हिमाचल प्रदेश में फलों से लदे सेब के पेड़ों की कटाई का मामला गरमाया हुआ है. नाराज किसानों ने 29 जुलाई को सचिवालय घेराव और व्यापक विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है. इस बीच, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने गुरुवार को मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनकी सरकार अतिक्रमित जंगल की जमीन पर पेड़ों की कटाई के पक्ष में नहीं है. सीएम ने कहा कि राज्य सरकार का मानना है कि फलों से लदे पेड़ों को काटना अनुचित है. हाईकोर्ट से अनुरोध किया जाएगा कि सेब की फसल की नीलामी के लिए हमें पर्याप्त समय दिया जाए.
हाईकोर्ट ने राज्य के वन विभाग को निर्देश दिया था कि जंगल की जमीन पर अतिक्रमण कर लगाए गए सेब के पेड़ों और बागानों को हटाया जाए और उनकी जगह जंगल की प्रजातियों के पौधे लगाए जाएं. इसके बाद वन विभाग ने जमीन खाली कराने के लिए सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है. कोर्ट की चिंता इस बात को लेकर है कि जहां पहले अतिक्रमण हटाया गया था, वहां दोबारा कब्जा किया गया है.
सीएम सुक्खू ने बताया कि इस मुद्दे पर जल्द ही बागवानी मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर कानूनी पहलुओं पर चर्चा की जाएगी, ताकि सुप्रीम कोर्ट में अपील की ठोस नींव रखी जा सके.
बुधवार को राज्य के शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने भी इस कार्रवाई पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने कहा कि जिन किसानों के पास 5 बीघा से कम जमीन है, उनके हितों की रक्षा होनी चाहिए. रोहित ठाकुर शिमला जिले के जुब्बल और कोटखाई क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने सीएम से हस्तक्षेप की मांग की है।
इसी बीच, एप्पल फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (AFFI) ने 29 जुलाई को शिमला सचिवालय के बाहर एक बड़ा प्रदर्शन करने की घोषणा की है. संगठन का कहना है कि बागानों की कटाई ऐसे समय में की जा रही है, जब महज दो महीने बाद सेब की फसल तुड़ाई होनी है.
सीपीआई(एम) नेता और AFFI के सह-संयोजक राकेश सिंघा ने आरोप लगाया कि शिमला-रोहरू सेब बेल्ट की 300 बीघा अतिक्रमित भूमि पर लगे 4,000 सेब के पेड़ काटे जाएंगे. उन्होंने बताया कि चैतला, सराहन और आसपास के गांवों में पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं और कुछ किसानों के घर तक सील कर दिए गए हैं. (पीटीआई)
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