Study चूजों को दे रहे एंटीबायोटिक्स, पोल्ट्री उद्योग में दवा का 'Extra Dose' कंपनियों का खंडन

Study चूजों को दे रहे एंटीबायोटिक्स, पोल्ट्री उद्योग में दवा का 'Extra Dose' कंपनियों का खंडन

पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय के सहयोग से ब्रिटेन के रॉयल वेटनरी कॉलेज द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि पोल्ट्री कंपनियां चूजों को बैक्टीरिया से संक्रमित होने से रोकने में असमर्थ हैं.

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Study चूजों को दे रहे एंटीबायोटिक्स, पोल्ट्री उद्योग में दवा का 'Extra Dose' कंपनियों का खंडनपोल्ट्री उद्योग में एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल को लेकर सामने आई स्टडी

हाल ही में की गई एक स्टडी में सामने आया है कि मुर्गे-मु्र्गियों में संक्रमण की रोकथाम के लिए पोल्ट्री उद्योग की कंपनियां ‘अतिरिक्त’ एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं. ये स्टडी यूके रॉयल वेटनरी कॉलेज और पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (WBUAFS) के सहयोग से की गई है. अध्ययन में पता चला है कि पोल्ट्री ब्रीडिंग कंपनियां चूज़ों को बैक्टीरिया से संक्रमित होने से बचाने में असमर्थ हैं. इस कारण उत्पादकों को शुरुआती चरण में ही एंटीबायोटिक्स का सहारा लेना पड़ रहा है. लेकिन पोल्ट्री उद्योग के अधिकारी इसका खंडन कर रहे हैं.

क्या बोले पोल्ट्री उद्योग के अधिकारी?

यूके रॉयल वेटनरी कॉलेज और पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय इस स्टडी में कहा गया है कि ये प्रैक्टिस खास तौर पर पश्चिम बंगाल और देश के पूर्वी हिस्सों में देखने को मिल रही है. एक अंग्रेजी अखबार 'द बिजनेस लाइन' में प्रकाशित इस स्टडी में कई चीजें सामने आई हैं. पोल्ट्री उत्पादकों द्वारा एंटीबायोटिक्स का सहारा लेने पर पोल्ट्री उद्योग के अधिकारियों का तर्क है कि इससे मानव स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं हो रहा है और इस मुद्दे को “शैतानी” करार दिया जा रहा है. वर्तमान में देखा जाए तो एंटीबायोटिक्स का उपयोग मुख्य रूप से पशुओं, जिनमें मुर्गी और बड़े जानवर भी शामिल हैं, उनके रोग उपचार और रोकथाम के लिए किया जाता है.

क्या कह रहे वैज्ञानिक?

इस स्टडी को लेकर ICAR के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि एंटीबायोटिक्स पशुओं (जिसमें मुर्गी पालन भी शामिल है) में जीवाणु जनित रोगों के इलाज के लिए उसी प्रकार जरूरी हैं, जिस तरह इंसानों में इनका उपयोग होता है. वैज्ञानिक ने कहा, "पहले, मुर्गियों के वजन को बढ़ाने के लिए, आंतों के बैक्टीरिया को नियंत्रित करके उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए कम मात्रा में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, भारत में इस चीज पर बैन लगा दिया गया है और अब इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाता है."

ICAR के वैज्ञानिक ने कहा, "पशु चिकित्सक अपने पेशेवर ज्ञान और पशुओं की खास जरूरत के आधार पर ही एंटीबायोटिक्स लिखते हैं. हर्बल उत्पाद, प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स जैसे वजन बढ़ाने के लिए तेजी से उपयोग किए जा रहे हैं."

एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर सख्ती

दरअसल, मीट में अवशेष स्तर की जांच की जाती है, खास तौर पर जो मीट निर्यात होता है उसमें अत्यधिक एंटीबायोटिक उपयोग की बेहद सख्ती है. एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग और रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बारे में वैश्विक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय पशुपालन और डेयरी विभाग ने हाल ही में पशुधन और पोल्ट्री के लिए 'मानक पशु चिकित्सा उपचार दिशानिर्देश (SVTG)' का एक विस्तृत 400-पेज का संग्रह भी जारी किया है.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की सहायता और 80 से अधिक विशेषज्ञों की राय से तैयार इस दस्तावेज में 30 पेज विशेष रूप से पोल्ट्री क्षेत्र के लिए समर्पित हैं, जिनमें कई सारी बीमारियों और इन समस्याओं से निपटने के लिए टीकों और दवाओं पर चर्चा की गई है.

पोल्ट्री उद्योग की दलील अलग

वहीं इस मामले को लेकर श्रीनिवास फार्म के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुरेश चित्तूरी ने एंटीबायोटिक दवाओं को बदनाम करने पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुछ बीमारियों से निपटने में ये बहुत उपयोगी होती हैं. उन्होंने तर्क दिया कि एंटीबायोटिक दवाओं के जायज उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए न कि पशुपालकों पर दोष मढ़ना चाहिए.

उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं की पड़ताल उनके बनने की प्रक्रिया से ही की जानी चाहिए. सुरेश चित्तूरी ने कहा कि ब्रिटेन एंटीबायोटिक के उपयोग के लिए पशु चिकित्सकों की सिफारिशों पर नज़र रखकर नियंत्रण करता है, उन्होंने कहा कि अमेरिका प्रति व्यक्ति भारत की तुलना में काफी अधिक एंटीबायोटिक्स का उपयोग करता है. हालांकि, भारतीय पोल्ट्री उद्योग को गलत तरह से बदनाम किया जाता है.

वेंकटेश्वर हैचरी के के. आनंद ने इस मामले पर कहा कि चूंकि पोल्ट्री का बड़ा हिस्सा संगठित क्षेत्र में है, इसलिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग निर्धारित मानदंडों के भीतर है. ब्रॉयलर, जिनका जीवन लगभग 36-37 दिनों का होता है, को आम तौर पर एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि कंपनियां फ़ीड के माध्यम से इम्यूनिटी सुनिश्चित करती हैं और जैव सुरक्षा बनाए रखती हैं. 

हालांकि, 72-88 सप्ताह तक अंडे देने के लिए रखी जाने वाली लेयर बर्ड्स को कुछ मौकों पर एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता हो सकती है. उन्होंने कहा, "उद्योग आम तौर पर 72 सप्ताह के जीवन चक्र के दौरान किसी भी समस्या को हल करने के लिए टीकों का उपयोग करता है. अगर वे टीकों से इसे संभालने में सक्षम नहीं हैं, तो फिर स्थानीय डॉक्टरों को बुलाते हैं और प्रिस्क्राइब्ड एंटीबायोटिक्स का उपयोग करते हैं."

मानव स्वास्थ्य पर असर

इस मुद्दे का एक बहुत बड़ा पहलू मानव स्वास्थ्य भी है. केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक टीपी सेथुमाधवन ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं के अनियंत्रित उपयोग से स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं पैदा होती हैं. उन्होंने कहा कि रिसर्च संस्थानों को इसके उपयोग का पता लगाने के लिए हितधारक-आधारित अध्ययन करने की जरूरत है. सेथुमाधवन का कहना है कि केरल में पोल्ट्री में एंटीबायोटिक के उपयोग की रिपोर्टें हैं, लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े हितधारकों को आने वाले स्वास्थ्य देखभाल मुद्दों की कोई चिंता नहीं है. 

टीपी सेथुमाधवन का कहना है कि ब्रॉयलर मुर्गियों में एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल एक समस्या है. उन्होंने कहा कि पोल्ट्री उद्योग, किसान और उद्यमी इन समस्याओं को हल करने में रुचि नहीं रखते हैं और इस संबंध में अध्ययन भी असामान्य हैं.

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