
चंबल की बीहड़ पट्टी में स्थित मुरैना जिले के तीन गांव मितावली, गढ़ी पढ़ावली और बटेश्वर अब देश दुनिया के सैलानियों को लुभा रहे हैं. इसकी वजह है, हजारों साल पुरानी ऐतिहासिक विरासत,जिसके अवशेष यहां की तपती धरती पर आज भी मौजूद हैं. इन गांवों में इतिहास के तीन काल खंडों की विरासत गुलजार है. इनमें मितावली गांव में गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं द्वारा बयावान जंगल से घिरी 100 फुट ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया चौंसठ योगिनी मंदिर है, तो गढ़ी पढ़ावली में प्राचीन मंदिरों काे संवार कर बनाया गया मिनी खजुराहो है. वहीं, बटेश्वर में भी हजारों साल पुराने मंदिरों के भग्नावशेषों को एक परिसर में जीवंत किया जा रहा है. इन तीनों गांवों को सरकार ने पर्यटन ग्राम का दर्जा देकर 2 से 3 किमी के दायरे में मौजूद इन गांवों का Tourist Circuit बनाया है. केंद्र और राज्य सरकार के आपसी सहयोग से चल रही यह विरासत संरक्षण परियोजना न केवल इस इलाके की धूमिल छवि को निखार रही है, बल्कि बीहड़ के इन गांव वालों की तकदीर को भी संवारने में सहारा बन रही है.
भारत की संसद दिल्ली में स्थित है. इस इमारत का डिजाइन ब्रिटिश वास्तुकार एडवर्ड लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने बनाया था. लेकिन मुरैना के मिलावली गांव में तकरीबन 100 फुट ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गोल इमारत दूर से ही लोगों को चकित कर देती है. यह इमारत हूबहू संसद भवन का छोटा रूप है. करीब से देखने पर यह भ्रम टूटता है कि ये इमारत संसद भवन नहीं बल्कि एक मंदिर है.
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI के सेवानिवृत्त आर्कियोलॉजिस्ट केके मोहम्मद ने 2005 में इन तीनों गांवों में बिखरी पड़ी ऐतिहासिक धरोहरों को संवारने की परियोजना शुरू की थी. मोहम्मद ने बताया कि इस मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है कि यह योग, वैदिक गणित और ज्योतिष की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था. गौरतलब है कि इसके कुछ सबूत मंदिर के बाहरी भाग में एक चट्टान पर खुदे मंत्रों और तमाम आकृतियों के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं. मोहम्मद ने बताया कि भारत में 3 चौंसठ योगिनी मंदिर हैं. इनमें से एक मितावली में और दो ओडिशा में मौजूद हैं.
इस मंदिर तक जाने के लिए समय ने खुद सीढ़ियों काे गढ़ा है. पहाड़ी की ऊंचाई को नापती इन सीढ़ियों की बनावट से ही साफ झलकता है कि इन्हें किसी ने बनाया नहीं है. मंदिर के अंदर का नजारा बेहद रोमांचित करने वाला है. इसके वृत्ताकार आंगन के बाहरी सर्किल में योग की 64 मुद्राओं में छोटे छोटे 64 शिव मंदिर मौजूद हैं. इन मंदिरों की मूर्तियां अब काल के गाल में समा चुकी हैं. इनके स्थान पर कुछ मंदिरों में आसपास की खुदाई से मिले शिवलिंग जरूर स्थापित कर दिए गए हैं. मंदिर में आंगन के बीचों बीच विशाल शिवलिंग वाला एक अन्य मंदिर है. मंदिर की बाहरी दीवार पर तमाम मूर्तियां उकेरी गई हैं. इनमें से कुछ मूर्तियां खंडित हो चुकी हैं.
मुरैना जिले में पुरातात्विक महत्व के जिन तीन गांवों को पर्यटन ग्राम का दर्जा देकर एक टूरिस्ट सर्किट बनाया गया है, उसका दूसरा पड़ाव गढ़ी पढ़ावली गांव है. यह गांव मितावली से महज 3 किमी दूर स्थित है.
