केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देश में गेहूं और जौ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा. यह सच है कि भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है, लेकिन प्रति हेक्टेयर उपज के मामले में हम कई देशों से पीछे हैं. हालांकि, राहत की बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में हमारी उत्पादकता की 'विकास दर' काफी तेज रही है. सरकार जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच भी उत्पादन बढ़ाने के लिए गेहूं की नई किस्में विकसित करने पर काम कर रही है. जिससे विपरीत हालात में भी उत्पादन और उत्पादकता में इजाफा हो रहा है.
यू.एस.डी.ए. (USDA) के आंकड़ों के अनुसार गेहूं की उत्पादकता में वैश्विक अंतर को समझने के लिए विभिन्न देशों के आंकड़ों पर नज़र डालना जरूरी है. जहा यूनाइटेड किंगडम में प्रति हेक्टेयर उपज लगभग 77 क्विंटल है, वहीं चीन और मेक्सिको में यह आंकड़ा लगभग 58 क्विंटल और यूरोपीय संघ में औसतन 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इन प्रमुख देशों की तुलना में, भारत की गेहूं उत्पादकता लगभग 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
आखिर चीन ऐसा क्या करता है जो गेहूं उत्पादन में भारत से 65% आगे है. चीन की सफलता के पीछे मजबूत सरकारी नीतियां, कृषि अनुसंधान में भारी निवेश और आधुनिक तकनीक का हाथ है. वहां के किसान प्रिसिजन फार्मिंग, उच्च उपज वाले बीजों, संतुलित उर्वरक और बेहतर सिंचाई प्रणालियों का व्यापक उपयोग करते हैं, जिससे प्रति हेक्टेयर पैदावार भारत की तुलना में बहुत अधिक हो जाती है.
यू.एस.डी.ए. (संयुक्त राज्य कृषि विभाग) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में भारत और चीन, दोनों ने गेहूं उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन दोनों की रफ्तार में बड़ा अंतर है. भारत की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 27.5 क्विंटल से बढ़कर 35.6 क्विंटल हो गई, जो लगभग 29.5% की वृद्धि है. इसी तरह, कुल उत्पादन भी 865 लाख टन से बढ़कर 1175 लाख टन पर पहुंच गया, जो 35.8% की शानदार बढ़ोतरी है. इस दौरान सबसे तेज उछाल साल 2017-18 में आया था. हालांकि, साल 2022-23 में तापमान बढ़ने (हीटवेव) के कारण उत्पादन में 5.1% की गिरावट भी दर्ज की गई, जो भारत की जलवायु पर निर्भरता को दिखाता है.
चीन की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 54 क्विंटल से बढ़कर 59.3 क्विंटल हुई, जिसमें 9.8% की वृद्धि हुई. वहीं, कुल उत्पादन 1325 लाख टन से बढ़कर 1400 लाख टन हो गया, जो 5.6% की स्थिर बढ़ोतरी है. चीन का प्रदर्शन धीमी गति से लेकिन लगातार और स्थिर रहा. भारत ने पिछले दस सालों में वृद्धि के मामले में चीन से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन चीन आज भी प्रति हेक्टेयर पैदावार और कुल उत्पादन में भारत से बहुत आगे है और उसकी वृद्धि अधिक स्थिर है.
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में अधिकांश किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके पास औसतन 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है. खेतों का छोटा आकार आधुनिक और बड़ी मशीनों के कुशल उपयोग में बाधा डालता है, जिससे लागत बढ़ती है और दक्षता कम होती है. हालांकि भारत में कई उच्च उपज वाली किस्में विकसित की गई हैं, लेकिन उनका फैलाव और किसानों द्वारा उन्हें अपनाने की दर धीमी है. कई किसान अभी भी पारंपरिक या पुरानी किस्मों का उपयोग कर रहे हैं जिनकी उत्पादकता क्षमता कम है.
किसानों द्वारा उर्वरकों का असंतुलित उपयोग एक बड़ी समस्या है. नाइट्रोजन (यूरिया) का अत्यधिक उपयोग होता है, जबकि फास्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, सल्फर की कमी रह जाती है. इससे मिट्टी की स्वास्थ्य में गिरावट आई है और पौधों की विकास क्षमता प्रभावित हुई है. भारत में आज भी बड़े पैमाने पर बाढ़ सिंचाई (Flood Irrigation) पद्धति का उपयोग होता है, जिससे पानी की बर्बादी होती है और खेतों में पानी का असमान वितरण होता है. इसके आलावा फरवरी-मार्च में अचानक तापमान का बढ़ना (टर्मिनल हीट) दानों को पूरी तरह से भरने से रोकता है, जिससे उपज कम हो जाती है. खरपतवार ससे उपज में 15-30% तक की कमी आ सकती है. खरपतवार प्रबंधन के प्रभावी तरीकों का अभाव और सही समय पर कीट नियंत्रण न हो पाना भी एक बड़ी चुनौती है.
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