उत्तर प्रदेश के जनपद रामपुर में कृषि विज्ञान केंद्र ने एक सराहनीय पहल की है जिसकी आसपास के किसानों में काफी चर्चा है. यहां खेती की जमीन कम होने से पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या पैदा होने लगी थी. इसी समस्या से निजात दिलाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने कम जमीन में अधिक चारा उगाने की विधि अपनाई है. धमोरा के कृषि विज्ञान केंद्र में पशु चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. रूपम सिन्हा ने अजोला उगाने की इकाई तैयार की है. किसान अपने ही खेतों में अजोला नामक चारा मात्र एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से उगा सकते हैं.
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह घास दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा और मुर्गियों में अंडा उत्पादन की क्षमता भी बढ़ाएगा. साथ ही साथ फसलों में हरी खाद के रूप में भी प्रयोग किया जाएगा. अब कृषि वैज्ञानिक किसानों को इस घास को तैयार करने की विधि बता रहे हैं.
इस विषय पर डॉ. रूपम सिन्हा ने बताया, कृषि विज्ञान केंद्र रामपुर में अजोला और नील हरित शैवाल प्रशिक्षण और प्रदर्शन इकाई लगी है जो अभी शुरू की गई है. इसमें अजोला घास उगाई जा रही है. अजोला प्रोटीन से भरपूर घास होती है. यह ऐसी घास है जो गाय, भैंस, बकरी और यहां तक कि घोड़े और और मुर्गियों के चारे और दाने के काम आती है. मुर्गियों को दिया जाने वाला दाना बहुत महंगा होता है जबकि अजोला उसकी तुलना में बहुत ही सस्ती घास है. रामपुर में हरे चारे की बहुत कमी है, इसलिए अजोला यहां के किसानों के लिए बहुत मददगार साबित होगी. अजोला की सबसे खास बात ये है कि इसकी कीमत प्रति किलो एक रुपये पड़ती है. वहीं गाय और भैंसों के खिलाया जाने वाला चारा 20 से 25 रुपये किलो तक पड़ जाता है.
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इस घास को जितने बड़े क्षेत्र में उगाना चाहें, उगा सकते हैं. यहां तक कि छोटे-छोटे गड्ढे में भी इसे उगाना आसान है. किसान अपनी सुविधा के हिसाब से यह चारा उगा सकते हैं. इस घास से गाय-भैंस के दूध की मात्रा बढ़ती है. अगर कोई गाय 10 किलो तक दूध देती है तो अजोला 15 से 20 दिन खिलाने के बाद दूध की मात्रा 12 से 15 लीटर तक जा सकती है. यही फायदा मुर्गियों की फीड के लिए भी है. मुर्गियों का दाना 60 से 70 रुपये प्रति किलो तक पड़ता है. लेकिन मुर्गी पालक किसान मुर्गी फार्म में ही अजोला लगा दें तो उन्हें एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से अजोला घास मिल जाएगी. यह घास मुर्गियों के दाने के रूप में इस्तेमाल होगी जिससे उनका वजन बढ़ेगा.
अजोला को लगाना बहुत ज्यादा कठिन काम नहीं है. इसको लगाने के लिए सबसे पहले एक गड्ढा बनाना होता है जिसकी गहराई डेढ़ फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. अगर आपके पास दो गायें हैं या दो पशु हैं तो गड्ढे की लंबाई डेढ़ से दो मीटर होनी चाहिए और चौड़ाई भी दो मीटर होनी चाहिए. गड्ढे सीमेंटेड हो तो अच्छा और न हो तो सिम पोलिंग पॉलिथीन की शीट लगा दें ताकि जो पानी भरे वह सूखे नहीं. इस शीट पर एक से डेढ़ इंच मोटी मिट्टी की लेयर लगानी होती है. मिट्टी दलदल की खराब मिट्टी नहीं होनी चाहिए और उसमें किसी तरह का कोई इंफेक्शन नहीं आना चाहिए.
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अब गड्ढे में शुद्ध पानी भर दें. उसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र से अजोला लें और उस गड्ढे में डाल दें. एक किलो घास एक गड्ढे में डाल सकते हैं जो चार से पांच दिन में पूरे गड्ढे में फैल जाएगा. इसमें सावधानी ये रखनी है कि गड्ढे के पानी को एक से डेढ़ महीने में बदलना चाहिए. पानी बदलने के बाद उसमें सिंगल सुपर फास्फेट खाद डाल दें. इसकी मात्रा पांच से 10 ग्राम लेनी है. यह खाद पांच से 10 दिन में डालनी होती है. पानी बदलने से उसमें किसी तरह का इंफेक्शन नहीं आएगा. गड्ढे में गाय का गोबर भी डालें जिससे कि अजोला के विकास में तेजी आएगी. रामपुर कृषि विज्ञान केंद्र में अजोला उगाने की विधि किसानों को सिखाई जाती है. इसके लिए किसान यहां से ट्रेनिंग लेते रहते हैं.(रिपोर्ट/आमिर खान)
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