देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बकरी पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय बन गया है. कम खर्च और ज्यादा मुनाफे के कारण बड़ी संख्या में किसान इस व्यवसाय की ओर रुख कर रहे हैं. हालांकि किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि किस नस्ल की बकरी पालने (Goat Farming)से उन्हें अच्छा मुनाफा मिलेगा.
बकरी एक छोटा जानवर है इसलिए इसके रखरखाव का खर्च भी बहुत कम होता है. बकरी पालन (Goat Farming) में मुख्य रूप से तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए. पहला है नस्ल, दूसरा है भोजन या चारा और तीसरा है प्रबंधन. नस्ल की बात करें तो उसी नस्ल का चयन करना चाहिए जो उस वातावरण में अच्छे से रह सके. इसके लिए बरबरी या जमुनापारी नस्ल बहुत अच्छी है. कुछ पशुपालक सिरोही और बीटल नस्ल भी पालते हैं.
यदि आप बरबरी नस्ल के साथ अपना व्यवसाय शुरू कर रहे हैं, तो आप इन्हें घर पर आसानी से रखकर पालन-पोषण कर सकते हैं. यह नस्ल आमतौर पर साल में दो बार बच्चे पैदा करती है और एक बार में 2 या 3 बच्चों को जन्म देती है. इतना ही नहीं यह नस्ल कभी-कभी 4 बच्चों तक भी जन्म देती है. यदि बकरियों को चरागाह में चरने के लिए नहीं भेजा जाता है तो उन्हें दिन में तीन बार चारा देना बहुत जरूरी है. एक औसत बकरी को एक दिन में 3.5 से 5 किलो चारा मिलना चाहिए. बकरियों को आपस में लड़ने से बचाना चाहिए. इन गर्भवती बकरियों को किसी अन्य बकरियों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए जिनका तुरंत गर्भपात हुआ हो या जो बीमार हों. पशु चिकित्सकों के मुताबिक पीपीआर, खुरपका-मुंहपका रोग, घेंघा रोग, एंटरोटोक्सिमिया और आफरा आदि कुछ खतरनाक बीमारियां हैं और इनके प्रति पशुपालकों को सचेत रहना चाहिए.
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बरबरी बकरियां को पालना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है. इस बकरी को पालने के लिए नमी वाली जगह का चयन करना पड़ता है. उनके चरने के लिए खुला मैदान की व्यवस्था करें. ताकि चरने के लिए हरा चारा उपलब्ध हो सके. जिस स्थान पर इन्हें बांधा जाए वह स्थान साफ-सुथरा होना चाहिए. ताकि रखरखाव की लागत को कम किया जा सके. साथ ही एक शेड में 7-8 से ज्यादा बकरियां नहीं रखनी चाहिए. बारबरी नस्ल की बकरियां आमतौर पर कुछ भी खा लेती हैं. लेकिन वे झाड़ियां, पेड़ की पत्तियां, अनाज, ग्वार की भूसी और मूंगफली का चारा आसानी से खा जाते हैं.
भारत में जमुनापारी बकरी पालन यमुना नदी के आसपास के क्षेत्रों में प्रचलित है. बकरियों की यह नस्ल मुख्यतः उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पाई जाती है. इसके अलावा ये बकरियां पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश में पाई जाती हैं और ये बकरी पाकिस्तान में भी पाई जाती है. इस नस्ल से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है क्योंकि यह नस्ल अधिक मांस और दूध देती है. जमुनापारी नस्ल की बकरी का रंग सफेद होता है. इन बकरियों की पीठ पर बाल लंबे और सींग छोटे होते हैं. इन बकरियों के कान बड़े और मुड़े हुए होते हैं. ये बकरियां अन्य नस्लों के मुकाबले ऊंची और लंबी होती हैं.
इस बकरी का वजन सामान्य बकरीयों के वजन से भी ज्यादा है. यह बकरी अपने पूरे जीवनकाल में 12 से 14 बच्चों को जन्म देती है. इस नस्ल की बकरियां प्रतिदिन औसतन 1.5 से 2 लीटर दूध देती हैं. जमुनापारी बकरी का दूध स्वादिष्ट और गुणकारी होता है. इस बकरी को पालने के लिए केंद्रीय अनुसंधान संस्थान में प्रशिक्षण भी दिया जाता है. बाजारों में इसके मांस की काफी मांग रहती है. इन बकरों की कीमत करीब 15 से 20 हजार रुपये तक है.
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