भारतीय दूध और डेयरी उत्पादों की दुनिया भर में मांग है. पहले यह व्यवसाय दूध, दही, मक्खन तक ही सीमित था, लेकिन अब पनीर, मेयोनेज़, पनीर और टोफू की मांग भी बढ़ रही है. इस मांग को पूरा करने के लिए अच्छी मात्रा में दूध की खपत होती है. कुछ डेयरी व्यवसाय के मालिक पशुओं की संख्या बढ़ाकर और कुछ पशुओं को इंजेक्शन देकर दूध की मांग को पूरा करते हैं. यह पूरी तरह से असुरक्षित है, जो पशुओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है. ऐसे में ईंट जैसा दिखने वाला चारा दुधारू पशुओं के लिए बेहद फायदेमंद होता है.
ज्यादा इंजेक्शन लगाने से गाय या भैंस का दूध निकलने लगता है, जिससे उनकी सेहत में कमजोरी आ सकती है. आज इस लेख में हम उन तरीकों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे न सिर्फ दूध का प्राकृतिक उत्पादन बढ़ेगा बल्कि मवेशियों के स्वास्थ्य में भी सुधार होगा.
यह ईंट उन पशुओं के लिए बहुत उपयोगी है जो केवल गेहूं के भूसे या जौ के भूसे पर निर्भर रहते हैं. यह यूरिया, खनिज मिश्रण ईंट साधारण नमक और गुड़ आदि को मिलाकर बनाया जाता है. यह पशुओं को प्रमुख और लघु खनिज लवण प्रदान करने के अलावा नाइट्रोजन और ऊर्जा भी प्रदान करता है. इस ईंट को पशु के थन पर रखा जाता है और जानवर अपनी इच्छानुसार इसे चाटता है. इसकी खपत प्रतिदिन लगभग 400 ग्राम तक होती है. साधारण सूखे चारे पर निर्भर दुधारू पशुओं में ईंटों के प्रयोग से प्रतिदिन 250-300 ग्राम दूध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, जिस पर अतिरिक्त खर्च मात्र 3 रुपये प्रति पशु प्रतिदिन आता है. इतना ही नहीं इस ईंट के लगातार प्रयोग से पशुओं की प्रजनन क्षमता में भी सुधार होता है यानी पशु समय पर मद में आते हैं और गर्भधारण करते हैं. ऐसी स्थिति में यूरिया गुड़ खनिज मिश्रित ईंट आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करता है और अलग-अलग कमी को दूर करता है.
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अगर आप भी अपने मवेशियों की दूध देने की क्षमता बढ़ाना चाहते हैं तो लोबिया घास एक अच्छा विकल्प है. इस घास में औषधीय गुण होते हैं, जिसका कोई बुरा प्रभाव नहीं होता बल्कि कुछ ही समय में दूध की गुणवत्ता के साथ-साथ इसकी मात्रा भी बढ़ जाती है. लोबिया घास की अच्छी बात यह है कि अन्य प्रकार की घास की तुलना में इसे खाने से जानवरों का पाचन बेहतर होता है. इसमें मौजूद प्रोटीन और फाइबर जानवरों के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है.
आज के समय में आयुर्वेद का महत्व बढ़ता जा रहा है. अच्छी सेहत के लिए लोग जड़ी-बूटियों का सेवन कर रहे हैं. यही बात पशुओं पर भी लागू होती है. आज बाजार में कई कंपनियां प्राकृतिक औषधियों से पाउडर बना रही हैं. इन चूर्णों को चारे या पानी में मिलाने से पशुओं के दूध उत्पादन में वृद्धि होती है. गांव के ज्यादातर किसान और पशुपालक इस पाउडर की विधि जानते हैं. इसे 250 ग्राम गेहूं का दलिया, 100 ग्राम गुड़ का घोल, 50 ग्राम मेथी, एक कच्चा नारियल, 25-25 ग्राम जीरा और अजवाइन से भी बनाया जा सकता है और 2 महीने तक खिलाया जा सकता है.
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