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बकरियों को ये 4 टीके लगवाना जरूरी, जानें किस महीने कराना चाहिए वैक्सिनेशन

बकरियों को ये 4 टीके लगवाना जरूरी, जानें किस महीने कराना चाहिए वैक्सिनेशन

बकरी पालन से न स‍िर्फ काफी लोगों की आजीव‍िका चल रही है बल्क‍ि स्थानीय बकरी प्रजातियों के विकास को बढ़ावाभी म‍िल रहा है. हालांक‍ि बकर‍ियां काफी संवेदनशील होती हैं इसल‍िए इनकी बीमार‍ियों का ध्यान रखना और उनका समय पर ईलाज करना बहुत जरूरी है. बकरी पालन को बढ़ावा देने वाले वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि प्रतिदिन सुबह बकरियों की जांच करें.

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बकरी पालन बकरी पालन

बकरी पालन इस समय फायदे का सौदा है. बकरियों का दूध, मांस और अन्य उत्पादों में प्रोटीन व विटामिन ज्यादा मात्रा में पाया जाता है. बकरी पालन से न स‍िर्फ काफी लोगों की आजीव‍िका चल रही है बल्क‍ि स्थानीय बकरी प्रजातियों के विकास को बढ़ावाभी म‍िल रहा है. हालांक‍ि बकर‍ियां काफी संवेदनशील होती हैं इसल‍िए इनकी बीमार‍ियों का ध्यान रखना और उनका समय पर ईलाज करना बहुत जरूरी है. बकरी पालन को बढ़ावा देने वाले वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि प्रतिदिन सुबह बकरियों की जांच करें. जो बकरी बीमार हो उसे बाकी बकरियों से अलग करें, अन्यथा दूसरी बकरियों में रोग फैलने की संभावना रहती है.

बीमार बकरी को चरने के लिये ना छोड़े और अपने पशु चिकित्सक से संपर्क करें. हर तीन महीने में बकरियों को कृमिनाशक दवाई पिलाएं. खासकर बरसात के पहले और बरसात के बाद. यह बहुत जरूरी है. इसके लिए अपने पशु चिकित्सक से संपर्क करें. हर चार महीने में बकरियों को खुजली से बचाने के लिए कृमिनाशक दवाई से नहलाएं. विशेष तौर पर बरसात के पहले और बरसात के बाद. इसके लिए अपने पशु चिकित्सक से संपर्क करें.

बकर‍ियों के रहने वाले स्थान पर ध्यान दें 

बरसात के दिनों में बकरियों के बैठने की जमीन पर चूने का छिड़काव करें. हर तीन महीने में फिनाईल अथवा उत्तम कृमिनाशक का बकर‍ियों के रहने के स्थान पर छिड़काव करें. हर तीन महीने में उस जगह की दीवारों पर चूने से पुताई करें. गाभिन बकरियों को एंटेरोटॉक्सिीमियां का टीका लगावाएं. पंद्रह दिन के बाद दुबारा लगाएं. यह बहुत आवश्यक है. इसके लिए अपने पशु चिकित्सक से संपर्क करें. बकरियों का नियमित रूप से टीकाकरण करवाएं और कृमिनाशक दवाई पिलाएं और अपने पशु चिकित्सक से संपर्क बनाए रखें. 

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इन टीकों को लगवाना जरूरी 

बकर‍ियों को व‍िभ‍िन्न बीमार‍ियों से बचाने के ल‍िए चार टीके लगवाना बहुत जरूरी है. आईए इनके बारे में जानते हैं. 

गलघोंटू एचएस: 

तेज बुखार, गले में सूजन श्वांस लेने एवं निगलने में तकलीफ एवं निमोनिया जैसे लक्षण हो समझें क‍ि गलघोंटू है. इससे बचाव के ल‍िए मई एवं जून के महीने में टीका लगाना चाहिए. टीकाकरण की रोग प्रतिरोधक क्षमता छह माह है. 

खुरपका-मुंहपका रोग या एफएमडी

तेज बुखार, मुंह दांत एवं खुरों के बीच तथा त्वचा पर छाले पड़ना इसकी न‍िशानी है. अगस्त माह में इससे बचाव का टीका लगाया जाना चाहिए. इसकी रोग प्रतिरोधक अवधि छह माह तक है. इसल‍िए इस टीके को छह माह के बाद रिपीट करना चाह‍िए. 

एंटेरोटॉ क्सीमिया

लड़खड़ा कर चलना, सांस लेने में तकलीफ होना एवं अनियमित श्वांस से लेना तथा पेट फूलना एवं दांत किटकिटाना इस रोग के लक्षण हैं. इससे बचाव के ल‍िए साल में कभी भी टीका लगाया जा सकता है. इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता एक साल रहती है. 

पीपीआर

तेज बुखार, मुंह दांत एवं खुरों के बीच तथा त्वचा पर छाले पड़ना इसकी न‍िशानी है. मई एवं जून के महीने में इससे बचाव का टीका लगाया जाना चाहिए. इसकी रोग प्रतिरोधक अवधि एक साल है. इसल‍िए एक साल बाद इसे रिपीट करना चाहिए.

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