इस गांव में भी हिंदू देवताओं की विभिन्न मुद्राओं वाली प्राचीन मूर्तियां जमींदोज थीं. पुरातत्व विभाग ने इन मूर्तियाें काे फिर से मौलिक स्वरूप दिया है. इससे जो आकृति उभरी वह खजुरोहो के मुख्य मंदिर की तरह दिखती है. इसलिए इसे मिनी खजुीराहो भी कहा जाने लगा है. लगभग 100 फुट ऊंची गढ़ी के ऊपर बने इस भव्य मंदिर के अहाते में अभी भी अनेकों खंडित मूर्तियों को उचित स्थान मिलने का इंतजार है.
मुरैना जिले का तीसरा पर्यटन ग्राम बटेश्वर गांव है. इस गांव काे स्थानीय भाषा में लोग बटेसर भी कहते हैं. बटेश्वर में बिखरी पड़ी पुरातात्विक महत्व की विरासत को संजाेने के लिए सरकारी प्रयासों के फलस्वरूप ही इस इलाके में सैलानियों की आमद होने लगी है. केन्द्र सरकार के वित्तीय सहयोग से मप्र सरकार द्वारा एएसआई के तकनीकी मार्गदर्शन में प्राचीन मंदिरों के जीर्णाद्धार का काम जारी है. सदियों पहले जमींदोज हो चुके इन मंदिरों के भग्नावशेषों को जोड़ कर इन्हें मूल स्वरूप देने का काम साल 2017 से किया जा रहा है. हालांकि इस परियोजना की शुरुआत एएसआई की मप्र इकाई के तत्कालीन मुख्य पुराविद केके मोहम्मद ने साल 2005 में की थी.
बकौल मोहम्मद इतिहासकारों का एक वर्ग मानता है कि बटेश्वर में महाभारत काल तक की धरोहरें मौजूद है. उन्होंने बताया कि यह इलाका गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं की कर्मस्थली रहा है, इसलिए अभी इस इलाके में लगभग 1000 साल पुराने ऐतिहासिक अवशेष मिले हैं जो कि इसी राजवंश के समकालीन हैं. उन्होंने भरोसा जताया कि पुरातत्व की बारीक खोज करने पर इस इलाके में महाभारत काल के अवशेष भी मिलेंगे. वह इस टूरिस्ट सर्किट में आगे भी उत्खनन कर प्राचीन अवशेषों की खोज जारी रखने के हिमायती हैं.
बटेश्वर में लगभग 2 दशक से जमींदाेज एतिहासिक अवशेषों के उत्खनन का काम जारी है. मिट्टी के टीलों में दबे इन मंदिरों के अवशेष एएसआई के अर्कियोलॉजिस्ट की टीम द्वारा बहुत ही सावधानी से निकाले जा रहे हैं. इसमें मंदिर ही नहीं, मिट्टी में दबे पानी के कुंड भी मिले हैं. कुंड से मिट्टी निकाल कर सफाई की गई. इसके बाद मंदिर के अहाते में मिला कुंड भी जलमग्न होकर अपने मूल स्वरूप में वापस आ गया है.
इसी प्रकार जमींदोज मंदिरों को भी संवारा जा रहा है. इसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर पूरे इलाके की मैपिंग की गई. इसके आधार पर हर शिलाखंड की नंबरिंग करके इन्हें मंदिरों में लगाया जा रहा है. जो शिलाखंड पूरी तरह से टूट गए हैं, उनकी जगह नए पत्थरों को तराश कर मंदिरों को मूल स्वरूप दिया जा रहा है.
सेवानिवृत्त होकर अपने गृह राज्य केरल जा बसे मोहम्मद ने बताया कि दाे दशक पहले इस इलाके में दुर्दांत डाकू निर्भय गूजर सहित अन्य डकैत गिरोहों का बोलबाला था. खनन माफिया और डकैताें से घिरे इन तीनों गांवों के प्राचीन स्मारकों को संरक्षित करने का काम बेहद जटिल और चुनौतीपूर्ण था.
इस सबके बीच मोहम्मद की अगुवाई में एएसआई की टीम ने बेहद सूझबूझ के साथ इस चुनौती को स्वीकार कर काम शुरू किया. इससे हालात कुछ ऐसे बने कि इस काम में केंद्र और राज्य सरकार ने ताे मदद की ही, इलाके के डकैत भी मंदिरों के जीर्णोद्धार में हाथ बंटाने लगे. इसके साथ ही शुरू हुआ यह अहम काम आज भी जारी है.
