हरियाणा के सोनीपत की अनाज मंडी में हल्की बारिश के बाद एक बार फिर से प्रशासन की लापरवाही सामने आई है. मंडी में खुले आसमान के नीचे रखी गई किसानों की धान की फसल बारिश में भीग गई, जिससे अन्नदाता की छह महीने की मेहनत पानी में बह गई. बारिश के बाद जब किसान मंडी पहुंचे, तो वहां चारों ओर पानी भरा हुआ मिला. खरीदी गई फसल को भी मंडी अधिकारियों द्वारा यह कहकर वापस कर दिया गया कि अब वह फसल नहीं ली जाएगी. इससे किसानों में भारी रोष देखा गया.
किसानों का कहना है कि मंडी में पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है और वहां बनाए गए शेड पर भी अवैध कब्जा है, जिसके चलते फसल खुले में रखनी पड़ी. कई किसानों ने बताया कि अगर समय पर फसल की खरीद होती तो यह नुकसान नहीं होता. किसानों ने मंडी प्रशासन पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाए हैं और मांग की है कि मंडी में सुविधाओं को दुरुस्त किया जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की परेशानी से बचा जा सके.
मंडी पहुंचे किसानों ने बताया कि थोड़ी बारिश हुई और उनकी पूरी उपज भीग गई. मंडी व्यवस्था पर करारा हमला करते हुए किसानों ने कहा कि यहां सुविधा के नाम पर लूट खसोट है. मंडी में अब धान खरीदने वाला कोई नहीं है क्योंकि उपज को भीगा हुआ बताकर सही रेट देने से मना हो रहा है. यहां तक कि किसानों ने खुद के तिरपाल से धान को ढका था, इसके लिए मंडी से कोई मदद नहीं मिली.
किसानों का आरोप है कि मंडी में पूरी तरह से मनमानी चल रही है. उपज को गीला बताकर खरीदने से मना किया जा रहा है. मंडी की शेड पर कब्जा हो रहा खा है और वहां किसानों को उपज रखने की सुविधा नहीं मिल रही है. ऐसे में किसानों को अपनी उपज खुले में रखनी पड़ रही है. किसानों से धान की न खरीद हो रही है और न ही उसका उठान हो रहा है. किसानों का कहना है कि उन्हें सेलर से लेकर आढ़ती और कमीशन एजेंट को पैसा भरना है, लेकिन मंडी में धान की खरीद नहीं होने से उनकी परेशानी बढ़ गई है.
किसानों की मांग है कि उनकी उपज को 2851 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद होनी चाहिए, मगर बारिश के बाद उसे भीगा हुआ बताकर रेट कम लगाया जा रहा है. मंडी परिसर में धान इसलिए भीग गया क्योंकि मजबूरी में उसे बाहर रखा गया था. मंडी में अधिकांश शेड टूटे पड़े हैं जिनकी मरम्मत नहीं हो रही है. जो सही शेड है उसपर व्यापारियों का कब्जा बना हुआ है. किसानों ने कहा कि वे मार्केट कमेटी में इसकी शिकायत करेंगे और समस्या का जल्द समाधान कराएंगे.
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