Farmers Suicide: महाराष्ट्र में आठ महीनों में 1809 किसानों ने की आत्महत्या, पिछले साल के मुकाबले मामलों में सात फीसदी की आई कमी

Farmers Suicide: महाराष्ट्र में आठ महीनों में 1809 किसानों ने की आत्महत्या, पिछले साल के मुकाबले मामलों में सात फीसदी की आई कमी

इस साल भले ही आत्महत्या के मामलों में सात फीसदी की कमी आई है पर मराठवाड़ा के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पिछले साल की तुलना में इस साल किसान आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. आंकड़ों के मुताबिक यहां 2022 में 670 किसानों ने आत्महत्या की थी जबकि इस साल 2023 में जनवरी से अगस्त तक में 685 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

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Farmers Suicide: महाराष्ट्र में आठ महीनों में 1809 किसानों ने की आत्महत्या, पिछले साल के मुकाबले मामलों में सात फीसदी की आई कमीमहाराष्ट्र किसान आत्महत्या मामला सांकेतिक तस्वीर

महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या मामले को लेकर जो रिपोर्ट आए हैं वो काफी चौंकाने वाले हैं. आकड़ों के मुताबकि यहां पर जनरी से अगस्त महीने के बीच में हर दिन औसतन सात किसानों ने आत्महत्या की है. कुल किसानों के आत्महत्या की बात करें तो राज्य में जनवरी से लेकर अगस्त तक आठ महीनों में 1809 किसानों ने आत्महत्या की है. हालांकि राहत वाली बात यह है कि पिछले साल की तुलना मे यह आंकड़ा कम है. क्योकि इस साल दर्ज किए गए आत्महत्या के मामले पिछले साल से सात फीसदी कम हैं. पिछले साल आठ महीनों में 1948 किसानों ने आत्महत्या की थी. 

हालांकि इस साल भले ही आत्महत्या के मामलों में सात फीसदी की कमी आई है पर मराठवाड़ा के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पिछले साल की तुलना में इस साल किसान आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. आंकड़ों के मुताबिक यहां 2022 में 670 किसानों ने आत्महत्या की थी जबकि इस साल 2023 में जनवरी से अगस्त तक में 685 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इस साल जो कुल 1809 मामले दर्ज किए गए हैं उनमें 50 फीसदी से अधिक कपास उत्पादक क्षेत्र विदर्भ से है. विदर्भ का इलाका राज्य के उप मख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीश का गृह क्षेत्र है और जहां तक किसानों के आत्महत्या का सवाल है इस क्षेत्र के लिए यह एक धब्बा है. 

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सिर्फ 51 फीसदी मामले ही मुआवजा के पात्र

किसान आत्महत्या के सबसे अधिक 907 मामले विदर्भ क्षेत्र से आए थे, जबकि दूसरे नंबर पर मराठवाड़ा था. तीसरे नंबर पर उत्तरी महाराष्ट्र था जहां पर किसान आत्महत्या के 200 मामले सामने आए थे. जो पिछले साल की इस अवधि की तुलना में 54 फीसदी कम थे. सबसे दुखद बात यह है कि कुल आत्महत्या के मामलों मे से सिर्फ 928 मामलों को ही सरकार की तरफ से मुआवजा देने का पात्र समझा गया है. मतलब सिर्फ 51 फीसदी मामलों में मृतक के परिवारों को मुआवजा दिया जाएगा. क्योंकि सरकार     केवल उन मामलों में ही मुआवजा प्रदान करती है जो किसान लोन लिए होते हैं. 

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अभी भी अच्छी कीमत पा सकते हैं सोयाबीन किसान

मुआवजे के तौर परिवार को एक लाख रुपये दिए जाते हैं. आकंड़ों से पता चलता है कि अब तक 89 फीसदी मामलों में भुगतान पूरा हो चुका है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक किसान नेता अजीत नवले ने कहा कि मराठवाड़ा और विदर्भ मे खेती की जानेवाली कपास औऱ सोयाबीन जैसे कैश क्रॉप्स पर किसानों को पिछले दो सालों में एमएसपी से अधिक कीमत मिली है. इससे उनके आर्थिक संकट को कम करने में थोडी मदद जरूर हुई ङै. उन्होंने  कहा कि मॉनसून में देरी और लंबे समय तक सूखा रहने के कारण फसले प्रभावित हुई हैं, पर कपास औऱ सोयाबीन खराब होने से बच गई है. इसलिए सोयाबीन किसान अभी भी अपनी फसल को बचा सकते हैं और अच्छी कीमत पा सकते हैं. 

 

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