विरासत स्थलों को नया जीवन मिलने के बाद सरकार ने इन तीन गांवों में पर्यटन की अपार संभावनाओं को परखते हुए इन्हें पर्यटन ग्राम का दर्जा दिया है. इन तीनों गांव को मिलाकर इसे एक टूरिस्ट सर्किट के तौर पर विकसित करने की मुहिम तेजी से आगे बढ़ रही है. इससे कभी दुर्दांत डाकुओं की गोलियों से गूंजती रही चंबल घाटी की इस बीहड़ पट्टी के दिन अब फिरने लगे हैं.
ये तीनों गांव, इतिहास के तीन कालखंडों की विरासत को अपने आगोश समेटे हुए हैं. जंगल और पथरीली पहाड़ियों से घिरे इस इलाके के तीन गांव मितावली, पढ़ावली और बटेश्वर की वजह से चंबल घाटी अब सैलानियों की सैरगाह बन गई है. धूल फांकते इतिहास के इन पथरीले पन्नों पर खुदी इबारत को पढ़ने के लिए देश दुनिया के लोग बरबस खिंचे चले आते हैं.
ऐतिहासिक विरासत से लबरेज इन तीनाें गांव को पर्यटन ग्राम का दर्जा मिलने के बाद इनमें विकास की गति तेज हुई है. इन गांवों में बिखरी पड़ी धरोहरों को संजोने का उपक्रम जारी रखते हुए सरकार ने इनमें पर्यटन सुविधाओं की बहाली से गांव वालों को भी जाेड़ा है.
तीनों गांवों में रेस्तरां सहित रुकने ठहरने की अन्य सुविधायें मुहैया कराने के कारोबार में गांव वाले लग गए हैं. इससे गांव वालों की आय में भी इजाफा हो रहा है. इन गांवों का दीदार करने अब देश विदेश से सैलानी आने लगे हैं. स्कूलों के बच्चे, इतिहास के छात्रों के स्टडी ग्रुप और पुरातत्व विज्ञानी भी इन गांवों की खास छानते मिल जाएंगे. इससे गांव की आजीविका के साधनों में तेजी से बदलाव आ रहा है.
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देश के अन्य इलाकों की तरह खनन की मार से ये टूरिस्ट सर्किट भी अछूता नहीं है. सबसे कठोर पत्थर की श्रेणी में शुमार Red Stone का इस इलाके में पर्याप्त भंडार है. इस कारण नियम कानून को ताक पर रखकर खनन का काम इन गांवों के आसपास धड़ल्ले से जारी है.
आलम यह है कि गढ़ी पढ़ावली के संरक्षित विरासत स्थल से चंद कदमों की दूरी पर बड़ी बड़ी मशीनों से पत्थर का खनन बदस्तूर जारी है. पत्थर की पहाड़ियों को तोड़ने के लिए दिन रात हो रहे डायनामाइट के धमाके इन विरासत स्थलों को लगातार दहला रहे हैं. गढ़ी पढ़ावली में खतरनाक स्तर पर हो रहे खनन की तस्वीरें इस इलाके में संभावित पर्यावरणीय असंतुलन की हकीकत को बेपर्दा करती हैं.
एमपी का यह टूरिस्ट सर्किट दिल्ली ग्वालियर हाईवे पर मुरैना से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है. इस सर्किट में शामिल तीन गांव मितावली, गढ़ी पढ़ावली और बटेश्वर, आपस में 2 से 3 किमी की दूरी पर मौजूद हैं. ग्वालियर से इन गांवों की दूरी लगभग 40 किमी है. जबकि दिल्ली की तरफ से आने पर ग्वालियर पहुंचने से 20 किमी पहले मुरैना से बांई ओर भिंंड रोड पर 22 किमी की दूरी पर ये तीनों गांव स्थित हैं.
यहां हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाईअड्डा ग्वालियर है. जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन मुरैना है. पंजाब और दिल्ली से दक्षिण भारत की ओर जाने वाली लगभग सभी रेलगाड़ियां ग्वालियर और मुरैना में रुकती हैं.
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