231 मिलियन टन दूध उत्पादन के साथ भारत विश्वा में पहले नंबर पर है. 537 मिलियन पशुओं के बड़े आंकड़े के साथ हमारा देश कुल पशुओं के मामले में भी पहले नंबर पर है. ये दोनों आंकड़े जहां गर्व का एहसास कराते हैं तो वहीं प्रति पशु दूध उत्पादन के मामले में हम दूसरे देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं. डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है हरे और सूखे चारे की कमी. दूसरी परेशानी ये भी है कि जो सूखा और हरा चारा बाजार में मिल भी रहा है तो क्वालिटी के मामले में वो बहुत खराब है.
चारे और डेयरी से जुड़े कई कार्यक्रम के दौरान इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झांसी के कई पूर्व और वर्तमान डायरेक्टर भी चारे की कमी और उसकी खराब होती क्वालिटी के बारे में चेतावनी दे चुके हैं. बेंग्लू़रू में आयोजित एक कांफ्रेंस के दौरान पूर्व डॉयरेक्टर अमरीश चन्द्रा का कहना था कि देश में 12 फीसद हरे चारे और 23 फीसद सूखे चारे की कमी है. इसके अलावा खल आदि के चारे में 24 फीसद की कमी आई है. जिसे जल्द से जल्द दूर करना जरूरी हो गया है.
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रेंज मैनेजमेंट सोसाइटी ऑफ इंडिया से जुड़े फोडर एक्सपर्ट का कहना है कि हर एक गांव के स्तर पर पशुओं के चरने के लिए एक चारागाह होती है. लेकिन कई बार ये खुलासा हुआ है कि चारागाह की बहुत सारी जमीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है. इतना ही नहीं बहुत सारी चारागाह की जमीन पर तो स्कूल और पंचायत घर जैसी दूसरी बिल्डिंग तक बना ली गई हैं. इसके चलते पशुओं के लिए चरने तक की जगह नहीं बची है. ऐसे में चारे की कमी का असर सीधे तौर पर दूध उत्पादन को प्रभावित कर रहा है.
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रेंज मैनेजमेंट सोसाइटी ऑफ इंडिया से जुड़े डॉ. पलसानिया का कहना है कि ये सच है कि चारागाहों पर कब्जे हो रहे हैं. उन्हों ने रोकने और हटाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और लोकल प्रशासन की है. लेकिन अक्सर देखा गया है कि आपसी सामंजस्य के चलते चारागाहों पर हो रहे कब्जों को लेकर कोई भी कार्रवाई नहीं हो पाती है. यहां तक की कई विभागों के होते हुए भी चारागाहों पर स्कूल और पंचायत घर तक बन जाते हैं. लेकिन ऐसे मामलों पर कदम उठाने के लिए नेशनल ग्रासलैंड पॉलिसी बनाने की जरूरत है. अगर ये पॉलिसी बनती है तो इससे चारागाहों पर होने वाले कब्जों पर रोक लगेगी.
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