रामलला को कैमूर के सोनाचूर चावल से लग रहा भाेग, इधर इसकी खेती से दूरी बना रहे क‍िसान

रामलला को कैमूर के सोनाचूर चावल से लग रहा भाेग, इधर इसकी खेती से दूरी बना रहे क‍िसान

दस हजार से अधिक आबादी वाले मोकरी गांव में करीब 200 से अधिक किसान सोनाचूर धान की खेती करते हैं. लेकिन खेती के रकबा में कमी आई है. कभी इस धान की खेती पांच सौ हेक्टेयर में होती थी, आज 100 हेक्टेयर में सिमट गई है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सोनाचूर की खेती महंगी पड़ रही है जबकि अन्य फसलें अधिक फायदा देती हैं.

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रामलला को कैमूर के सोनाचूर चावल से लग रहा भाेग, इधर इसकी खेती से दूरी बना रहे क‍िसान सोनाचूर धान

कैमूर की पहाड़ियों और मां मुंडेश्वरी की गोद में बसा कैमूर धान का कटोरा के नाम से चर्चित है. इसी जिले के भभुआ प्रखंड के मोकरी गांव का सोनाचूर चावल अपने सुगंध और गुणवत्ता को लेकर देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. यहां का सोनाचूर चावल विदेशों में लोगों का स्वाद बढ़ाता है. लेकिन कुछ वर्षों से सोनाचूर चावल की अच्छी कीमत नहीं मिलने से किसान इसकी खेती कम कर रहे हैं. उनका कहना है कि खेती में जितना खर्च और मेहनत है, उसके अनुसार कीमत नहीं मिल रही. दूसरी ओर यहां के चावल की मांग कम नहीं हुई है. अयोध्या में भगवान रामचंद्र जी का प्रसाद बनाने के लिए पिछले तीन साल से सोनाचूर चावल यहीं से भेजा जा रहा है.

दस हजार से अधिक आबादी वाले मोकरी गांव में करीब 200 से अधिक किसान सोनाचूर धान की खेती करते हैं. लेकिन खेती के रकबा में कमी आई है. कभी इस धान की खेती पांच सौ हेक्टेयर में होती थी, आज 100 हेक्टेयर में सिमट गई है.

सोनाचूर धान का घटा रकबा 

किसान सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि सोनाचूर धान की खेती एक एकड़ में करने में करीब 20 हजार रुपये खर्च आता है. धान का उत्पादन 9 से 10 क्विंटल तक होता है. एक क्विंटल धान में 67 किलो तक चावल निकल जाता है. वहीं बाजार में 5 से 6 हजार रुपये तक भाव मिलता है. वे आगे हैं कहते हैं कि अगर कोई किसान 4 हजार रुपये प्रति बीघा किराये की जमीन पर खेती करता है, तो खर्च और बढ़ जाएगा. यानी कि पूरे साल में प्रति बीघा 3 हजार रुपये कमाना कौन सी समझदारी है. इसलिए अब यहां के किसान धान की दूसरी प्रजातियों की खेती कर रहे हैं जिससे वे समय से गेहूं की बुआई कर सकें. सोनाचूर की कभी 500 हेक्टेयर में खेती होती थी. आज 100 हेक्टेयर के आसपास खेती हो रही है. किसान दूसरी खेती की ओर रुख करना शुरू कर चुके हैं. 200 साल से सोनाचूर की खेती करने वाले मोकरी गांव के किसान बेहतर बाजार नहीं मिलने से परेशान हैं.

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खास सिवान में होती है खेती

मोकरी गांव के रहने वाले अभय कुमार सिंह बताते हैं कि सोनाचूर धान की खेती विशेष सिवान में होती है. गांव के पश्चिमी सिवान से लेकर बौरईं सिवान के बीच सुगंध वाले गोविंद भोग धान की खेती करीब 50 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों में की जाती है. पहले अन्य क्षेत्रों में भी सोनाचूर धान की खेती होती थी. लेकिन अब बहुत कम हो गया है. आगे वे कहते हैं कि जिस सिवान में धान की खेती होती है, वहां फरवरी महीने तक खेतों में पानी लगा रहता है.

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इसकी सिंचाई पहाड़ से आने वाले पानी और निजी ट्यूबवेल से की जाती है. इस जमीन पर धान की खेती के अलावा गेहूं की खेती नहीं हो पाती है. वहीं गोविंद भोग धान का पौधा करीब चार से पांच फीट तक बढ़ता है. इसका चावल काफी छोटा होता है, सुगंधित और मुलायम भी रहता है.

 

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