जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं और उम्मीदवारों ने अपने चुनावी अभियान शुरू कर दिया है. घाटी में एक दशक बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं लेकिन इस राज्य के चुनावी पृष्ठभूमि की बात करें तो बहुत कुछ बदल गया है. खास तौर पर साल 2014 के लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में काफी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला था. साथ ही कम सीटों पर मामूली अंतर से जीत का फैसला हुआ है. 18 सितंबर को जब विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होगा तो सबकी नजरें उस पर टिकी होंगी. इन चुनावों को घाटी के लिए एतिहासिक करार दिया जा रहा है. एक नजर डालिए पिछले चुनावों में घाटी में चुनावी नतीजे किस तरह के थे.
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने देश के बाकी हिस्सों में भारी जीत हासिल की थी. जम्मू-कश्मीर में लद्दाख समेत घाटी की तीन सीटों पर जीत मिली. बाकी की तीन सीटें पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के हिस्से आई थीं. पार्टी का नेतृत्व उस समय महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद कर रहे थे और उनके निधन के बाद कमान बेटी के हाथ आई. इन लोकसभा चुनावों के बाद घाटी में विधानसभा चुनाव हुए. ये चुनाव जम्मू-कश्मीर के लिए एक दशक में सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा वाले साबित हुए. पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. लेकिन पार्टी 87 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के 44 के आंकड़े से काफी दूर रह गई. पीडीपी ने कश्मीर की सभी सीटों पर जीत हासिल की थी.
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बीजेपी ने जम्मू की 25 सीटें जीतीं और गठबंधन सरकार बनाने के लिए पीडीपी को समर्थन दिया. वहीं फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के हिस्से 15 सीटें आईं. जबकि कांग्रेस जो साल 2014 के लोकसभा चुनावों तक एनसी की सहयोगी थी, ने 12 सीटें जीतीं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उस साल 50 विधानसभा सीटें ऐसी थी जिन पर फैसला कुल वोटों के 10 फीसदी से कम के अंतर से हुआ था. पीडीपी ने सबसे ज्यादा 18 सीटें जीतीं. उसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 13 सीटें जीतीं. वहीं बीजेपी ने सात और कांग्रेस ने छह सीटें जीतीं. 10 फीसदी से कम के अंतर से जीती गई बाकी छह सीटें निर्दलीय और छोटी पार्टियों के खाते में गईं. कुल मिलाकर जीत का औसत अंतर 6,700 वोट था.
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पीडीपी एक ऐसी पार्टी के तौर पर सामने आई जिसने सबसे ज्यादा सीटें कम अंतर से तो जीतीं लेकिन सबसे ज्यादा सीटें करीबी मुकाबलों में हार गई. 18 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही, जहां जीत का अंतर कुल डाले गए वोटों के 10 फीसदी से भी कम था. इनमें से 16 सीटों पर एनसी दूसरे स्थान पर रही, उसके बाद नौ सीटों पर कांग्रेस और तीन सीटों पर बीजेपी रही. साल 2014 के विधानसभा चुनाव देश में मौजूद मोदी लहर के बीच हो रहे थे. बीजेपी 14,428 वोटों के साथ एक ऐसी पार्टी के तौर पर सामने आई जिसका औसत प्रमुख दलों में सबसे ज्यादा था. खासतौर पर 52 सीटें ऐसी थीं जिनके नतीजों से पता चलता है कि कैसे चुनाव किसी भी पल नाटकीय मोड़ ले सकते थे.
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