बिहार, एक कृषि प्रधान राज्य के रूप में अपनी पहचान रखता है, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती से जुड़ा है. यहां के किसान विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती करते हैं, जिनमें कुछ किसान फूलों की खेती से जुड़े हैं. हालांकि, सरकारी सहायता के अभाव में फूलों की खेती करने वाले किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था. लेकिन अब उनकी परेशानियां कम होने वाली हैं. बिहार सरकार ने गेंदा फूल की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को पचास प्रतिशत अनुदान देने का निर्णय लिया है. इस फैसले से गेंदा फूल की खेती करने वाले किसान काफी खुश हैं.
उप मुख्यमंत्री सह कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि बिहार सरकार ने कृषि क्षेत्र में नवाचार और विविधीकरण को प्रोत्साहित करते हुए एक नई योजना ‘‘गेंदा फूल विकास योजना” की शुरुआत की है. इसका उद्देश्य राज्य में गेंदा फूल की खेती को बढ़ावा देना और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करना है. आगे उन्होंने बताया कि गेंदा फूल विकास योजना बिहार सरकार की एक दूरदर्शी और नवाचारी पहल है, जो न केवल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगी, बल्कि फूलों की खेती को एक संगठित और लाभकारी व्यवसाय में परिवर्तित करेगी. राज्य को पुष्प उत्पादन में आत्मनिर्भर करने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ रोजगार के नए अवसर विकसित होंगे.
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कृषि मंत्री ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए इस योजना के अंतर्गत 632.50 लाख (छह करोड़ बत्तीस लाख पचास हजार रुपये) की निकासी और व्यय की स्वीकृति दी गई है. इस राशि का उपयोग राज्य के सभी जिलों में गेंदा फूल की खेती को बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक किसान इस योजना का लाभ ले सकें. वहीं, गेंदा फूल की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर इकाई लागत 80,000 रुपये निर्धारित की गई है. इस लागत पर किसानों को 50 परसेंट यानी 40,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान प्रदान किया जाएगा.
उपमुख्यमंत्री सिन्हा ने कहा कि अनुदान का भुगतान एकमुश्त रूप से किया जाएगा, जो गेंदा फूल की सफल पुष्पन के बाद संबंधित प्रखंड उद्यान पदाधिकारी की अनुशंसा और संतोषजनक सत्यापन के आधार पर किया जाएगा. यह भुगतान संबंधित जिले के सहायक निदेशक (उद्यान) द्वारा संपन्न किया जाएगा. इस योजना को शुरू करने का मकसद यह है कि गेंदा फूल का उपयोग धार्मिक, सांस्कृतिक और उत्सव के अवसरों में बड़े पैमाने पर सजावट के लिए होता है. इसके उत्पादन से जुड़े उत्पादों की बाजार में निरंतर मांग बनी रहती है.
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