झारखंड इस साल एक बार फिर गंभीर सूखे के संकट का सामना कर रहा है. इससे किसानों को काफी परेशानी हो गई है. क्योंकि पानी की कमी के कारण किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं. पानी की कमी के कारण धान की खेती सबसे अधिक प्रभावित हुई है. ऐसे में किसानों को आर्थिक तौर पर नुकसान से बचाने के लिए मोटे अनाज की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. मोटे अनाज की खेती ही नहीं मोटे अनाज से बने व्यंजनों के खान-पान को भी बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है. ताकि लोग मोटे अनाज का उपयोग करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके. मोटे अनाज ने बने व्यंजनों के उपभोग को बढ़ावा देने के से मोटे अनाज की बाजार में मांग बढ़ेगी, इसका फायदा किसानों को होगा.
इसी प्रयास के तहत कृषि विज्ञान केंद्र रांची के सहयोग से बुढ़मू प्रखंड के गुतरू गांव में पोषक अनाज पर आधारित एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के दौरान मोटे अनाज के इस्तेमाल से विभिन्न व्यंजनों को बनाकर उसे प्रदर्शित करने की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इस प्रतियोगिता में कुल 47 महिला किसानों ने भाग लिया. महिलाओ ने रागी से बने कुल 53 व्यंजनों का प्रदर्शन किया. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बुढ़मू प्रखंड के प्रखंड प्रमुख सत्यनारायण मुंडा समेत अन्य लोग शामिल हे. कार्यक्रम के दौरान कृषि विज्ञानं केंद्र, रांची के वरीय वैज्ञानिक अजीत कुमार सिंह ने पोषक अनाज के प्रसार के लिए के.वी.के. अंतर्गत किये जा रहे विभिन्न कार्यों के बारे में विस्तारसे जानकारी दी. वहीं डॉ केवीके की होम साइंटिस्ट डॉ विशाखा सिंह ने कार्यक्रम के दौरान मोटे अनाज के पोषण के बारे में बताया.
सत्यनारायण मुंडा ने झारखंड में रागी की खेती एवं महत्व के बारे में चर्चा करते हुए बताया गया कि पोषक अनाज के सेवन करने कारण ही ग्रामीण लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता का अच्छा विकास हुआ एवं कोरोना काल में भी ग्रामीणों को कोरोना का अधिक सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि मोटे अनाज के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहती है. वहीं कार्यक्रम में उपस्थित राज्य विपणन प्रबंधक, इफको द्वारा रांची जिले में पोषक अनाजों की खेती एवं उसमें पोषक तत्व प्रबंधन पर चर्चा की गयी.
गौरतलब है कि झारखंड में इस बार बारिश की कमी के कारण जिस तरह से हालात बने हैं उसके बाद राज्य में रागी की खेती को कृषि विभाग खूब बढ़ावा दे रहा है. किसानों के बीच रागी की खेती करने के लिए उन्हें मुफ्त में बीज बांटे जा रहे हैं. इसके अलावा अनुदान पर भी बीज दिया जा रहा है. बेहतर किस्म के वेरायटी का विकास किया गया है. ताकि अधिक से अधिक किसान इसकी खेती कर सकें और अच्छा उत्पादन हासिल कर सकें.
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