
आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है, लेकिन इस साल आलू रंक बना हुआ है और आलू उगाने वाले किसान मायूस हैं. आलम ये है कि बाजार के बेहतर दाम नहीं मिलने के कारण किसान आलू को खेत से नहीं लाना चाहते हैं. मजबूरी में किसान आलू को खेतों मे सड़ने के लिए छोड़ दे रहे या फिर सड़कों पर फेंक रहे हैं. बिहार में आलू के साथ ऐसा ही हो रहा है. कुछ दिनों पहले बेगूसराय जिले के किसानों ने आलू की उपज का उचित दाम ना मिलने के वजह से आलू सड़क पर फेंक कर अपना विरोध प्रकट कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि उन्होंने कर्ज लेकर आलू की खेती की थी, लेकिन मौजूदा भाव में आलू की खेती में आई आधी लागत भी नहीं निकल रही है. ऐसे में कई किसानों के सामने अब कर्जदार बनने का संकट आने लगा है, जिसे चुकाने के लिए किसान पशुओं को बेचने की योजना बना रहे हैं.
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में अकेले देश की 90 फीसदी आलू का उत्पादन होता है. वहीं देश के कुल उत्पादन का 17.02 फीसदी बिहार में आलू पैदा किया जाता है. राज्य के नालंदा, पटना, बेगूसराय,समस्तीपुर सहित कई जिलों में आलू की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन इस साल आलू के उचित दाम नहीं मिलने के चलते किसान खेतों में अपनी आलू की उपज खेत में छोड़ने को मजबूर हैं.
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किसानों का कहना है कि आलू की खेती में जितनी लागत लगी थी, उसका आधा दाम मिल रहा है.अब ऐसी स्थिति में वे अपने आलू खेत में ही छोड़ने को मजबूर हैं. बेगूसराय जिले के बछवारा प्रखंड के छमटिया गांव के रहने वाले उमेश कुंवर ने करीब दो बीघा के आसपास आलू की खेती की थी. वे आलू की खेती में लगनी वाली लागत को लेकर बताते हैं कि बीज पर 12 हजार, जुताई पर 9 हजार, खाद पर 7.5 हजार की सिंचाई पर 5 हजार, मजदूरी पर 5 हजार रुपये,दवाओं पर 5 हजार खर्च होता. इस तरह प्रति एकड़ आलू की खेती करने में करीब 35 से 40 हजार रुपए तक खर्च आता है.
उन्होनें बताया कि अगर उत्पादन बात करें तो एक एकड़ में करीब 54 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है, लेकिन बाजार में 400 से लेकर 500 रुपए प्रति क्विंटल आलू बिकने वजह से किसानों को प्रति एकड़ 22 से 25 हजार रुपए मिल रहा है. उन्होंने कहा कि अब इस हालत में किसान के पास विकल्प बचता है कि किसान आलू को खेत में ही छोड़ दे या फिर सड़क पर फेंक दे .
पटना जिले के कुरकुरी पंचायत के रहने वाले किसान महेंद्र सिंह नवल कहते हैं कि पिछले साल एक बीघा में आलू की खेती की थी. पिछले साल भी आलू की खेती में घाटा लग गया था, इस साल उस घाटा की पूर्ति करने के लिए तीन बीघा में आलू की खेती की है, लेकिन इस साल भी लग रहा है कि दाम सही नही मिलने के वजह से आलू की खेती इस साल भी घाटा देगी. क्योंकि कोल्ड स्टॉरेज ने भी किराया पिछले साल की तुलना में इस साल बढ़ाया है. पिछले साल जहां प्रति क्विंटल 2.40 रुपये चार्ज था. वहीं इस साल करीब 3 रुपये प्रति क्विंटल किराया है. इसके साथ ही स्टोरेज में रखने एवं निकलने तक ट्रांसपोर्ट, मजदूरी मिलाकर 2 रुपये प्रति क्विंटल लग जाता है. यह खर्च आलू की खेती में लगे लागत से अलग है. यानी प्रति क्विंटल करीब 5 रुपये तक का खर्च खेत से कोल्ड स्टोर और वहां से घर लाने तक पड़ जाता है.
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बेगूसराय जिले के किसान शिवदानी राय बताते हैं कि उन्होंने करीब 5 एकड़ में आलू की खेती की है. वह कहते हैं कि हालत ये है कि खेत से आलू निकालने के लिए मजदूर तक नहीं मिल रहे है. अगर मिलते भी हैं तो मजदूरी दर बहुत ज्यादा है. एक महिला मजदूर पूरे दिन का दो से ढाई सौ रुपए लेती है. वहीं पुरुष मजदूर 300 रुपए तक लेते हैं. तो वहीं एक दिन में जो आलू निकलते हैं उनका बाजार मजदूरी से भी कम है. इससे बढ़िया है कि आलू खेत में ही छोड़ दिया जाए. वहीं पटना जिले के रहने वाले किसान रामप्रवेश सिंह का कहना है कि अगर सरकार धान, गेहूं की तरह आलू की खरीदारी करे, तब जाकर आलू की खेती करने वाले किसानों की स्थिति बेहतर होगी. उन्होंने कहा कि साल दर साल हम लोग आलू का उत्पादन बढ़ा रहे लेकिन लाभ कम होता जा रहा है.
बेगूसराय जिले के बछवारा प्रखंड के रहने वाले रामकरण राय ने आठ बीघा में आलू व मक्का की खेती की है, जिसमें से चार बीघा किराये पर लिया है और उन्होंने खेती करने के लिए 60 हजार रुपए के आसपास केसीसी एवं 1 लाख 40 हजार रुपये साहूकार से 4 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज लिया है. वे कहते हैं कि आलू का दाम सही नहीं मिलने की वजह से खेत में ही फसल छोड़ दी है और सही समय से आलू की खुदाई नहीं होने से मक्का की फसल भी बर्बाद हो गई है. अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि साहूकार का कर्ज कैसे दिया जाए. हालत बहुत खराब है.
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