परीक्षणों के आधार पर ही भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2024 में इसे राज्य में व्यावसायिक खेती के लिए हरी झंडी दिखाई है. अब किसान बिना किसी डर के इस प्रमाणित बीज का उत्पादन कर सकते हैं और अपनी आय बढ़ा सकते हैं. यह जल्दबाजी में लाया गया बीज नहीं, बल्कि शोध का पक्का नतीजा है.
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान यानी IISR, लखनऊ ने इस किस्म को खास तौर पर उत्तर प्रदेश की मिट्टी और मौसम को ध्यान में रखकर बनाया है. इसे 'इक्षु 16' के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह 'शीघ्र पकने वाली प्रजाति है. अक्सर किसान इस बात से परेशान रहते हैं कि गन्ना देर से पकता है, जिससे अगली फसल में देरी हो जाती है. लेकिन 'कोलख 16202' खेत में सिर्फ 8 से 10 महीनों के अंदर ही तैयार हो जाता है.
इतने कम समय में ही इसमें चीनी की मात्रा 18% से ज्यादा हो जाती है. यह चीनी मिलों को भी फायदा पहुंचाती है क्योंकि उन्हें सीजन की शुरुआत में ही अच्छी क्वालिटी का गन्ना मिल जाता है. 'कोलख 16202' की सबसे अच्छी बात यह है कि यह खेत को जल्दी खाली कर देती है. इसका सीधा फायदा यह होता है कि रबी सीजन की फसलें, जैसे कि गेहूं, की बुवाई के लिए किसानों को पर्याप्त समय मिल जाता है.
कोई भी किसान नई किस्म को तभी अपनाता है जब उसे पुरानी किस्म से ज्यादा फायदा दिखे. 'कोलख 16202' इस मामले में अव्वल है. सरकारी ट्रायल्स और परीक्षणों में यह साबित हुआ है कि इसकी औसत पैदावार लगभग 93.22 टन प्रति हेक्टेयर है. अगर हम इसकी तुलना पुरानी लोकप्रिय किस्म 'को 0238' से करें, तो वह करीब 90.76 टन प्रति हेक्टेयर थी. यानी, किसान को उसी खेत और उसी मेहनत में ज्यादा गन्ना मिलेगा.
इसके अलावा, इसकी पेड़ी फसल भी बहुत शानदार होती है. पेड़ी में भी यह पुरानी किस्म के मुकाबले ज्यादा उत्पादन देती है. ज्यादा वजन और बेहतर रिकवरी के कारण, प्रति हेक्टेयर चीनी का कुल उत्पादन भी इस किस्म में ज्यादा निकलता है. जहां तक चीनी की मात्रा का सवाल है, इसमें शर्करा का स्तर 17.74% है. हालांकि यह 'को 0238' किस्म 17.90% से मामूली रूप से कम लग सकता है, लेकिन चूंकि खेत में गन्ने का कुल वजन ज्यादा निकलता है, इसलिए चीनी का कुल उत्पादन 11.43 टन/हेक्टेयर भी ज्यादा ही मिलता है जिससे मिल और किसान दोनों खुश रहेंगे.
गन्ना किसानों के लिए 'लाल सड़न रोग' किसी कैंसर से कम नहीं था. लेकिन 'कोलख 16202' पूरी तरह से इस रोग की 'प्रतिरोधी' किस्म है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि लाल सड़न के सबसे खतरनाक प्रकारों सीएफ 08 और सीएफ 13 का इस पर कोई असर नहीं होता. इसका मतलब है कि अब किसानों की फसल बीमारी की वजह से नहीं सड़ेगी. इसके साथ ही, इस किस्म में अन्य कीड़े और कीट भी कम लगते हैं. जब बीमारी और कीड़े कम लगेंगे, तो किसान को महंगी दवाइयों और कीटनाशकों पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. इस तरह लागत कम होगी और शुद्ध मुनाफा बढ़ेगा. यह किस्म पर्यावरण के लिए भी बेहतर है क्योंकि इसमें रसायनों की जरूरत कम पड़ती है. कोलख 16202 आने वाले समय में किसानों की आय अधिक करने और चीनी उद्योग को मजबूती देने में सबसे अहम भूमिका निभाएगी.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today