हाल के दिनों में कपास के दाम (cotton price) गिरने से इसके निर्यात की मांग बढ़ी है. दाम में गिरावट आने से विदेशों में भारत के कपास की मांग तेज हुई है. इसे देखते हुए किसान मौजूदा स्थिति में कपास बेचकर अपनी पैदावार निकाल सकते हैं. वैसे किसान जो ज्यादा दाम पर अपनी पैदावार बेचना चाहते हैं, उन्हें अभी इंतजार करना होगा. ऐसे किसानों को अधिक मुनाफा तब मिलेगा जब बाजार में कपास के दाम बढ़ेंगे. हालांकि बहुत जल्दी इसमें सुधार होता नहीं दिखता क्योंकि चीन में कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार ने वहां निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है. चीन को होने वाले निर्यात पर रोक की वजह से कपास के दाम में गिरावट देखी जा रही है.
भारत के किसानों का कपास सबसे अधिक चीन खरीदता है. भारत से हर साल बहुत बड़ी मात्रा में कपास चीन को निर्यात किया जाता है. इससे किसानों को हर साल बेहतर कमाई होती रही है. लेकिन इस साल हालात बदले हुए नजर आ रहे हैं. चीन में कोविड के मामले बढ़ने से के बाद वहां के बड़े-बड़े व्यापारियों ने कपास का आयात रोक दिया है. पहले जिन व्यापारियों ने भारत से कपास खरीद का एग्रीमेंट कर लिया, उनकी सप्लाई भेजी गई है. अन्यथा किसान अपनी पैदावार को अभी रोके हुए हैं.
गिरे दाम के बीच वैसे किसान अपना कपास बेच रहे हैं जिनके पास पैदावार रखने की कोई जगह नहीं है. महाराष्ट्र में बड़े-बड़े कपास किसानों ने अपने घरों में ही पैदावार को जमा कर रखा है. लेकिन जरूरतमंद किसानों को अपनी पैदावार बेचकर निकलने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है. ऐसे किसान प्राइवेट ट्रेडर्स से अपना माल बेचने को मजबूर हैं. ऐसे किसान खेती की लागत निकाल कर कुछ मुनाफा के साथ अपनी पैदावार बेच रहे हैं. कम दाम पर कपास की बिक्री होने से विदेशों से भारत के कपास की मांग बढ़ी है. इसमें बांग्लादेश अकेला देश है जो भारत के कपास की अभी सबसे अधिक मांग कर रहा है.
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अभी कपास के रेट 7500 से 8200 रुपये प्रति क्विंटल तक चल रहे हैं. सरकार ने कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6080 रुपये निर्धारित किया है. लेकिन ये सरकारी रेट है. एक्सपोर्ट बाजार में प्राइवेट ट्रेडर्स किसानों को 7500 से 8200 रुपये तक का दाम दे रहे हैं. हालांकि किसानों की नजर में 9500 रुपये प्रति क्विंटल का रेट चल रहा है जिस पर वे एक-डेढ़ महीने पहले कपास बेच रहे थे. अभी उन्हें मजबूरी में 7500 रुपये के रेट पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है जो किसी भी तरह से फायदे का सौदा नहीं है.
गिरे हुए रेट की वजह से महाराष्ट्र में औरंगाबाद के किसान सबसे अधिक परेशान हैं. कपास की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि खरीफ फसल की बुआई से लेकर कटाई तक किसानों ने बीज, खाद, दवाई, निराई, कटाई पर भारी खर्च किया है. ऐसे में भारी बारिश और बेमौसम बारिश के कारण जहां एक ओर कपास कम उपलब्ध हो रहा है, वहीं दूसरी ओर बाजार में कीमत कम होने से किसानों के लिए खर्चा निकालना मुश्किल हो रहा है. इन खर्चों के लिए जिनसे कर्ज लिया गया था, उन्हें अब कर्ज चुकाने का दबाव है. इससे किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ा है.
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जिन किसानों को 10-11 हजार से अधिक कपास के दाम का इंतजार है, उन्हें मार्च-अप्रैल तक रुकना होगा. मार्च-अप्रैल में कपास के दाम में तेजी आ सकती है. महाराष्ट्र के कॉटन एक्सपर्ट गुणवंत पाटिल ने 'किसान तक' से बातचीत में बताया कि पिछले साल मार्च-अप्रैल में कपास के भाव 11000 रुपये तक चले गए थे. किसान अभी उसी रेट का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में मार्च-अप्रैल में कपास का बाजार तेजी पकड़ सकता है और किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है. अभी दाम में गिरावट है, इसलिए किसानों ने अपनी उपज रोक कर रखी है. जिन किसानों के पास कपास रखने की जगह नहीं है, वे ही अपनी पैदावार अभी बाजार में निकाल रहे हैं.
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