एक आंकड़े के मुताबिक देश में दुधारू पशुओं की संख्या करीब 30 करोड़ है. हालांकि उसमे से बहुत कम पशु ही मानकों के मुताबिक दूध देते हैं. खासतौर पर गायों की बात करें तो कई ऐसी वजह हैं जिसके चलते लोग गाय पालने से बचने लगे हैं. क्योंकि गाय अपनी जरूरत के मुताबिक चारा तो पूरा खाती है, लेकिन दूध देने के मामले में फिसड्डी है. कुछ ऐसी नस्ल भी हैं जो दूध दे रही हैं, लेकिन लागत के मुताबिक मुनाफा उतना नहीं मिल पाता है. यही वजह है कि अब लोग धीरे-धीरे पशुपालन छोड़ने लगे हैं. नए लोग आना नहीं चाहते हैं.
इसी को देखते हुए पशुपालन में गायों की कुछ अच्छी नस्लों को संरक्षित करने की मांग हो रही है. फिर चाहें ये नस्ल दूध के लिए पाली जा रही हों या फिर दूध और पशुपालन दोनों के लिए. जैसे दूध के लिए गिर, लाल सिंधी, साहीवाल और थारपारकर और दूध-पशुपालन दोनों के लिए पाली जानें वाली कांकरेज, ओंगोल, राठी, देवनी, हरियाणा, मेवाती और डांगी गाय हो. इनसे जमे हुए वीर्य और भ्रूण निर्यात का कारोबार किया जा सकता है.
जेबू मवेशी संघ (IFIZCI) के अध्यक्ष मदन मोहन यादव का कहना है कि पशुओं को पालना और भारत में प्रजनन करना इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए. क्योंकि भारत से जीवित गायों और उनके जर्मप्लाज्म दोनों के निर्यात पर प्रतिबंधित लगा हुआ है. जबकि पशुपालन और डेयरी विभाग की सिफारिश पर विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी लाइसेंस के तहत ही अनुमति देता है. हम चाहते हैं कि गायों के जर्मप्लाज्म के निर्यात पर लग प्रतिबंध को अगर हटाया नहीं जा सकता तो कम कर दिया जाए. गौरतलब रहे मोहन यादव के पास हरियाणा के गुरुग्राम में 150 एकड़ की गिर अमृतफल गौशाला है. इस गौशाला में 930 गाय, बछड़े और बैल हैं. इसमे 750 गिर, 150 नारी (राजस्थान और गुजरात की मूल निवासी वाली नस्ल) और 10-10 रेड सिंधी, हरियाणा और पुंगनूर है.
मोहन यादव का कहना है कि देशी पशुओं से मिलने वाले दूध और गोबर की बिक्री से किसान ज्यादा पैसा नहीं कमा सकते हैं. ऐसे हालात में प्रजनन के मकसद से पाले जाने वाले पशुओं के वीर्य और भ्रूण की बिक्री की जा सकती है. हम उम्मीद करते हैं कि सरकार कम से कम जमे हुए भ्रूण और वीर्य के निर्यात को खोल सकती है. सरकार का ये कदम किसानों के लिए एक नया बाजार बनाएगा और उन्हें हमारी स्वदेशी जेबू (बोस इंडिकस) नस्लों को पालने के लिए प्रोत्साहित करेगा. बाजार में भारतीय नस्लों के जर्मप्लाज्म (वीर्य और भ्रूण) की बड़ी मांग दिखाई देती है, खासतौर से लैटिन अमेरिकी देशों जैसे ब्राजील, मैक्सिको, बोलीविया, कोलंबिया, पेरू, इक्वाडोर, वेनेजुएला, पनामा और होंडुरास में.
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