झारखंड के खेतों से इस वक्त नए आलू की खुदाई नहीं हुई पर बाजार में नया आलू बिक रहा है. बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी मिल रही है. पुराने आलू से महंगा यह बिक रहा है. फिर ये सवाल उठ रहा है कि आखिर इतनी अधिक मात्रा में आलू कहां से आ रहा है. दरअसल इसके पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि अब आलू में मिलावटखोरी की जा रही है. अधिक मुनाफा कमाने की चाहत में सब्जी व्यापारी पुराने आलू में मिट्टी केमिकल और बालू मिलाकर इसे नया आल बनाकर बेच रहे हैं. क्योंकि मिलावट करने के बाद यह पूरी तरह नया आलू जैसा दिखता और ग्राहक इसके जाल में फंसकर इसे महंगे दाम में खरीद लेते हैं.
मीडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार इसमें कई बड़े व्यपारियों के साथ-साथ दूसरे राज्यों के सफेदपोश शामिल हैं. यह आलू हजारीबाग समेत झारखंड की अन्य मंडियों में बिक रहा है. बाजार में पुराने आलू की कीमत 20 रुपये प्रति किलो है, जबकि नया आलू 25 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है. हालांकि पुराने को नया आलू बनाकर बेचने का यह गोरखधंधा आज से नही चल रहा है. मिलावटखोरी और मुनाफे का यह बिजनेस हर साल सितंबर अक्टूबर महीने में शुरु हो जाता है.
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सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हर साल बड़े व्यापारी कोल्ड स्टोरेज से आलू निकालते हैं फिर इसमें एसिड, गेरूआ रंग और मिट्टी में लपेटकर इसे नया आलू की तरह बनाते हैं. इसके बाद बाजार में ग्राहकों को झूठ बोलकर नये आलू के दाम में उसे बेच देते हैं. पुराने आलू को नया बनाकर बेचने का यह खेल बारिश के अंत में शुरू होता है. यह ऐसा समय होता है जब बाजार में हरी सब्जियां कम होती है और लोग पुराना आलू खाकर उब चुके होते हैं. इसलिए लोग मीठा आलू खरीदना चाहते हैं. पर उन्हें नहीं मालूम होता है कि बरसात के खत्म होने के साथ ही नया आलू बाजार में कहां से आएगा.
जब कृषि विभाग से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने लोगों को सतर्क रहने की सलाह देते हुए कहा कि इस वक्त बाजार में नया आलू का आना संभव नहीं है. अगेती किस्म के आलू की बुवाई 15 सिंतबर के आस-पास की जाती है. इसे तैयार होने में कम से कम 60 दिनों का समय लगता है ऐसे में नया आलू 15 नवंबर के आस-पास ही बाजार में आता है. वहीं आलू के मुख्य फसल की बुवाई 15 से 25 अक्टूबर तक की जाती है. इसलिए अभी जो नया आलू बाजार में मिल रहा है लोगों को उसे खाने से परहेज करना चाहिए.
सबसे पहले कोल्ड स्टोरेज से नया आलू निकालकर उसे छांव में सुखाया जाता है. फिर जमीन खोदकर उसमें पानी भरा जाता है और आलू डाल दिया जाता है. इसके बाद उस गड्ढें में पीला, लाल या गेरुआ मिट्टी घोली जाती है. इसके साथ ही अभ्रक युक्त बालू वाली मिट्टी को डाला जाता है. इसके बाद इसमें एक बोतल एसिड डाला जाता है. फिर लकड़ी से इसे मिलाया जाता है. एसिड डालने के कारण आलू की उपरी परत झुलस जाती है. इससे अंदर का गुदा दिखने लगता है. साथ ही आलू ऊपरी परत पर रंग मिट्टी और बालू चिपक जाता है. इसके बाद आलू को गड्ढे से निकाल कर कपड़े से साफ किया जाता है, फिर उसे छानकर सुखाया जाता है. इसके बाद बोरा में पैक करके मंडियों में भेज दिया जाता है.
इस नये आलू को लेकर डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह का आलू पेट में काफी नुकसान करता है. एसिड से धोया हुआ आलू सिर्फ लीवर ही शरीर के अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए इस तरह के आलू को खाने से परहेज करना चाहिए. वहीं कई किसानों ने बताया जिन्होंने आलू की अगेती खेती की थी उनके खेत में अभी तक आलू तैयार नहीं हुआ है, फिर बाजार में नया आलू कहां से आ रहा है.
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